20 दिसंबर, 2022, अल्मोड़ा
भाकृअनुप-विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा में डीएसटी - विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित त्वरित विज्ञान योजना के तहत "पर्वतीय कृषि से जुड़े रोगजनक पादप कीट की पहचान पर आज 10 दिवसीय व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है।


इस कार्यशाला का उद्घाटन भाकृअनुप-विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रयोगात्मक प्रक्षेत्र हवालबाग में किया गया। उद्घाटन समारोह में, डॉ. लक्ष्मी कांत, निदेशक, भाकृअनुप-विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा; डॉ. जे.के. बिष्ट, प्रभागाध्यक्ष, फसल उत्पादन प्रभाग; डॉ. एन.के. हेडाऊ, प्रभागाध्यक्ष, फसल सुधार विभाग; डॉ. के.के. मिश्रा, प्रभागाध्यक्ष, फसल सुरक्षा विभाग और डॉ. बी.एम. पांडे, अनुभागध्यक्ष, सामाजिक विज्ञान अनुभाग सम्मिलित हुए। डॉ. लक्ष्मी कांत ने सभी प्रतिभागियों को संस्थान की उपलब्धियों, इसके ऐतिहासिक महत्व, आकांक्षाओं और 98 वर्ष के सफल कार्यकाल से अवगत कराया। उन्होंने 112 आवेदकों में से चयनित सभी 20 प्रतिभागियों को बधाई दी। डॉ. कांत ने इस कार्यक्रम से लाभान्वित होने के लिए प्रतिभागियों का कार्यशाला में सक्रिय रूप से शिरकत करने की अपील की, साथ ही कार्यशाला की सफलता की कामनाओं एवं प्रतिभागियों को शैक्षणिक रूप इस परिसर में सीखने के लिए प्रेरित किया।

कार्यक्रम के आयोजक, डॉ. आशीष कुमार सिंह, वैज्ञानिक, नेमाटोलॉजी ने सभी का स्वागत करते हुए कार्यशाला के महत्व से अवगत कराया। प्रधान वैज्ञानिक, डॉ. एन.के. हेडाऊ ने पर्वतीय कृषि में रोगजनक कीट से निदान के महत्व के बारे में बताया। प्रधान वैज्ञानिक, डॉ. जे.के. बिष्ट ने बदलते जलवायु परिदृश्य से संबंधित क्षेत्रों में पौधों की बीमारियों, नेमाटोड और कीट के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि कैसे वे लंबे समय से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। प्रधान वैज्ञानिक, डॉ. के.के. मिश्रा ने गेहूँ के रतुआ रोग में विभिन्न नैदानिक तकनीकों की भूमिका पर बल दिया। प्रधान वैज्ञानिक, डॉ. बी.एम. पांडेय ने बताया कि वर्तमान कृषि में फसल सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है इसको ध्यान में रख कर किसानों के इन समस्याओं को दूर करने के लिए इसके लक्षण और निदान की जानकारी उन्हें प्रदान की जानी चाहिए। पर्वतीय कृषि से जुड़े रोगजनक कीट निदान तकनीक प्रदान करने के लिए कार्यशाला को विशेष रूप से स्नातकोत्तर और पीएचडी छात्रों के लिए प्रारूपित किया गया है।
यह 10 दिवसीय पाठ्यक्रम - कीट, सूत्रकृमि और रोग निदान तकनीक विभिन्न व्याख्यानों के माध्यम से प्रशिक्षुओं में दक्षता विकसित करने में सफल होगा। यहां विशेषज्ञों द्वारा प्रतिभागियों से व्यावहारिक अभ्यास भी कराया जायेगा। इस कार्यशाला में विभिन्न राज्यों, खासकर, हिमाचल प्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू, राजस्थान के स्नातकोत्तर व पीएचडी के 20 छात्र भाग ले रहे हैं।
कार्यक्रम के अंत में, डॉ गौरव वर्मा, प्रशिक्षण समन्वयक ने सभी आमंत्रित गणमान्य व्यक्तियों, प्रतिभागियों को अपनी गरिमामयी उपस्थिति से इस अवसर की शोभा बढ़ाने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने इस कार्यशाला को आयोजित करने के लिए प्रायोजन हेतु डीएसटी - विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), नई दिल्ली को भी धन्यवाद दिया।
(स्रोतः भाकृअनुप-विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा)
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