कृषि-बागवानी की वैज्ञानिक पद्धतियों को आगे बढ़ाने के लिए मानव संसाधन विकास कार्यक्रम आयोजित

कृषि-बागवानी की वैज्ञानिक पद्धतियों को आगे बढ़ाने के लिए मानव संसाधन विकास कार्यक्रम आयोजित

8-10 जनवरी, 2024, कोलकाता

छोटे जोत की कृषि में आय बढ़ाने के लिए कृषि-बागवानी की वैज्ञानिक विधियों पर 3 दिवसीय मानव संसाधन विकास कार्यक्रम का आयोजन पश्चिम बंगाल के केवीके के सहयोग लिए भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (अटारी), कोलकाता तथा पश्चिम बंगाल पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय (डब्ल्यूबीयूएएफएस) के विस्तार तथा फार्म निदेशालय द्वारा किया गया।

डब्ल्यूबीयूएएफएस के कुलपति, प्रोफेसर श्याम सुंदर दाना ने राज्य के कृषक समुदाय के बीच बेहतर कृषि एवं बागवानी विधियों के माध्यम से उद्यमिता विकास में मदद करने के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम की आवश्यकता पर जोर दिया।

Directorate of Extensions and Farms organises HRD Programme on Scientific Agri-Horticultural Practices  Directorate of Extensions and Farms organises HRD Programme on Scientific Agri-Horticultural Practices

बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रोफेसर गौतम साहा ने छोटे और सीमांत किसानों की आजीविका में सुधार के लिए ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों के महत्व के बारे में बात की।

भाकृअनुप-अटारी, कोलकाता के निदेशक, डॉ. प्रदीप डे ने ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के साथ-साथ बेहतर रिटर्न के लिए सेंसर-आधारित ड्रोन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को नियोजित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

डॉ. बी.के. दास, निदेशक, भाकृअनुप-केन्द्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान, बैरकपुर, प्रोफेसर प्रभात पाल, डीईई, उत्तर बंग कृषि विश्वविद्यालय, कूच बिहार, प्रोफेसर पिंटू बंदोपाध्याय, डीईई, बीसीकेवी, डॉ. पार्थ दास, रजिस्ट्रार, डब्ल्यूबीयूएएफएस, डॉ. केशब चंद्र धारा, उप निदेशक (फार्म), डब्ल्यूबीयूएएफएस, और डॉ. नीलेंदु ज्योति मैत्रा, उप-निदेशक (अनुसंधान), डब्ल्यूबीयूएएफएस भी कार्यक्रम के दौरान उपस्थित थे।

कार्यक्रम में, कृषि-बागवानी की वैज्ञानिक विधियों, जैसे- मिट्टी का स्वास्थ्य, फसल तथा जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, दलहन एवं तिलहन उत्पादन की हालिया प्रवृत्ति, मिट्टी से उत्पन्न रोगों और केवीके के सामने आने वाली चुनौतियों को कम करने के लिए विस्तार रणनीतियाँ के पांच प्रमुख क्षेत्र शामिल थे।

पश्चिम बंगाल के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों के 10 केवीके से कुल 36 प्रशिक्षुओं ने कार्यक्रम में भागीदारी की।

(स्रोत: भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, कोलकाता)

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