हरित क्रान्तिके बाद से भारत ने कभी खाद्यान्न उत्पादन के मामले में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा जिसके लिए देश फसल सुधार में कृषि वैज्ञानिकों के सतत प्रयासों के प्रतिअपना आभार व्यक्त करता है जिसमें नई किस्मों को विभिन्न रोगों के प्रतिकहीं अधिक प्रतिरोधी बनाना शामिल है। गेहूं उत्पादन को बढ़ाने में एक बड़ी बाधा रतुआ रोग यथा पत्ती रतुआ, तना रतुआ और धारीदार रतुआ रोग का किस्म पर हमला करना होता है। इन रोगों की प्रतिरोधिता के स्रोत ज्ञात हैं और लंबे समय से गेहूं प्रजनकों द्वारा इनका उपयोग किया जा रहा है। हालांकि, टिकाऊ प्रतिरोधिता हासिल करना मुश्किल हो सकता है और रतुआ रोग पनपना जारी रखता है और प्रजनकों की उपलब्धियों को बाधित करता है। हालिया अतीत में विभिन्न गेहूं बुवाई क्षेत्रों में रतुआ रोग फैल रहा है और रोम में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा दिनांक 3 फरवरी, 2017 को तीन रोगों के बारे में चेतावनी जारी की गई। वर्ष 2016 में सिसली, यूरोप में रतुआ का बड़ा हमला सामने आया और यहां तक कि पास्ता बनाने में उपयोग किए जाने वाला डुरूम गेहूं भी इसके प्रतिसंवेदनशील पाया गया।
कृषि विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग करके भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों द्वारा भाकृअनुप – राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, पूसा, नई दिल्ली में स्थित भारतीय राष्ट्रीय जीनबैंक में संरक्षित समग्र गेहूं जननद्रव्य संकलन (~20000 प्राप्तियां) का मूल्यांकन करके एक इतिहास रचा गया। कुल 37 योगदानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन के परिणामों को ‘PLOS ONE’ http://dx.doi.org/10.1371/journal.pone.0167702) में प्रकाशित किया गया। बहु रतुआ प्रतिरोधी गेहूं किस्मों के प्रजनन हेतु जीन की लगातार खोज को ध्यान में रखते उक्त परिणाम व्यापक व्यावहारिक महत्व वाले हैं। यह इस स्तर पर जीनबैंक संकलनों पर अभी तक किए गए परीक्षणों की अपनी तरह की पहली सोच है।
इससे पहले, एक ही स्थान (2011-12) पर समग्र गेहूं जननद्रव्य का लक्षण वर्णन करके कोर विकसित किया गया था (DOI 10.1007/978-4-431-55675-6_4) । इस अभूतपूर्व पहल को वर्ष 2013 में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में स्थान मिला।
जननद्रव्य मूल्यांकन पर किए गए वर्तमान अध्ययन के तहत सभी प्रकार के रतुआ और स्पॉट ब्लॉच रोगों की प्रतिरोधिता के लिए जीनों के वाहक नए गेहूं जननद्रव्य संसाधनों की खोज की गई। देश के भीतर तथा बाहर से गेहूं की तीन प्रजातियों यथा ट्रिटिकम ऐस्टीवम , ट्रिटिकम डुरूम तथा ट्रिटिकम डाइकोकम को शामिल करते हुए कुल 19,460 गेहूं प्राप्तियों की स्क्रीनिंग वर्ष 2011-14 के दौरान बहु रोग हॉट-स्पॉट स्थानों जैसे कि गेहूं रतुआ के लिए वेलिंग्टन (तमिल नाडु); धारीदार रतुआ के लिए गुरदासपुर (पंजाब); और स्पॉट ब्लॉच के लिए कूच बिहार (पश्चिम बंगाल) में फसल सीजन के दौरान की गई। इससे बहु रतुआ (498 प्राप्तियां) और स्पॉट ब्लॉच (868 प्राप्तियां) की क्षमताशील प्रतिरोधी प्राप्तियों को छांटने में मदद मिली।
फ्लावरडेल, शिमला, हिमाचल प्रदेश में बनावटी पादप महामारी परिस्थितियों में गेहूं के तीन रतुआ के कुल सात विषालु रोगप्ररूपों जिन्हें 1930 से संकलित किया गया है, के विरूद्ध पौद प्रतिरोधिता के लिए चुनी गई प्राप्तियों की जांच करने से बहु रतुआ की क्षमताशील प्रतिरोधिता रखने वाली कुल 137 प्राप्तियों की पहचान करने में मदद मिली। आणविक विश्लेषण करने से अध्ययन का और अधिक महत्व बढ़ा और इससे पत्ती रतुआ, तना रतुआ, धारीदार रतुआ और स्पॉट ब्लॉच की प्रतिरोधिता प्रदान करने वाले आनुवंशिक लोकाई के विभिन्न संयोजनों की पहचान करने में मदद मिली। इस अध्ययन के अंतर्गत विशेषक धारीदार रतुआ के विरूद्ध पहचानी गई प्रतिरोधी जननदगव्य प्राप्तियों द्वारा पारमपरिक अथवा आणविक प्रजनन तकनीकों के माध्यम से अधिक पैदावार देने वाली गेहूं किस्मों की आनुवंशिक पृष्ठभूमि में बहु रोग प्रतिरोधिता को शामिल करने के लिए क्षमताशील संसाधन के तौर पर कार्य किया जा सकता है जिससे कि राष्ट्रीय एवं विश्व स्तर पर खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। इस अध्ययन को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की निक्रा योजना के तहत वित्तीय सहायता मिली।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा किए गए अन्य प्रमुख वैज्ञानिक ब्रेकथ्रू से गेहूं रतुआ कवक पक्सीनिया ट्रिटिसिना के 15 स्ट्रेनों के जीनोम का खुलासा करने में मदद मिली। इससे खतरनाक गेहूं रोगजनक की गतिशील प्रवृतिको समझने में मदद मिलेगी। जीनोम बायोलॉजी एंड इवोलुशन (http://gbe.oxfordjournals.org/content/8/9/2702.full.pdf+html) में प्रकाशित पेपर ''ड्राफ्ट जीनोम ऑफ दि व्हीट रस्ट पैथोजन (पक्सीनिया ट्रिटिसिना ) '' से विकास अवधि के दौरान जीनोम वार संरचनात्मक भिन्नताओं का खुलासा हुआ। इस अध्ययन में रिसफलिंग के लिए संवदेनशील रेस 77 के जीनोम में कुछ ''हॉट स्पॉट रीजन्स'' का पता चला जिससे इसकी भिन्नता का पता लगाकर जीनोम की संरचना, संगठन और भिन्नता एवं रोगजनता के आणविक आधार पर विशेष बल देते हुए पी. ट्रिटिसिना पौधा कवकीय रोगजनक के बारे में कहीं अधिक जानकारी मिलती है । यह जीनोम सूचना भारत में प्रमुख उल्लेखनीय अनुसंधान होगा और इससे देश में गेहूं में किस्मीय सुधार लाने में मदद मिलेगी।
गेहूं रतुआ के लिए पूरी तरह से समर्पित अनुसंधान केन्द्र
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थान भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल का फ्लॉवरडेल, शिमला में एक अनुसंधान केन्द्र कार्यरत है जो कि अपने प्रमुख अधिदेश के अनुसार पूरी तरह से गेहूं रतुआ के सभी पहलुओं पर कार्य करने हेतु एक समर्पित केन्द्र है। पिछले कई दशकों तक रतुआ की निगरानी, समय से पूर्वानुमान और निवारक रणनीतियों को अपनाए जाने के कारण भारत को गेहूं रतुआ के किसी भी प्रकार के प्रमुख प्रकोप से मुक्त रखा जा सका है। गेहूं रतुआ के कारण होने वाले मात्र 5 प्रतिशत नुकसान के कारण भारत में 3.5 मिलियन टन की उपज कमी हो सकती है। यह लगभग रूपये 3500 करोड़ के समतुल्य है। नए वैरिएंट का समय से पता लगाने और प्रतिरोधी सामग्री की पहचान करने से गेहूं में होने वाले किसी भी प्रमुख नुकसान को रोका जा सका। गेहूं रतुआ विषाक्तता के मजबूत एवं जीवंत कार्यक्रम के परिणामस्वरूप देश की पोषणिक एवं खाद्य सुरक्षा को भरपूर लाभ मिला।
अधिक जानकारी के लिए लिंक करें :
http://journals.plos.org/plosone/article?id=10.1371/journal.pone.0167702
http://www.dwr.res.in/sites/default/files/shimla.pdf
http://www.icar.org.in/en/node/11603
http://rusttracker.cimmyt.org/?page_id=1509
(स्रोत : कृषि ज्ञान प्रबंध निदेशालय, नई दिल्ली)
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