नारियल जैव-विविधता पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन
कासरगोड, 27 अक्टूबर 2010
मानव जाति के लिए ‘जीवन का वृक्ष’ कहे जाने वाले नारियल की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए आपसी सोच, सूचनाओं की साझेदारी और ज्ञान का निर्माण, सभी अत्यंत आवश्यक हैं। यह कहना है डॉ. एच. पी. सिंह, उप-महानिदेशक (बागवानी), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का। वे कासरगोड में आयोजित नारियल जैव-विविधता के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में व्याख्यान दे रहे थे। अपने व्याख्यान में उन्होंने भारत में नारियल उत्पादन की बाधाओं, नारियल शोध की उपलब्धियों, नारियल विकास की रणनीति, जैविक खेती और भविष्य के अनुसंधान पर विस्तार से चर्चा की। इसके साथ ही उन्होंने जैव सूचना विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी और जीनोमिक सहायता चयन और प्रतिरोधी जीन मानचित्रण आदि विषयों पर भी जोर दिया।
डॉ. सिंह ने भारतीय पर्यावरण के हित पर जोर देते हुए कहा कि पर्यावरण को स्वस्थ्य रखने के लिए नारियल के अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए क्योंकि नारियल के कई उत्पादों को विभिन्न रोगों से बचाव करने की क्षमता है। हमें इस पहलू पर गहन अध्ययन करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यह हर्ष का विषय है कि मांग के अनुरूप हम नए उपकरणों, संकर, उत्पादन प्रणाली के प्रबंधन और उत्पादों को बड़ी संख्या में विकसित करने में सफल रहे हैं।
(स्रोत- एनएआईपी सब-प्रोजेक्ट मास-मीडिया मोबिलाइजेशन, दीपा और सीपीसीआरआई, कासरगोड )
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