सोयाबीन की एक नई किस्म ने उज्जैन में सामाजिक बदलाव उत्पन्न कर दिया है। राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विज्ञान केन्द्र (केवीके), उज्जैन ने सोयाबीन 95-60 जे एस नाम के नए किस्म को शामिल किया गया है जो क्षेत्र की सबसे अच्छी सोयाबीन-आलू-प्याज/लहसुन फसल प्रणाली है। यह एक कम अवधि सोया किस्म है जो पारंपरिक सोया जे एस-335 किस्म की तुलना में बेहतर उत्पादकता दे रही है। इससे पहले, प्रौद्योगिकी को न अपनाने के कारण वहां कम उत्पादकता की कई समस्याएं थीं।
उच्च उपज और कम अवधि वाली सोया किस्म के प्रदर्शन के लिए केवीके ने तीन समूहों घाटिया, उज्जैन और मेहीदपुर को चुना। केवीके ने फील्ड परीक्षण, प्रशिक्षण और विस्तार गतिविधियों जैसे तरीकों को अपनाया। 2007-2010 वर्षों के दौरान अग्रिम प्रदर्शन (एफएलडी) के द्वारा और किसानों की खेती पर 57.22% की वृद्धि हुई और अधिकतम उपज 31.25 क्विंटल / हैक्टर हासिल की गई। इस नई किस्म के तहत कुल क्षेत्र 2987 हैक्टर था। वर्तमान में, उज्जैन जिले में 50 प्रतिशत क्षेत्र इस किस्म के द्वारा कवर किए गए हैं।
उज्जैन क्लस्टर में, केवीके ने कुल 184 प्रदर्शन किये हैं और औसत सकल लाभ 40,275 रुपये / हैक्टर रहा। औसत सकल लाभ में भी इजाफा हुआ। अग्रिम प्रदर्शन के दौरान, यह 30,275 रुपये / हैक्टर था, जबकि किसानों का खेती में, 19,561 रुपये / हैक्टर देखा गया। केवीके को इस क्लस्टर में सफलता भी मिली। इस क्षेत्र में कुल 106 प्रदर्शन किए गए हैं और औसत सकल लाभ 38,499 रुपये / हैक्टर अग्रिम प्रदर्शन में और 26,511 रुपये / किसानों की खेती में देखा गया। उसी तरह, मेहीदपुर क्लस्टर में प्रदर्शनों की कुल संख्या 68 थी और औसत सकल लाभ 35,122 रुपये / हैक्टर अग्रिम प्रदर्शन में और 22,102 रुपये / किसानों की खेती में रहा।
सामाजिक बदलाव पर एक अध्ययन में केवीके की सलाह की वजह से कुल 120 किसानों को तीन गांवों जलालखेड़ी, देवखेड़ी, और बामोरा से चयनित किया गया था। अध्ययन से पता चला है कि केवीके की सलाह के बाद ग्रामीणों के बीच प्रतिस्पर्धा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता, जीवन स्तर एवं आत्मविश्वास बढ़ गया है। यह भी पता चलता है कि उत्पादों के विकास में अधिकतम 225% वृद्धि प्राप्त की गई थी। इसके अलावा, आधुनिक जीवन स्तर की आवश्यकता और खेती की आवश्यक संपत्ति के विकास की दिशा में पर्याप्त जागरूकता देखी गई। घरों के आधुनिकीकरण से 44% वृद्धि हुई है और किसानों की आर्थिक स्थिति में भी बचत के कारण बदलाव और वृद्धि देखी गई। इससे यह भी पता चला कि 'पक्का' घरों से किसानों की जीवन शैली में सुधार आया है। अब उन्हें अपने नए घरों में शौचालय की सुविधा मिल गई है। कृषि और सिंचाई सुविधाओं की खरीद क्षमता भी विकसित हुई है। साथ ही ग्रामीणों औपचारिक संस्थानों में अब और अधिक बचत कर रहे हैं।
श्री योगेन्द्र कौशिक, अजरवड़ा गांव के किसान ने केवीके प्रौद्योगिकी के प्रयोग के कारण 'सर्वश्रेष्ठ किसान' पुरस्कार जीता।

(स्रोत: कृषि विज्ञान केन्द्र, उज्जैन)
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