गुनिया, झारखंड के गुमला जिले का एक छोटा सा गांव है। इस गांव की अधिकांश जनसंख्या आदिवासी है और खेती उनकी आजीविका का मुख्य साधन है। पहले गांव में तीन लगभग निष्क्रिय पड़े तालाबों के अलावा सिंचाई का और कोई स्रोत नहीं था और फसलों की खेती मात्र 5-7 हैक्टर में गेहूं के लिए, 2-3 हैक्टर में सब्जियों के लिए और मात्र 0.5-1 हैक्टर गन्ने के लिए सीमित थी। इस प्रकार कृषि पूर्णत: वर्षा पर निर्भर थी और वर्ष में एक फसल ही ली जाती थी। उत्पादन भी वांछित मात्रा से बहुत अधिक कम था। यद्यपि उप नदी महसरिया (बहु वार्षिक प्रकृति की) से जल के रूप में प्रचुर प्राकृतिक संसाधन गांव से होकर बहता था लेकिन सिंचाई के उद्देश्य से नदी के जल का उपयोग करने पर कभी भी गंभीरता से विचार नहीं किया गया।
निक्रा का कार्यान्वयन
गुनिया गांव (गहन और नियमित सूखे से गंभीर रूप से प्रभावित) में निक्रा परियोजना के कार्यान्वयन की दृष्टि से कृषि विज्ञान केन्द्र,गुमला ने इस गांव में उपलब्ध संसाधनों का आलोचनात्मक मूल्यांकन किया ताकि गांव की कृषि की दशा को सुधारने की दिशा में एक कार्यशील कार्य योजना विकसित की जा सके। मानवीय संसाधनों के अलावा कृषि विज्ञान केन्द्र में जल के प्रचुर प्रवाह की भी पहचान की जो आगे चलकर विकास का एक प्रमुख स्रोत बन गया। ग्रामवासियों से विस्तृत और बार-बार चर्चा करने पर ग्रामवासी सहमत हुए तथा नदी के जल को रोकने के लिए बालू के बोरों से नदी पर चैक बांध निर्मित करने के लिए निशुल्क श्रम (श्रम दान) प्रदान करने के लिए तैयार हुए। यह निर्णय भी लिया गया कि उप नदी में बालू के बोरों से चैक बांध बनाने के लिए मानसून के समाप्त होने पर नदी के जल को आंशिक रूप से रोका जाए। उप नदी में बालू के बारों का चैक बांध बनाने के लिए दो दिन में 350 ग्रामवासियों अपनी स्वैच्छिक भागीदारी सुनिश्चित की। अस्थायी बालू के बारे से बने चैक बांध से बड़ी मात्रा में जल को रोकने में सहायता मिली और इससे खरीफ मौसम के बाद तथा पूरे रबी मौसम में जल का सिंचाई के लिए उपयोग करना संभव हुआ।



बालू के बोरों से नदी पर अस्थायी चैक बांध बनाने की इस अनूठी विधि से नए उत्साह के साथ गुनिया गांव में कृषि संबंधी गतिविधियों को चलाने के अवसर सृजित हुए। इसके अलावा गांव में जल का तल भी 44 प्रतिशत ऊपर उठ गया और इससे क्षेत्र के 10.0 हैक्टर क्षेत्र में बेमौसमी सब्जियों की खेती, 10.0 हैक्टर में ग्रीष्म कालीन धान की खेती, 50.0 हैक्टर में गेहूं की खेती और वर्षा की गहन कमी के दौरान 30.0 हैक्टर में धान की ख़ड़ी फसल की सुरक्षित कटाई करने के अवसर उपलब्ध हुए।
आस पड़ोस के गांवों के लिए प्रेरणा
यह सफलता केवल गुनिया गांव तक ही सीमित नहीं रही बल्कि आस-पास के गांवों के किसानों और जन-प्रतिनिधियों ने इसी नदी पर 8 विभिन्न स्थानों पर ऐसी बोराबंदी से बांध बनाने के लिए अपनी सहायता प्रदान की। इन संचयी प्रभावों के परिणामस्वरूप 125 एकड़ क्षेत्र में गेहूं की फसल का बड़े पैमाने पर उत्पादन लिया गया जो कल्पना से भी परे था। इस अपार सफलता से अन्य किसान, स्वयंसेवी संगठन, जनता के चुने हुए प्रतिनिधि और प्रशासक भी पारस्परिक लाभ के आधार पर जल के कारगर प्रबंधन और संरक्षण की विधियों का पता लगाने में इन ग्रामवासियों से जुड़ गए हैं। झारखण्ड के गौण सिंचाई विभाग ने वर्षभर सिंचाई के उद्देश्य से बहुवर्षीय आधार पर पानी को रोकने के लिए 3.94 करोड़ रु. की लागत से एक पक्का चैक बांध बनाने की दिशा में पहल शुरू कर दी है। उपायुक्त, गुमला जिले में कृषि विज्ञान केन्द्र की सहायता से चैक बांध का दूसरा मॉडल विकसित करने के लिए पड़ोस के डुमरी ब्लॉक में 'सूक्ष्म आर्थिक सामाजिक संगठन परियोजना' के कार्यान्वयन के लिए 89.0 लाख रुपये की राशि स्वीकृत की है।
पूरे वर्ष सिंचाई की उपलब्धता सुनिश्चित करने के अलावा कृषि योग्य क्षेत्र के विस्तार व बढ़ी हुई फसल गहनता के साथ-साथ बालू के बोरों से चैक बांध बनाने की विधि ने अन्य सभी स्टेकहोल्डरों के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। वे एक संयुक्त प्रयास के रूप में विकास संबंधी इस मुददे को आगे बढ़ा रहे हैं। इस प्रयास से विशेष रूप से आदिवासी समुदाय को बहुत लाभ हुआ है।
(आंचलिक परियोजना निदेशालय अंचल कोलकाता)
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