भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आईआईपीआर) की एक परियोजना फतेहपुर जिले में ‘आदर्श बीज प्रणाली’ नाम से शुरू की गई थी। इस परियोजना का उद्देश्य जिले के किसानों और संस्थान के वैज्ञानिकों के बीच बेहतर संवाद के माध्यम से दहलन का उत्पादन बढ़ाना और सतत् फसल उत्पादन में दलहन की भूमिका में वृद्धि करना है। इस जिले के फसल चक्र में चावल और गेहूं मुख्य भूमिका निभाते हैं। कृषि वैज्ञानिकों से वार्ता के दौरान ज्यादातर किसानों का विचार था कि गेहूं के उत्पादन के बाद गर्मी में मूंग नहीं उगाई जा सकती।
इस धारणा को गलत साबित करते हुए संस्थान ने किसानों को आईआईपीआर का दौरा करने की व्यवस्था की और ग्रीष्म मूंग की उन्नत खेती को दिखाया। इसे देखकर फतेहपुर जिले के मालवान ब्लाक के महुअर और अलीपुर गांव के कुछ किसानों ने आगे बढ़कर गर्मी के मौसम में ग्रीष्म मूंग की खेती शुरू की। इसके लिए अल्पावधि किस्मों ‘मेहा’ और ‘सम्राट’ (आईआईपीआर द्वारा विकसित ) के दस ग्राम बीज छह किसानों- राजेश पटेल, बाबूराम प्रजापति, देशराज सिंह, शिव प्रताप सिंह, राम प्रकाश सिंह और राम सजीवन पटेल को उपलब्ध कराए गए।
आईआईपीआर के वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में एक साल बाद वर्ष 2008 में सरसों की खेती के उपरांत मूंग पैदा किया। किसानों ने मात्र 65 दिन में 12-14 क्विंटल/हैक्टर मूंग की पैदावार करके 50-60 हजार रुपए प्रति हैक्टर अर्जित किए। मूंग की सम्राट प्रजाति से 13.5 क्विंटल/हैक्टर और मेहा से 14.0 क्विंटल/हैक्टर की पैदावार हुई। 48 क्विंटल संपूर्ण उत्पादन में पटेल ने केवल 28,000 रुपए की लागत लगाकर 1,76000 रुपए अर्जित किए। इसी प्रकार बाबूराम प्रजापति ने 0.8 हैक्टर की पैदावार से 42,000 रुपए, शिव प्रताप सिंह ने 0.9 हैक्टर की पैदावार से 54,000 रुपए और देशराज सिंह ने 1.6 हैक्टर की पैदावार से 80,000 रुपए कमाए। आय में वृद्धि के साथ इसने किसानों की किस्मत बदल दी। अब उनके पास अपना एक ट्यूब वेल है।
महुअर और अलीपुर गावों के किसानों ने गर्मी के लिए मूंग को एक विकल्प के रूप में चुना क्योंकि उनको पूरा विश्वास था कि चावल और गेंहू के फसल चक्र को प्रभावित किए बिना गर्मी में मूंग उत्पादन से उन्हें अतिरिक्त उपज और आर्थिक लाभ मिलेगा। जल्द ही यह तथ्य आसपास के गावों को भी पता चल गया और लगभग फतेहपुर जिले के मालवान ब्लाक के 11-12 गांव के क्लस्टर के 150 हैक्टर क्षेत्र में गर्मी के दौरान मूंग बोई गई।
दोनों प्रजातियों से फली तोड़ने की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि इनकी परिपक्वता अवधि समान थी। 65 दिनों के अंदर इतना अधिक लाभ पाकर उत्साहित किसानों ने वर्ष 2009 की गर्मी/बसंत ऋतु के दौरान और अधिक क्षेत्र में मूंग की फसल लगाई। किसानों का कहना था कि मूंग के बाद लगाई गई धान की पैदावार पिछली पैदावार की तुलना में अधिक थी।
वर्ष 2009 गर्मी/बसंत ऋतु के दौरान अलीपुर गांव के राजेश पटेल ने गेहूं की कटाई के उपरांत 3.5 हैक्टर क्षेत्र में मूंग की फसल लगाई। उसने मूंग की मेहा प्रजाति को 2.0 हैक्टर और सम्राट प्रजाति को 1.5 हैक्टर क्षेत्र में 7 अप्रैल और 9 अप्रैल 2009 को सिंचाई के उपरांत बोया। उसने इस कार्य के लिए 25 कि.ग्रा. बीज उपयोग में लाए। प्रति हैक्टर के हिसाब से 100 कि.ग्रा. फास्फेट और 20 कि.ग्रा. सल्फर का प्रयोग किया और बीज को 30 से.मी की दूरी पर एक लाइन में बोया। 32 और 43 दिन के बाद दो बार सिंचाई की। साथ ही फली आने की अवस्था पर 0.03 प्रतिशत घोल वाले कीटनाशक का प्रयोग किया। इसके 65 दिन बाद फसलों को पूरी तरह से पकने के उपरांत 12 जून और 15 जून 2009 को इसकी कटाई की।
(स्रोत: मास मीडिया मोबलाइजेशन सब-प्रोजेक्ट, एनएआईपी, दीपा )
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