जल मुहानों, खाड़ी, बैकवाटर्स और लैगून्स में स्थानीय रूप से तैयार किए गए पिंजरों में खारे जल में मछलियों का पालन करना सीबास जैसी मूल्यवान फिनफिश के उत्पादन हेतु एक उभरती हुई नवोन्मेषी तथा व्यावहारिक प्रौद्योगिकी है। यह प्रौद्योगिकी मत्स्य उत्पादन को बढ़ाने, रोजगार का सृजन करने और आय का सृजन करने जो कि नीली क्रान्ति के अंतर्गत भारत सरकार का एक विजन भी है, में तटवर्ती भारत के साथ साथ खारा जल संसाधनों के व्यापक क्षेत्र का उपयोग करने में प्रभावी है। इस दिशा में, भाकृअनुप – केन्द्रीय खारा जलजीव पालन संस्थान, चेन्नई जो कि खारा जलजीव पालन के विकास हेतु नोडल अनुसंधान संस्थान भी है, द्वारा राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT), चेन्नई के साथ सहयोग करते हुए तमिल नाडु के कांचीपुरम जिले में तटवर्ती गांव वेन्नागुपाट्टू में बकिंगम नहर में एशिसन सीबास मछली (लेट्स कैलकरीफर ) के पिंजरा पालन का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया गया। भाकृअनुप – केन्द्रीय खारा जलजीव पालन संस्थान (ICAR-CIBA), चेन्नई द्वारा गांवों में युवा मछुआरों को प्रोत्साहित किया गया। पिंजरा डिजाइनिंग, निर्माण, स्थापना, नर्सरी पालन और पिंजरों में मछली पालन पर राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) के साथ भागीदारी करते हुए भाकृअनुप – केन्द्रीय खारा जलजीव पालन संस्थान (ICAR-CIBA) की कृषि में युवाओं को आकर्षित करना एवं बनाये रखना (आर्या) पहल के हिस्से के तौर पर कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान किया गया। तदुपरान्त, उन्हें एक स्व: सहायता समूह बनाने की सुविधा प्रदान की गई । इन्होंने तमिल नाडु के कांचीपुरम जिले में खारे जल में मत्स्य पिंजरा पालन करने के लिए इसका नाम डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम फिश प्रोड्यूसर्स स्व: सहायता समूह रखा ।
चरणबद्ध रीति में नर्सरी पालन, प्री ग्रो आउट और ग्रो आउट पिंजरा को शामिल करते हुए एक नया त्रि स्तरीय मॉडल आजमाया गया। एशिसन सीबास (लेट्स कैलकरीफर ) मछली को इसकी वृद्धि क्षमता, बीज और आहार की उपलब्धता और कहीं अधिक बाजार मूल्य के कारण संवर्धन प्रजाति के रूप में चुना गया। नर्सरी पिंजरों में प्रारंभ में फिश फ्राई (1 सेमी. आकार वाली) का भण्डारण करके मछली पालन चक्र को प्रारंभ किया गया। मछलियां 45 – 60 दिनों में आंगुलिक आकार (7 – 8 सेमी. का आकार) में बढ़ गई। तदुपरान्त इन्हें नर्सरी से प्री – ग्रो आउट पिंजरों में स्थानान्तरित किया गया और तब 90 – 100 ग्राम वाले किशोर को प्री गो आउट से आगे पालन के लिए ग्रो आउट पिंजरों में स्थानान्तरित किया गया। भण्डारण सघनता 12 किग्रा./क्यूबिक मीटर रखी गई। इन मछलियों को भाकृअनुप – केन्द्रीय खारा जलजीव पालन संस्थान (ICAR-CIBA), चेन्नई द्वारा तैयार किए गए देशी आहार (SeebassPlus @ Rs80/kg)) को नर्सरी, प्री-ग्रो आउट और ग्रो आउट अवस्थाओं में उनके शरीर भार का क्रमश: 8-10 प्रतिशत, 4 – 6 प्रतिशत और 2 – 4 प्रतिशत दिया गया। औसत आहार रूपांतरण अनुपात (FCR) 1.85 : 1 (1 किग्रा. मछली उत्पन्न करने के लिए 1.85 किग्रा. आहार) पाया गया। छ: माह में किशोर 900 ग्राम से 1.25 किग्रा. के बाजार योग्य आकार में विकसित हो गए। एक चक्र में दो आंशिक पकड़ में 460 किग्रा. की उत्पादकता हासिल की गई। एक वर्ष में उत्पादन के दो चक्र हासिल किए जा सकते हैं। उत्पादन लागत रूपये 190 प्रति किग्रा. आंकी गई जबकि बिक्री मूल्य 2.0 के लाभ : लागत अनुपात के साथ रूपये 380 प्रति किग्रा. था। मछली पालकों को तमिल नाडु मात्स्यिकी विकास निगम से जोड़ा गया जो कि एक राज्य सरकार का निकाय है और मछली उत्पादकों को फार्म द्वार मूल्य देकर उनसे मछलियां खरीदता है और अपने आउटलेट्स के माध्यम से उपभोक्ताओं को इन्हें बेचता है।
दिनांक 4 अगस्त, 2017 को वेन्नागुपाट्टू गांव में मछली पालन स्थल पर ही एक हार्वेस्ट एवं पारस्परिक बैठक का आयोजन किया जिसमें महिला मछुआरिन और निकटवर्ती स्कूली बच्चों सहित लगभग 120 मछुआरों ने भाग लिया और हार्वेस्ट को देखा।
डॉ. के.के. विजयन, निदेशक, भाकृअनुप – केन्द्रीय खारा जलजीव पालन संस्थान (ICAR-CIBA), चेन्नई ने उत्पादित मछली की बिक्री से सृजित राजस्व को बैठक के दौरान ही समूह को हस्तांतरित किया। समूह की महिला सदस्यों जिन्होंने फिश फ्राई से आंगुलिक मछली आकार (चरण – 1) का पालन किया जो कि एक महत्वपूर्ण कार्य है, के कारण सृजित राजस्व को बैठक के दौरान ही उन्हें सौंपा गया। खारे जल के लिए पिंजरों की स्थानीयकृत डिजाइन का कार्य राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) की टीम द्वारा किया गया। इस अवधारणा में एक 'लॉजिकल प्रौद्योगिकी हस्तांतरण मोड' को अपनाया गया जो कि कौशल विकास, एक चक्र के लिए आदान (बीज एवं आहार) के प्रावधान के साथ शुरू होकर सफलतापूर्वक पिंजरा पालन व उत्पादन और सफलता विपणन तक पहुंचा। इसे आसानी से दोहराया जा सकता है। यह त्रि स्तरीय पिंजरा पालन मॉडल एक वैकल्पिक आजीविका विकल्प के रूप में मछुआरों के लिए एक विन-विन मॉडल है और साथ ही इससे बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी उत्पन्न होते हैं।
(स्रोत : भाकृअनुप – केन्द्रीय खारा जलजीव पालन संस्थान (ICAR-CIBA), चेन्नई)
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