बत्तख पानी के पक्षी हैं। गांव की स्थितियों में बत्तखों के उपयुक्त उत्पादन व प्रबंधन के लिए तालाबों का होना जरूरी है। तथापि, बत्तखों के झुंड के पालन के लिए कम से कम कितने पानी की आवश्यकता होगी, इसकी विभिन्न मॉडलों के साथ अभी गणना की जानी है। एनएआईपी (घटक 3) की 'ओडिशा के मयूरभंज, क्योंझार और संभलपुर जिलों में एकीकृत मीठा जल जंतुपालन, बागवानी और पशुधन विकास के माध्यम से टिकाऊ आजीविका में सुधार' शीर्षक की उप परियेाजना के अंतर्गत ओडिशा के 28 गांवों के लगभग 500 किसानों को बत्तख पालन में प्रेरित करके प्रशिक्षित किया गया ताकि उन्हें निरंतर आर्थिक लाभ हो सके। अधिकांश किसानों के पास छोटे तालाब हैं जिनका उपयोग मछली और बत्तख, दोनों के उत्पादन के लिए किया जा रहा है। लेकिन कुछ किसान जिनके पास कोई भी तालाब नहीं है उनका, 'पॉलिथीन के तालाबों में बत्तख पालन' के एक नए मॉडल के माध्यम से सफलतापूर्वक मार्गदर्शन किया गया।
श्री लोकनाथ देहुरी (ग्राम भाटुनिया, क्योंझार) और श्री बसंत खेती (ग्राम पुटियापल्ली, सम्बलपुर) को खाकी कैम्पबेल बत्तखों को पालने के लिए प्रेरित किया गया, भले ही उनके अपने तालाब नहीं थे। उन्हें बत्तख शिशु (श्री देहुरी को 25 और श्री खेती को 40) के साथ-साथ ब्रूडिंग के आरंभिक 10 दिनों के लिए आहार उपलब्ध कराया गया ताकि वे यह कार्य शुरू कर सकें। दोनों ने अपने घर के पिछवाड़े जमीन खोदी, उसमें मोटी पॉलिथीन की चादर बिछाई और उसे पानी से भर दिया। 20 दिनों के बाद जब किसानों ने बत्तखों को अपने तालाबों में उतारा उसके बाद श्री देहुरी तथा श्री खेती ने पॉलिथीन की पलवार लगे तालाबों में बत्तखों को भेजने में सफलता पाई। किसानों ने दिनभर बत्तखों को पानी से बाहर रखा आहार के रूप में रसोई घर का बचा हुआ भोजन, सब्ज्यिों के छिलके, बचा हुआ अन्य खाद्य पदार्थ व अन्य भोजन सामग्री दी। उन्होंने प्रति सप्ताह इस कृत्रिम तालाब का पानी बदला। और किसानों की तरह उन्होंने भी अपने घर के निकट बत्तखों के झुण्ड के लिए रात में रहने के लिए छोटा शरण स्थल बनाया।
परियोजना के वैज्ञानिकों ने बत्तखों के स्वास्थ्य तथा वृद्धि की स्थिति की नियमित निगरानी की। इन बत्तखों ने 5 माह की आयु में मादाओंके मामले में 1.46 कि.ग्रा. और नरों के मामले में 1.66 कि.ग्रा. कायाभार प्राप्त किया। श्री देहुरी और श्री खेती के बत्तख झुण्ड में पहला अंडा क्रमश: 158वें तथा 166वें दिन पाया गया। वैज्ञानिकों के परामर्श के अनुसार उन्होंने अपने नर बत्तखों को झुण्ड द्वारा अंडा देना आरंभ करने के 10 दिनों बाद बाजार में बेच दिया तथा प्रत्येक को 200-250 रु. प्रति बत्तख की दर से आय हुई। उन्होंने परियोजना द्वारा आपूर्ति की गई कैल्शियम सामग्री से युक्त और अधिक आहार अंडा देने वाली बत्तखों को खिलाया। इससे झुण्ड में छह माह के बाद अंडा उत्पादन होने लगा और एक वर्ष की आयु पूरी होने तक 60 प्रतिशत से अधिक अंडा उत्पादन लिया गया। बिना किसी कठिनाई के उन्होंने 5 रु. प्रति अंडे की दर से अंडे बेचे और कुछ का स्वयं भी उपभोग किया। इससे श्री देहुरी और श्री खेती को एक वर्ष में क्रमश: 11,000 रु. और 18,000 रु. का लाभ हुआ और उनकी आजीविका को एक नया सहारा मिला।
अब सम्बलपुर और क्योंझार के अनेक अन्य किसान श्री देहुरी और श्री खेती द्वारा आरंभ की गई इस सफल विधि को अपना रहे हैं और इससे पॉलिथीन के कृत्रिम तालाब में बत्तख का पालन लाभदायक सिद्ध हुआ है। यह विधि परंपरागत गांव के तालाब में बत्तख पालन का एक विकल्प बन गई है।
(स्रोत : क्षेत्रीय केन्द्र सीएआरआई भुबनेश्वर )
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