मालदीव के सिविल सेवकों को संवेदनशील बनाने के लिए भाकृअनुप-आईआईएसडब्ल्यूसी एनसीजीजी के साथ जुड़ा

मालदीव के सिविल सेवकों को संवेदनशील बनाने के लिए भाकृअनुप-आईआईएसडब्ल्यूसी एनसीजीजी के साथ जुड़ा

2 नवंबर, 2023, देहरादून

भाकृअनुप-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (आईआईएसडब्स्यूसी), देहरादून को राष्ट्रीय सुशासन केन्द्र (एनसीजीजी), नई दिल्ली/ मसूरी, प्रशासनिक सुधार एवं लोक शिकायत विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा चिन्हित किया गया जो एक सहयोगी संस्थान के रूप में कार्य करेगा तथा अपने सहयोग से भारत के निकटवर्ती एवं मित्र देशों के सिविल सेवकों को संवेदनशील बनाएगा।

ICAR-IISWC Joins with NCGG to Sensitize Maldives Civil Servants

आईआईएसडब्ल्यूसी के प्रधान वैज्ञानिक और प्रमुख (पीएमई और केएम यूनिट), डॉ. एम. मुरुगानंदम ने आज एनसीजीजी, इंद्र भवन, एलबीएसएनएए, मसूरी में मालदीव के सिविल सेवकों/ अधिकारियों और एनसीजीजी के 28वें क्षमता निर्माण कार्यक्रम के प्रतिभागियों को संबोधित किया। डॉ. मुरुगानंदम ने जैव विविधता एवं कृषि-आधारित मॉडल साझा किए, विशेष रूप से वे जो मालदीव के संसाधनों, जलवायु एवं क्षमता के लिए प्रासंगिक और अधिक उपयुक्त हैं। उन्होंने मुख्य रूप से कृषि तथा पशुधन आधारित वस्तुओं के अलावा मत्स्य पालन और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र आधारित वस्तुओं को अपनाने एवं उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक रणनीतियों/ दृष्टिकोणों के साथ प्रौद्योगिकियों को प्रस्तुत किया।

ICAR-IISWC Joins with NCGG to Sensitize Maldives Civil Servants

यह कार्यक्रम श्री वी. श्रीनिवास, महानिदेशक, एनसीजीजी के निर्देशन में एनसीजीजी के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है और डॉ. बी.एस. बिस्ट तथा डॉ. संजीव शर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर, एनसीजीजी सहित उनकी टीम द्वारा समन्वय किया जा रहा है साथ ही एनसीजीजी द्वारा द्विपक्षीय संबंधों के हिस्से के रूप में बांग्लादेश, म्यांमार, मालदीव और अफ्रीकी देशों जैसे कई देशों के सिविल सेवकों के लिए अनुकूलित प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।

प्रतिभागियों को सामाजिक उन्नति, आजीविका, खाद्य उत्पादन एवं उपभोग की दिशा में संसाधनों के आर्थिक दोहन का प्रस्ताव और प्रगति करते हुए पर्यावरण की रक्षा के लिए पारिस्थितिक तंत्र तथा पर्यावरण के घटकों, अवधारणाओं और उन्नत प्रौद्योगिकियों, रणनीतियों एवं प्रबंधन से परिचित कराया गया।

(स्रोत: भाकृअनुप-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, देहरादून)

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