गुआलीगोराडा गाँव, सत्यबड़ी प्रखंड, पुरी जिला, ओडिशा के निवासी और सेल, भुवनेश्वर के कर्मचारी श्री चंदन कुमार खुंटिया ने खेती की पद्धति को अपनाकर अपने आसपास के क्षेत्र में एक सफल उद्यमी की मिसाल पेश की है। प्रतिष्ठित संगठन सेल, भुवनेश्वर में अपना करियर शुरू करने के बाद उन्होंने 2014 में खेती के लिए एक जुनून के साथ अपनी जड़ों में लौटकर धान को ऊँची भूमि में उगाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लगभग 12 एकड़ भूमि को तालाब और नलकूप के साथ सिंचाई के मुख्य स्रोतों के रूप में परिवर्तित किया। इसके लिए उन्होंने स्पाइनी लौकी सहित विभिन्न सब्जी-फसल जैसे करेला, करेला, शिमला मिर्च, बैंगन, काउपिया आदि उगाना शुरू किया। लेकिन बाजार में गहरे रंग के मोटी त्वचा और सख्त बीज वाले फलों की कम मांग ने उन्हें स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा आयोजित एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान भाकृअनुप-पूर्वी क्षेत्रीय अनुसंधान परिसर, बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय, पटना, बिहार का दौरा करने के लिए मजबूर कर दिया, जहाँ वह उन्नत खेती के संपर्क में आ गए।


2015 में एक छोटे-से क्षेत्र में स्वर्ण रेखा और स्वर्ण अलौकिक की खेती शुरू करने पर श्री खुंटिया ने पाया कि पुरी, भुवनेश्वर और कटक के बाजारों में स्वर्ण अलौकिक को सबसे अधिक पसंद किया गया है। 2018 के दौरान साइक्लोन फानी के प्रकोप के कारण उनके खेतों में हुए नुकसान के बाद, उन्होंने 2019 में 1.0 एकड़ के क्षेत्र में केवल स्वर्ण अलौकिक के साथ नए सिरे से शुरुआत की। इसके लिए उन्होंने अक्टूबर, 2019 के दौरान केंद्र से 1,750 पौधे खरीदे और उन्हें गीली घास के साथ जाफ़री प्रणाली के तहत 1.5 मीटर x 1.5 मीटर की दूरी के साथ लगाया। उन्हें फरवरी से अगस्त, 2020 के दौरान 107 क्विंटल परवल का भरपूर उत्पादन मिला। फरवरी माह से अधिकतम 180 रुपए के साथ औसत बाजार मूल्य 50 रुपए था।
यहाँ तक कि कोविड-19 महामारी के प्रकोप के कारण हुए पूर्ण तालाबंदी के चुनौतीपूर्ण समय के दौरान भी उन्होंने अपना फसल बेचकर लाभ कमाया। उन्होंने कुल 1,97,670 रुपए के निवेश के मुकाबले 3,37,310 रुपए का शुद्ध लाभ कमाया। श्री खूंटिया को ओडिशा में इस किस्म की भारी मांग के कारण किसानों को बिक्री के लिए पौधों का वाणिज्यिक उत्पादन शुरू करने का तकनीकी मार्गदर्शन भी मिला। उन्होंने कुल 10,000 पौधे तैयार किए जिन्हें सीजन के दौरान 20 रुपए प्रति पौधे की दर से बेचा, नतीजतन उन्हें 1,20,000 रुपए के शुद्ध लाभ के साथ 2,00,000 रुपए की अतिरिक्त आय का लाभ मिला। अब ओडिशा के कई किसान स्वर्ण अलौकिक की रोपण सामग्री के लिए उनसे संपर्क कर रहे हैं, जिससे उद्यमिता का नया मार्ग प्रशस्त हो रहा है।
उच्च पोषक और औषधीय महत्त्व के कारण यह सब्जी उपभोक्ता की प्राथमिकता में शामिल होकर स्वास्थ्य के प्रति सजग बाजार में एक जगह बना रहा है। ओडिशा और झारखंड जैसे गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में परवल की वैज्ञानिक खेती ने कृषक समुदाय को आत्मनिर्भर और लाभदायक बनाने के लिए एक नया अवसर पैदा किया है।
(स्रोत: भाकृअनुप-पूर्वी क्षेत्रीय अनुसंधान परिसर, बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय, पटना, बिहार)
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