1 जुलाई 2012, जुन्हेबोटो
जुन्हेबोटो जिले के सतखा ब्लॉक में स्थित जुईवी गांव में मिथुन पर राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्र (एनआरसी), झरनापानी और कृषि विज्ञान केन्द्र, लुमामी, नगालैण्ड विश्वविद्यालय ने संयुक्त रूप से एक स्वास्थ्य शिविर और प्रशिक्षण सत्र का आयोजन किया।

इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य मिथुन में विभिन्न बीमारियों की रोकथाम और पशुओं के उत्पादन व जनन क्षमताओं को प्रभावित करने वाले प्रबंधंन बिंदुओं के बारे में जागरूकता फैलाना था। इस गांव में लगभग 300 मिथुन हैं और मिथुन पालक एफएमडी और एंथ्रेक्स से व्यापक रूप से परेशान हैं। साल 1988-89 के दौरान ग्रामीणों ने भारी क्षति का सामना किया था जब एफएमडी के कारण लगभग 100 मिथुनों की मृत्यु हो गई थी। इस प्रशिक्षण सत्र के दौरान विभिन्न रोगों से बचने से सम्बन्धित विस्तृत सूचनाएं उपलब्ध कराई गईं। चूंकि मिथुन जंगली इलाकों में ही पाले जाते हैं, इसलिए ये विभिन्न पोषक तत्वों की कमी से जनित रोग और जनन समस्याओं से ग्रसित हो जाते हैं। इसके लिए किसानों को यह सलाह दी गई कि पोषक तत्वों की कमी से बचने के लिए विभिन्न खनिज तत्व पूरक के रूप में दिए जाएं। मिथुन पालने वाले पालनों को खासतौर पर मिथुन को खिलाने योग्य विभिन्न पोषक तत्वों वाली मिथुमिन भी उपल्बध कराई गई। इसका विकास एनआरसी द्वारा किया गया है।
इस अवसर पर लगभग 40 किसानों ने भाग लिया और बड़ी संख्या में पशुओं को एफएमडी के टीके लगाए गए। टीकाकरण कार्यक्रम के दौरान गांव में जांच के लिए मिथुन से अनेक नमूने भी एकत्रित किए गए। इस गांव में लम्बे बालों वाली एक विशिष्ट बकरी भी पाई गई है। गांव के किसान इन बकरियों को भी टीकाकरण कार्यक्रम में लाए थे। कुछ बकरियां परजीवियों और पोषक तत्वों की कमी से ग्रसित पाई गईं, इसके लिए उन्हें परजीवी नाशक दवाएं और पूरक तत्व दिए गए। इस अवसर पर दोनों ही संस्थाओं के वैज्ञानिकों ने बेहतर स्वास्थ्य प्रबंधन और पशुओं के उत्पादन पर किसानों की समस्याओं के समाधान बताए। मिथुन पर किए गए प्रयासों के लिए ग्राम पंचायत प्रमुख श्री तोशिहो नागा ने एनआरसी के निदेशक और वैज्ञानिकों को धन्यवाद दिया।
(स्त्रोत्: मिथुन एनआरसी, झरनापानी, मेजीफेमा, नगालैण्ड)
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