फलों के राजा ‘आम’ को कीटों से सुरक्षित रखने के लिए भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरु ने एक नया ट्रैप विकसित किया है। इससे न सिर्फ किसानों को राहत मिलेगी बल्कि निर्यातकों के लिए भी यह काफी फायदेमंद होगा। उम्मीद है कि इससे आम की फसल में कीटों से होने वाले 27 फीसदी नुकसान को समाप्त किया जा सकेगा।
आम के उत्पादन क्षेत्र और उत्पादकता के लिहाज से विश्व में भारत का पहला स्थान है। भारत के 23.1 लाख हैक्टर क्षेत्र में 12.75 मिट्रिक टन आम की फसल होती है। इस शानदान उत्पादन में एक कीट जिसका नाम बैक्टोसिरा डोरसलिस है, आम में रोग पैदा करके काफी नुकसान पहुंचाता है। इस कीट की वजह से आम की उपज 27 फीसदी तक खराब हो जाती है।
इस समस्या को देखते हुए संस्थान ने पर्यावरण के अनुकूल और कम लागत वाला एक सरल ट्रैप विकसित किया है। यह ट्रैप मेल एनहिलेशन टेक्नीक (मैट) पर कार्य करता है। यह ट्रैप प्लास्टिक के एक कंटेनर से तैयार किया जाता है जिसमें प्लाईवुड का एक टुकड़ा रखा होता है। प्लाईवुड के इस टुकड़े को मिथाइल यूजीनॉल और डाईक्रोलोवोस से उपचारित किया जाता है। यह ट्रैप नर कीटों को आकर्षित करता है। नर कीटों के न होने से मादा कीट प्रजनन नहीं कर पाती हैं जिससे आम की उपज का संक्रमण से बचाव होता है। एक एकड़ के लिए ऐसे छह से आठ ट्रैप काफी होते हैं।
इस ट्रैप के प्रयोग से स्वस्थ आम के फलों का उत्पादन बढ़ जाता है जिसका फायदा किसानों और निर्यातकों दोनों को होता है। इसके शुरूआती परिणाम काफी उत्साहजनक रहे हैं। नई तकनीक को अपनाने वाले किसानों को इन कीटों से होने वाली हानि कम करने में मदद मिली। इस नई तकनीक के विकास से भारत का आम निर्यात अमेरिका, जापान, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया को फिर से शुरू हो सकेगा। इन देशों ने पूर्व में भारतीय आमों के आयात पर इस कीट की वजह से रोक लगा दी थी।
अब संस्थान इस नई तकनीक का पेटेंट हासिल करने की कोशिश कर रहा है।
(स्त्रोत-एनएआईपी सब-प्रोजेक्ट मॉस मीडिया मोबलाइजेशन, दीपा और आईआईएचआर, बेंगलुरु)
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