प्याज और लहसुन ये दो ऐसी महत्वपूर्ण व्यावसायिक फसलें हैं जो किसानों की आजीविका में सुधार ला सकती हैं। वे जनजातियों के भोजन और पोषण सुरक्षा में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। महाराष्ट्र में नंदुरबार के जनजातीय पट्टी में व्यावसायिक स्तर पर प्याज और लहसुन की खेती के लिए अनुकूल जलवायु स्थितियां पाई गई हैं। किंतु आईसीएआर- प्याज और लहसुन अनुसंधान निदेशालय, राजगुरुनगर (आईसीएआर-डीओजीआर) द्वारा इस क्षेत्र में जनजातीय उप-योजना (टीएसपी) की शुरूआत से पहले इन फसलों की खेती सिर्फ गृह वाटिका (किचन गार्डन) तक ही सीमित थी। टीएसपी के तहत, बेहतर प्रौद्योगिकियों के अच्छी प्रकार से अपनाने से प्याज और लहसुन के इलाके और उत्पादन में सुधार हेतु व्यवस्थित प्रयास किए गए। इस प्रकार, उन्नत बीजों/कंदों के वितरण, ज्ञान के प्रसार, क्षमता और उद्यमिता विकास के माध्यम से किसान के खेतों में उन्नत प्रौद्योगिकियों के खेत-प्रदर्शन संचालित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
इस योजना के तहत 55 समूहों के रूप में लगभग 550 आदिवासी किसानों का चयन किया गया था। खेत प्रदर्शन, प्रशिक्षण और निवेश वितरण के लिए प्रत्येक ग्रुप में एक एकड़ भूमि सहित 10 किसानों का चयन किया गया। प्याज और लहसुन पर टीएसपी के कार्यान्वयन हेतु तीन तालुकों यथा नंदुरबार के नवापुर, अकालकुआ और ढडगांव से बत्तीस आदिवासी गांवों का चयन किया गया । प्याज और लहसुन की नई उन्नत किस्मों और बेहतर उत्पादन तकनीकों पर कुल मिलाकर 124 प्रदर्शनों को आयोजित किया गया। प्याज और लहसुन की वाणिज्यिक खेती करके सभी चयनित 32 आदिवासी गांवों को लाभ प्राप्त हुआ। आईसीएआर-डीओजीआर द्वारा 22 फील्ड दिवस/प्रशिक्षणों के आयोजन से 2000 से अधिक जनजातीय किसानों को प्रशिक्षित किया गया । चयनित क्षेत्रों के अधिकांश किसान अब व्यावसायिक तौर पर प्याज और लहसुन की खेती कर रहे हैं। इन क्षेत्रों में परंपरागत रूप से उगाई जाने वाली फसलों की तुलना में प्याज और लहसुन की खेती से अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है और यहां तक कि इंदौर बाजार में उत्पादित प्याज से उच्चतम कीमत भी मिली है।
तकनीकी हस्तक्षेप
नंदुरबार के चयनित जनजातीय क्षेत्रों में बेहतर उत्पादन और फसलोपरांत प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन किया गया। नंदुरबार के नवापुर तालुका में पहली बार व्यावसायिक स्तर पर लहसुन की खेती प्रारंभ की गई। प्रति एकड़ लगभग 35 क्विंटल कंदों (बल्ब) के उत्पादन के माध्यम से किसानों ने लहसुन की भिमा पर्पल किस्म की खेती से प्रति एकड़ रु0 0.80-1.00 लाख (तालिका 1) की शुद्ध आय अर्जित की। नंदुरबार के नवपुर तालुका में पहली बार व्यावसायिक स्तर पर खरीफ प्याज की खेती प्रारंभ की गई। खरीफ मौसम के दौरान किसानों ने प्याज की भीमा सुपर किस्म के 85 क्विंटल कंदों के उत्पादन से प्रति एकड़ 0.70-0.80 लाख रूपयों की शुद्ध आय अर्जित की जबकि रबी मौसम में भीमा शक्ति/भीमा किरण के 110 क्विंटल/एकड़ कंदों के उत्पादन से लगभग इतनी ही आय प्राप्त की। नंदुरबार क्षेत्र में प्याज के बीज-उत्पादन के लिए भी अनुकूल जलवायु स्थितियां हैं। शहद मधुमक्खियों की व्यापक तौर पर उपलब्धता जो प्याज के मुख्य परागक हैं, इस क्षेत्र में प्याज के बीज-उत्पादन की संभावना को और अधिक बढ़ाते हैं। किसानों ने अर्जित किया है भीमा किरण/भीमा सुपर के लगभग 200 किग्रा/एकड़ गुणवत्ता वाले बीजों के उत्पादन से रू0 0.60-0.80 लाख/एकड़ शुद्ध आय अर्जित की है। चयनित किसान के खेतों में ड्रिप सिंचाई और उर्वरकों के प्रयोग से प्याज और लहसुन की खेती में सिंचाई और उर्वरक उपयोग दक्षता में वृद्धि हुई। प्याज और लहसुन में एकीकृत कीट और रोग प्रबंधन (आईपीडीएम) और एकीकृत पोषक प्रबंधन (आईएनएम) का प्रदर्शन किया गया। रबी फसल से प्राप्त प्याज के कंदों के भंडारण हेतु चयनित किसानों को भंडारण संरचनाओं को विकसित करने के लिए सहायता दी गई।
तालिका 1. प्याज और लहसुन से प्राप्त आय और उसका प्रदर्शन
क्रियाकलाप |
प्रदर्शनों की संख्या |
औसत बिक्री योग्य उपज (क्विं/ एकड़) |
शुद्ध प्राप्ति (रु0/एकड़ लाख में ) |
किसान को प्राप्त लाभ |
खरीफ मौसम में प्याज का उत्पादन |
25 |
85 |
0.70-0.80 |
250 |
रबी मौसम में प्याज का उत्पादन |
60 |
110 |
0.70-0.80 |
600 |
प्याज के गुणवत्तायुक्त बीज का उत्पादन |
29 |
2 |
0.60-0.80 |
290 |
लहसुन का उत्पादन |
10 |
35 |
0.80-1.00 |
100 |
टीएसपी का प्रभाव
नंदुरबार में प्याज का इलाका और उपज टीएसपी को अपनाने के बाद तीन गुना से अधिक बढ़ गया है(तालिका 2)। नंदुरबार जिले में प्याज की खेती के तहत क्षेत्र 2232 हेक्टेयर (2012-13) से बढ़कर 7469 हेक्टेयर (2015-16) हो गया है जबकि प्याज का उत्पादन 40538 टन (2012-13) से बढ़कर 127228 टन (2015-16) हो गया है। प्रारंभ में नंदुरबार में लहसुन की खेती लगभग न के बराबर थी, जबकि वर्तमान में व्यावसायिक स्तर (250 हेक्टेयर) पर इसका उत्पादन किया जा रहा है। चयनित आदिवासी किसानों को प्याज के बीज उत्पादन से प्राप्त आय को सुनिश्चित करने के लिए आईसीएआर-डीओजीआर द्वारा प्याज के बीज की बाई-बैक योजना चलाई गई। आईसीएआर-डीओजीआर द्वारा चलाई गई पहलों के कारण आय-स्तर में वृद्धि होने के पश्चात, जनजातीय किसानों ने नंबोनी, नंदुरबार में एनईएसयू परिसर किसान उत्पादक कंपनी की स्थापना की और उसे आदिवासी उप-योजना के माध्यम तथा आईसीएआर-डीओजीआर के समर्थन से कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार में पंजीकृत कराया। टीएसपी योजना के माध्यम से आईसीएआर-डीओजीआर के हस्तक्षेप से टीएसपी के तहत चयनित किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ है।
तालिका 2. नंदुरबार में प्याज और लहसुन के क्षेत्र और उत्पादन के संबंध में आंकड़े
फ़सल |
2012-13 |
2015-16 |
2012-13 की तुलना में % वृद्धि |
|||
क्षेत्र |
उत्पादन |
क्षेत्र |
उत्पादन |
क्षेत्र |
उत्पादन |
|
प्याज |
2,232 हेक्टेयर |
40,538 टन |
7,469 हेक्टेयर |
1,27,228 टन |
335% |
314% |
लहसुन |
- |
- |
250 हेक्टेयर |
750 टन |
- |
- |
स्रोत: कृषि आयुक्त (एमएस) दिनांक दिसंबर, 2016
(स्रोत: आईसीएआर- प्याज और लहसुन अनुसंधान निदेशालय, राजगुरुनगर)
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