
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद
नई दिल्ली
आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों की खेती पर बैठक
23 अक्टूबर, 2012, नई दिल्ली
सीमित मिट्टी और जल संसाधनों से सन् 2025 में संभावित रुप से 1.5 बिलियन तक बढ़ी हुई आबादी के लिए अधिक भोजन का उत्पादन करने की आवश्यकता है। भूमि लगातार सिकुड़ रही है जिससे प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है। आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों की खेती पर विचार-विमर्श के परिप्रेक्ष्य में, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने एक बैठक का आयोजन किया जिसमें भारत सरकार के अन्य वैज्ञानिक विभागों जैसे जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी), पर्यावरण और वन विभाग, कृषि और सहकारिता विभाग (डीएसी) ने भाग लिया।
बैठक में 40 से अधिक वरिष्ठ एवं प्रख्यात वैज्ञानिक, तकनीक विशेषज्ञ और सरकारी अधिकारी शामिल हुए।
समूह ने संयुक्त रूप से भारतीय कृषि के संदर्भ में आ रही सभी चुनौतियों का एकजुट होकर सामना करने की आवश्यकता को महसूस किया। सभी प्रकार के नए विज्ञान और प्रौद्योगिकियों को संज्ञान में लेकर उनसे जुड़ी चुनौतियों का सामना करने की सराहना भी की गयी। साथ ही, समूह ने फसलों में स्थायी कृषि की ओर विभिन्न जैविक और अजैविक तनाव को सहन करने में योगदान व इसकी उपयोग दक्षता में सुधार और अनाज के पोषण की स्थिति को बढ़ाकर कुपोषण से निपटने के लिए भारत जैसे विकासशील देशों में जैव प्रौद्योगिकी की क्षमता की सराहना की।
समूह ने यह सुनिश्चित किया कि नियामक प्रणाली में सुधार के लिए जीएम फसल प्रौद्योगिकी हर संभव तरीके से भारतीय किसानों को उपलब्ध कराई जाएगी।
इस प्रकार की नई प्रौद्योगिकियों द्वारा किसानों को अधिक उत्पादन एवं उनके बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करने में सहायता मिलेगी। इस पर बल भी दिया गया कि भारत में बीटी कपास प्रौद्योगिकी की सफलता हितधारकों के लिए एक मिसाल के समान होनी चाहिए जो भविष्य में कृषि की जरूरतों को संबोधित करते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा दे सके। बैठक में अलग-अलग पृष्ठभूमि से हितधारकों के सामूहिक ज्ञान के उपयोग द्वारा भारत में पोषण विज्ञान के नेतृत्व वाली कृषि विकास में आ रही समस्याओं को संबोधित करने का संकल्प लिया गया।
(हिन्दी प्रस्तुति: एनएआईपी मास मीडिया परियोजना, कृषि ज्ञान प्रबंध निदेशालय)
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