उपोषण पर्वतीय कृषि जलवायु अंचल के अंतर्गत मेघालय के रिभोई जिले का नोंग्थामई गांव जलवायु की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है और यहां रबी मौसम के दौरान पानी की बहुत कमी रहती है। यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि तथा इससे जुड़ी अन्य गतिविधियां हैं। अधिकांश किसान चावल, मक्का, सोयाबीन, टमाटर, बैंगन, अदरक हल्दी आदि उगाते हैं लेकिन उन्हें लगभग 110-120 प्रतिशत फसल गहनता प्राप्त होती है। यहां सामान्यत: चावल की खेती करते हुए एकल फसल प्रणाली अपनाई जाती है। खरीफ चावल के बाद दूसरी फसल लेने की बजाय किसान सिंचाई सुविधाओं की कमी के कारण रबी के मौसम में फसल को खाली छोड़ देते हैं। इसलिए फसल गहनता को बढ़ाने की दृष्टि से उत्तर पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र के लिए भा.कृ.अनु.प. अनुसंधान परिसर, मेघालय में एनआईसीआरए (प्रौद्योगिकी प्रदर्शन घटक) परियोजना के अंतर्गत नोंग्थामई गांव में शून्य जुताई की तकनीक लागू की गयी है।
आरंभ में शून्य जुताई प्रौद्योगिकी पर क्षमता निर्माण संबंधी कुछ कार्यक्रम आयोजित किए गए जिनमें किसानों को प्रौद्योगिकी पर आधारित ज्ञान आधारित निपुणता सम्पन्न बनाया गया। यह तकनीक सर्वप्रथम 2011-12 के दौरान एक प्रगतिशील किसान श्री स्टैफन शादाप ने अपनाई। इनके साथ-साथ अन्य चार किसानों ने भी सब्जी मटर की खेती के लिए शून्य जुताई की विधि अपनाई और यह प्रदर्शन लगभग 1.5 हैक्टर क्षेत्र में आयोजित हुआ। भा.कृ.अनु.प. ने प्रौद्योगिकी के सफल प्रदर्शन के लिए महत्वपूर्ण निवेश जैसे बीज, उर्वरक, घूरे की खाद आदि उपलब्ध कराए। इसके पश्चात समय-समय पर गांव का भ्रमण करके और उचित समय पर परामर्श सेवाएं प्रदान करके वैज्ञानिकों तथा परियोजना स्टॉफ द्वारा प्रदर्शन कार्यक्रम की नियमित निगरानी की गई।
प्रौद्योगिकी का प्रभाव
यह प्रदर्शन उपरोक्त गांव में 2011-12 से 2013-14 तक लगातार 3 वर्षों तक आयोजित किया गया। शामिल किसानों की संख्या, प्रदर्शन के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र, औसत उपज, आय आदि का विवरण सारणी में संक्षेप में दिया गया है।
सारणी : चावल-परती (एकल फसल प्रणाली), बनाम चावल-मटर (शून्य जुताई) जैसे विभिन्न फसल क्रमों से होने वाले आर्थिक लाभ
वर्ष |
शामिल किसानों की संख्या |
क्षेत्र (है.) |
फसल क्रम |
औसत उपज (क्विं./है.) |
सकल व्यय (रु./है.) |
सकल आय (रु./है.) |
शुद्ध आय (रु./है.) |
लाभ: लागत अनुपात |
||
2011-12 |
- |
- |
चावल-परती (किस्म शासारांग) (एकल फसल) |
36.85 |
19,600 |
36,850 |
17,250 |
1.88 |
||
5 |
1.5 है. |
चावल-मटर (शून्य जुताई) |
चावल |
35.00 |
18,500 |
35,000 |
16,500 |
1.89 |
||
मटर |
29.25 |
30,500 |
61, 200 |
30,700 |
2.01 |
|||||
चावल+मटर |
64.25 |
49,000 |
96,200 |
47,200 |
1.96 |
|||||
2012-13 |
- |
- |
चावल-परती (किस्म शासारांग) (एकल फसल) |
37.25 |
19,250 |
37,250 |
18,000 |
1.94 |
||
10 |
4.5 है. |
चावल-मटर (शून्य जुताई) |
चावल |
38.00 |
20,000 |
38,000 |
18,000 |
2.00 |
||
मटर |
31.65 |
31,500 |
76,125 |
44,625 |
2.42 |
|||||
चावल+मटर |
69.65 |
51,500 |
1,14,125 |
62,625 |
2.22 |
|||||
2013-14 |
- |
- |
चावल-परती (किस्म शासारांग) (एकल फसल) |
38.15 |
19,850 |
38,150 |
18,350 |
1.92 |
||
25 |
7.25 है. |
चावल-मटर (शून्य जुताई) |
चावल |
38.80 |
20,000 |
38,800 |
18,800 |
1.94 |
||
मटर |
32.75 |
33,250 |
81,900 |
48,650 |
2.46 |
|||||
चावल+मटर |
71.55 |
53,250 |
1,20,700 |
67,450 |
2.27 |
प्रौद्योगिकी का क्षैतिज प्रसार
इस जलवायु समुत्थानशील प्रौद्योगिकी का सफल प्रदर्शन 'करके सीखना' और 'देखकर विश्वास करना' के सिद्धांत पर हुआ। इस प्रौद्योगिकी के सफल प्रदर्शन के पश्चात् किसानों ने रबी के मौसम में अपने खेतों को चावल की खेती के बाद परती छोड़ने की बजाय उनमें रबी की दालें जैसे मटर की खेती की सफलतापूर्वक शुरूआत की। इस प्रौद्योगिकी के प्रभावकारी निष्पादन से इस गांव तथा आसपास के अन्य गांवों जैसे क्ल्यू, नोंगप्यारडेट, मावनोहयुरनम तथा मावक्यारडेप के किसान, ग्रामीण महिलाएं तथा ग्रामीण युवा सजग हुए तथा धान के बाद दूसरी फसल लेने के लिए इस प्रौद्योगिकी को अपनाने हेतु प्रेरित हुए क्योंकि इससे उनकी फसल गहनता बढ़ी तथा शुद्ध आमदनी में भी वृद्धि हुई। इसके अलावा यह प्रौद्योगिकी प्रतिकूल जलवायु की स्थिति में भी बेहतर पाई गई।
(स्रोत: एनआईसीआरए परियोजना का प्रौद्योगिकी प्रदर्शन घटक, उत्तर-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र के लिए भा.कृ.अनु.प., मेघालय)
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