सोयाबीन प्रसंस्करण उद्योग की स्थापना: उद्यमिता विकास कार्यक्रम

सोयाबीन प्रसंस्करण उद्योग की स्थापना: उद्यमिता विकास कार्यक्रम

अपने पोषण मूल्य और स्वास्थ्य लाभों के कारण सोयाबीन एक महत्त्वपूर्ण खाद्य वस्तु के रूप में जाना जाता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा उच्च तो वसा और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होती है जबकि इसमें कोलेस्ट्रॉल नहीं पाया जाता है। अमीनो एसिड की संरचना के कारण सोयाबीन में व्याप्त प्रोटीन को पूर्ण प्रोटीन के रूप में जाना जाता है। पौष्टिक और सुपाच्य शाकाहारी प्रोटीन की उपस्थिति के कारण इसे शिशुओं, बच्चों, बुजुर्गों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए एक उत्कृष्ट भोजन माना जाता है। चूँकि यह कम लागत पर उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन का एक समृद्ध स्रोत है, इसलिए भोजन, चारा, दवा और औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए सोयाबीन और इसके उत्पादों के उपयोग की काफी संभावनाएँ हैं।

सोयाबीन में एंटीऑक्सिडेंट, मोटापा-रोधी, मधुमेह-रोधी गुण से लेकर ऑस्टियोपोरोसिस और कैंसर, जैसे स्तन और प्रोस्टेट कैंसर से बचाव के कई स्वास्थ्य-लाभकारी गुण पाए जाते हैं। सोयाबीन आधारित खाद्य पदार्थ आज लोगों द्वारा अधिक पसंद किए जा रहे हैं, क्योंकि सोयाबीन का पर्याप्त मात्रा में सेवन पुरानी बीमारियों, जैसे हृदय रोग और कैंसर के जोखिम को कम कर सकता है।

प्रचुर मात्रा में उत्पादों को तैयार करने के लिए सोयाबीन का उपयोग सोया दूध से लेकर टोफू (सोया पनीर), सोया दही, सोया नट और विभिन्न बेकरी आधारित उत्पादों के लिए किया जा सकता है। इन उत्पादों की लागत बहुत कम है। साथ ही, दैनिक आहार में सोया आधारित खाद्य उत्पाद कुपोषण का मुकाबला करने में सहायक है।

उद्यमिता विकास कार्यक्रम:

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सोयाबीन के स्वास्थ्य लाभों को ध्यान में रखते हुए सोयाबीन प्रसंस्करण पर उद्यमिता विकास कार्यक्रम (EDP) को वर्ष 1995 में भाकृअनुप-केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल में शुरू किया गया था। सोयाबीन प्रसंस्करण के क्षेत्र में उद्यम विकसित करने का मुख्य उद्देश्य कम लागत पर आजीविका के अवसरों, रोजगार सृजन और उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन उत्पादों का उत्पादन करना था। ‘सोया आधारित बेकरी उत्पादों और सोया स्नैक्स’ पर उद्यमिता विकास कार्यक्रम मॉड्यूल वर्ष, 2002 में जोड़ा गया था। भाकृअनुप-केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान सोयाबीन प्रोसेसिंग पर उद्यमिता विकास कार्यक्रम की पेशकश करने वाला देश का एकमात्र संस्थान है। प्रतिभागियों को उद्यम स्थापित करने और जरूरत के अनुसार उत्पादन तैयार करने के लिए तकनीकी मार्गदर्शन और समर्थन भी प्रदान किया गया।

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फरवरी 2017 तक 167 बैचों (2,524 प्रतिभागियों) ने उद्यमिता विकास कार्यक्रम में भाग लिया, जिसमें से 2,206 व्यक्तियों ने सोया दूध और सोया पनीर उत्पादन में और 318 व्यक्तियों ने सोया आधारित बेकरी उत्पादों और सोया स्नैक्स में भाग लिया। प्रशिक्षुओं की अधिकतम संख्या मध्य प्रदेश (615) से थी, इसके बाद महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली का स्थान रहा।

उद्यमिता विकास कार्यक्रम का प्रभाव:

शुरुआत में, उद्यमिता प्रशिक्षण कार्यक्रम के प्रभाव का एक मूल्यांकन प्रशिक्षुओं के साथ टेलीफोन पर संपर्क के माध्यम से किया गया था। उसके बाद देश भर में चयनित उत्पादन समूहों (मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, गुजरात, राजस्थान, बिहार और पश्चिम बंगाल) के व्यक्तिगत दौरे से किया गया था। वर्तमान में लगभग 198 सोयाबीन प्रसंस्करण इकाईयाँ चालू हैं। इकाईयों को देश के विभिन्न भागों में वितरित किया जाता है और जिनमें 17 राज्य शामिल हैं। हालाँकि, अधिकतम 41 इकाईयाँ पंजाब में स्थित हैं, इसके बाद महाराष्ट्र में (40 इकाईयाँ), उत्तर प्रदेश में (23 इकाईयाँ), हरियाणा में (21 इकाईयाँ), दिल्ली में (15 इकाईयाँ) और मध्य प्रदेश में (14 इकाईयाँ) शामिल हैं। ज्यादातर इकाईयों की स्थापना 2010 के बाद हुई। कुल कार्यरत इकाईयों में से 2010 से पहले केवल 36 की स्थापना की गई थी। 2010 के बाद 166 से अधिक इकाईयाँ स्थापित की गई हैं।

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सोया प्रसंस्करण इकाईयों को बंद करने के कुछ मामले भी सामने आए हैं। लगभग 14% प्रशिक्षुओं ने उद्यम स्थापित तो किया लेकिन विपणन बाधाओं के कारण इसे बाद के चरणों में बंद कर दिया। एकत्र की गई जानकारी के आधार पर टोफू और सोया दूध का औसत वार्षिक उत्पादन क्रमशः 2,700 टन और 3,400 किलोग्राम है। टोफू और सोया दूध में कुल प्रोटीन सामग्री क्रमशः 14 और 3.5% है।

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आर्थिक प्रभाव:

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विभिन्न उत्पादों जैसे दूध, टोफू, आटा, नट्स, दही, बिस्कुट, कबाब, चाप और हलवा आदि बनाने के लिए देश भर में 198 उद्यमियों द्वारा सोयाबीन का प्रसंस्करण किया जाता है। इन इकाईयों का वार्षिक कार्य दिवस 203 है, जबकि श्रम रोजगार का विश्लेषण 4.73/इकाई किया गया था। ये उद्यमी अब 1.90 लाख श्रम/वार्षिक आय को रोजगार पैदा कर रहे हैं और 198 सोयाबीन प्रसंस्करण इकाईयों को चलाने में लगे 936 श्रमिकों को 5.70 करोड़ रुपए का मौद्रिक लाभ प्रदान करते हैं।

वार्षिक सकल आय 28.18 लाख रुपए/उद्यमी है, जबकि वार्षिक सकल व्यय 17.00 लाख रुपए/उद्यमी है। इस प्रकार 1.66 बीसीआर के साथ प्रत्येक उद्यमी का वार्षिक शुद्ध लाभ 11.20 लाख रुपए है। 198 उद्यमियों से उत्पन्न वार्षिक सकल मौद्रिक लाभ लगभग 56 करोड़ रुपए है।

निष्कर्ष:

1995 के बाद से भाकृअनुप-केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान द्वारा आयोजित सोया खाद्य-आधारित उद्यमिता विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम ने 198 सफल उद्यमों की स्थापना को सक्षम किया है जो देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं और साथ ही साथ ही हर साल 768 टन कम लागत वाले प्रोटीन खाद्य का उत्पादन करके कुपोषण का मुकाबला करने में भी सहयोग करता है। इन उद्यमों के कारण आर्थिक प्रभाव वर्तमान में लगभग 56 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष है और सोया आधारित खाद्य उत्पादों की लोकप्रियता में लगातार वृद्धि हो रही है। कुटीर से लघु स्तर तक कार्यरत सोया आधारित खाद्य प्रसंस्करण उद्योग आय और रोजगार पैदा करने में एक सफल उपक्रम रहा है।

(स्रोत: भाकृअनुप-केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थानभोपाल)

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