अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में रहने वाली जनजातियों में एक प्रमुख जनजाति निकोबारीज की आजीविका का मुख्य स्रोत वृक्षारोपण फसलों, मसलन नारियल और मछली पकड़ने पर आधारित है। उनकी खेती के तरीके अन्य कृषक समुदाय से बिल्कुल अलग और अद्वितीय हैं। लोग संयुक्त परिवार प्रणाली में रहते हैं और कंद और अन्य फसलों की खेती के लिए 'ट्यूहेट' बागान प्रणाली (एक संयुक्त परिवार कृषि प्रणाली जहाँ समुदाय के स्वामित्व वाली भूमि पर संसाधनों और उत्पादों को साझा किया जाता है) को अपनाते हैं।
भाकृअनुप-केंद्रीय द्वीपीय कृषि अनुसंधान संस्थान (सीआईएआरआई) ने कंद फसलों पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत भागीदारी मोड के माध्यम से लिटिल अंडमान के जनजातीय गाँव हरमिंदर खाड़ी में कंद फसल आधारित खेती प्रणाली पर वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान करने के लिए एक प्रयास शुरू किया है। गाँव में 15 ट्यूहेट हैं, जिनका औसत क्षेत्रफल 0.44 हेक्टेयर प्रति ट्यूहेट बागान है।
संस्थान ने कंद फसल आधारित कृषि प्रणाली के प्रदर्शनों को संचालित करने के लिए 10 जनजातीय किसानों का चयन किया। 200 मीटर2 क्षेत्र के प्रत्येक किसान के खेत का चयन किया गया और जनजातीय बस्ती के आसपास के क्षेत्र में ठीक से बाड़ लगाई गई। चयनित किसानों को प्रशिक्षण के माध्यम से कंद फसल आधारित कृषि प्रणालियों के बारे में जागरूक किया गया और जिमीकद (सूरन), अदरक, घुइयाँ अथवा अरबी की रोपण सामग्री के साथ 3 से 4 महीने की उम्र के 3 सूअर के बच्चे की आपूर्ति की गई। फसलों को मई माह में लगाया गया था और रोपण (दिसंबर) के 8 महीने बाद काटा गया था। फसलें प्राकृतिक खेती के तरीकों के तहत बिना किसी अतिरिक्त खाद और उर्वरक के उगाई गईं। सूअरों के शरीर के वजन में वृद्धि की गणना 12 महीनों के लिए की गई थी। कंद फसल आधारित कृषि प्रणाली के परिणामस्वरूप सकल और शुद्ध लाभ के साथ-साथ बी:सी में भी वृद्धि हुई। जनजातीय किसानों द्वारा पसंद किए जाने के कारण जिमीकद ने उनके बीच मांग और उत्साह पैदा किया। हस्तक्षेप की सफलता के आधार पर बाद के वर्षों में 15 किसानों ने वर्ष 2015-16 और 2016-17 के दौरान एकीकृत कृषि प्रणाली (0.03 हेक्टेयर) में कंद फसलों को अपनाया है। वर्ष 2017-18 और 2018-19 के दौरान 6 'ट्यूहेट ' बागानों में और प्रदर्शन किए गए जिसमें 0.2 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल थे।
0.2 हेक्टेयर मॉडल में कंद फसल आधारित कृषि प्रणाली के प्रदर्शनों से पता चला कि प्रत्येक 'ट्यूहेट' की शुद्ध आय 42,200 रुपए से बढ़ाकर 1.33 (हस्तक्षेप से पहले) के बी:सी के साथ और 1,32,820 रुपए से बढ़ाकर 2.08 (हस्तक्षेप के बाद) के बी:सी के साथ कर दी गई थी। आय में वृद्धि कंद फसलों और सूअरों के एकीकरण के कारण हुई।
चूँकि सूअर निकोबारीज जनजातीय समुदाय के सामाजिक और आर्थिक पहलुओं में अहम भूमिका निभाता है, इसलिए यह मॉडल उन्हें काफी पसंद आ रहा है। उनकी पारंपरिक प्रणाली में 295 कार्य दिवस/हेक्टेयर की तुलना में कंद फसलों पर आधारित कृषि प्रणाली में रोजगार सृजन का अनुमान 510 कार्य दिवस/हेक्टेयर लगाया गया था, जो रोजगार सृजन में हुई वृद्धि को दर्शाता है। प्रणाली की सफलता के साथ ही कंद फसल आधारित कृषि प्रणाली को अपनी आजीविका विकल्प के रूप में अपनाने के लिए और अधिक जनजातीय युवा आगे आए हैं।
लिटिल अंडमान के जनजातीय क्षेत्रों में रोजगार सृजन को 70% तक बढ़ाने के साथ-साथ जनजातीय किसानों की आय को तिगुना करने के लिए इस प्रणाली का संचालन किया गया था। प्रणाली की क्षमता द्वीप पारिस्थितिक तंत्र में अतिरिक्त आय, रोजगार और खाद्य उपलब्धता में वृद्धि प्रदान कर रही है।
(स्रोत: भाकृअनुप-केंद्रीय द्वीपीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पोर्ट ब्लेयर)
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