श्री श्रीशैल तिम्मनागोडार, 39 वर्षीय, वाणिज्य स्नातक के पास पुणे-बेंगलूरू राजमार्ग पर धारवाड़ जिले के हिरेमालीग्वादा गांव में 11 एकड़ फार्म है। वर्ष 2007 में इन्होंने व्यवसाय के रूप में डरी फार्म खोलने का फैसला किया और भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान के धारवाड़ क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र पर चारा उगाने की तकनीकी जानकारी प्राप्त करने के लिए संपर्क किया। फार्म में संसाधन उपलब्धता जैसे मृदा, सिंचाई स्रोत, भू-आकृति, मजदूरों की उपलब्धता और दैनिक चारा मांग आदि का पता लगाने के लिए केन्द्र के वैज्ञानिकों ने फार्म का दौरा किया। शहरी और औद्योगिक क्षेत्रों के बीच रास्ते में स्थित होने से मजदूरों की कमी यहां प्रमुख बाधा नजर आई। इसलिए केवल उच्च उत्पादक बहु वर्षीय चारा फसलें उगाने की योजना बनाई गयी क्योंकि वार्षिक चारा फसलों की तुलना में इसमें कम जमदूरों की आवश्यकता होती है।
भूमि के उर्वर भाग में 60 X60 से.मी. की दूरी पर उच्च उत्पादक बाजरा नेपियर संकर (IGFRI-7 और DHN-6) और कम उत्पादक भूमि पर गिन्नी घास उगाने की सिफारिश की गयी। धारवाड़ केन्द्र से ही इन्होंने रोपण सामग्री खरीदी। वैज्ञानिकों ने इनके फार्म पर रोपाई का प्रदर्शन किया और रोपण गतिविधि की गहन निगरानी की क्योंकि बहुवर्षीय फसलों में अच्छे उत्पादन के लिए सही देख-भाल बहुत जरूरी है। योजना अनुसार पहले दो एकड़ पर रोपाई की गयी। उर्वरक प्रयोग की सही मात्रा और समय की जानकारी इन्हें दी गयी। वर्ष भर चारे की उपलब्धता के लिए कटाई प्रबंधन की तकनीकी जानकारी भी प्रदान की गयी।
रोपाई के 70 दिन बाद पहली बार चारे की कटाई की गयी और आगामी कटाईयों का समय इस प्रकार निर्धारित किया गया कि 45-50 दिन बाद प्रत्येक छः पंक्तियों की कटाई की जा सके। पहले साल इन्हें 27 उच्च उत्पादक पशुओं के आहार के लिए प्रतिदिन 2-2.5 क्विंटल चारा उपलब्धता बनी रही। खरीफ 2008 में चारा फसल की जड़े जमीन पर फैलने के कारण इन पर मिट्टी चढ़ाने की सिफारिश की गयी। पहले ये 4,500 रु. प्रति ट्रैक्टर की दर से 30 टैक्टर प्रतिवर्ष भूसे की खरीद किया करते थे जिससे लागत बढ़ जाती थी। वर्ष 2010 में उच्च उत्पादक चारा फसलों के लाभ और सूखे चारे पर खच्र में कमी के लाभ बताकर इन्हें छः एकड़ भूमि पर उन्नत चारा फसलें उगाने के लिए राजी किया गया। इससे इन्हें प्रतिदिन औसतन 6 क्विंटल हरा चारा मिल जाता है। खेत की मेड़ पर फलीदार फसल के लिए इन्हें सेस्बेनिया सेस्बेन उगाने का परामर्श दिया गया। इन्होंने 18 भैंसों से शुरुआत करके धीरे-धीरे जानवरों के झुंड को बढ़ाना शुरू कर दिया। अब इन्होंने 40 पशुओं के आवास के लिए 4,500 वर्ग फुट पर छप्पर डाल दिया है।
श्रीशैल गर्व से बताते हैं, ''अब रोजाना 120 लीटर दूध का उत्पादन होता है और इसे 35 रु. प्रति लीटर के दाम पर बेचा जाता है। हरा चारा खिलाने से आहार सान्द्र का काफी खर्च अब बच गया है।'' उनके अनुसार हरा चारा लिखने से 20-30 प्रतिशत अधिक दूध का उत्पादन भी होता है। ''वर्ष भर हरे चारे की उपलब्धता के कारण मैं अब झखेड़ का आकार बढ़ाने वाला हूं।''
(स्रोतः आईजीएफआरआई, झांसी)
(हिन्दी प्रस्तुतिः एनएआईपी मास मीडिया परियोजना, कृषि ज्ञान प्रबंध निदेशालय, आईसीएआर)
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