25 सितंबर, 2023, कोलकाता
भाकृअनुप-केन्द्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान, कोलकाता में एनआईसीआरए की परियोजना "अंतर्देशीय मत्स्य पालन में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और अनुकूली रणनीतियों का विकास" पर एक समापन कार्यशाला आज आयोजित की गई।
मुख्य अतिथि, डॉ. पी. डे, निदेशक, भाकृअनुप-अटारी, कोलकाता ने कहा, “अब हम जलवायु परिवर्तन के वृहत प्रभाव के कारण छठी प्रजाति के विलुप्त होने की घटना के करीब हैं, और इसलिए अंतर्देशीय मत्स्य पालन में जलवायु संबंधी अध्ययनों को मजबूत किया जाना चाहिए, इसलिए प्रजनन की दृष्टि से मछलियों की प्रजनन भेद्यता और फेनोलॉजी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
डॉ. बी.के. दास, निदेशक, भाकृअनुप-सीआईएफआरआई, बैरकपुर एवं पीआई, एनआईसीआरए परियोजना ने परियोजना के 12 साल के चरणों, उद्देश्यों और उपलब्धियों की जानकारी दी। उन्होंने अंतर्देशीय खुले जल मत्स्य पालन, भारतीय नदियों, बाढ़ के मैदानी आर्द्रभूमियों और तटीय आर्द्रभूमियों में भेद्यता आकलन में जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर प्रकाश डाला और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के खिलाफ अनुकूलन रणनीतियाँ विकसित कीं। उन्होंने बाढ़ के मैदानी आर्द्रभूमियों में कार्बन पृथक्करण क्षमता तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का भी आकलन किया।
विशिष्ट अतिथि, प्रोफेसर बी.बी. जाना, कल्याणी विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल ने कहा कि सीआईएफआरआई को पर्यावरणीय रसायनों के स्थिर आइसोटोप विश्लेषण जैसे अत्याधुनिक तरीकों का उपयोग करके अंतर्देशीय मत्स्य पालन और जलवायु परिवर्तन पर अपना काम जारी रखना चाहिए।
विशेषज्ञों ने तटीय मछुआरों की आजीविका को बेहतर बनाने तथा जलवायु-अनुकूल मछली पालन विधियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए भाकृअनुप-सीआईएफआरआई को प्रोत्साहित किया। सुदूर तटीय क्षेत्रों के मत्स्य पालक किसानों ने प्रौद्योगिकी के साथ अपने अनुभव और खुशी को साझा किया, और अपने राजस्व को दोगुना करने की इसकी क्षमता को साझा किया।
(स्रोत: भाकृअनुप-केन्द्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान, कोलकाता)
फेसबुक पर लाइक करें
यूट्यूब पर सदस्यता लें
X पर फॉलो करना X
इंस्टाग्राम पर लाइक करें