स्ट्राबेरी से मिजोरम के झूमिया किसानों की आजीविका में सुधार

स्ट्राबेरी से मिजोरम के झूमिया किसानों की आजीविका में सुधार

imgश्री जोनाथन (28) मिजोरम के साइहा जिले के गांव केएम सॉम (वीसी-3) के निवासी हैं। संसाधनों की कमी के कारण वह चार सदस्यों के अपने परिवार के लिए आजीविका नहीं अर्जित कर पा रहे थे। लेकिन अब वह केवल एक हैक्टर भूमि से 3.5 से 4 लाख रुपये कमा लेते हैं। राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परियोजना (एनएआईपी) की पहल से जोनाथन की जिंदगी अब बदल गयी है। इस क्षेत्र में एनएआईपी के स्ट्राबेरी लाभार्थी के रूप में इन्हें चुना गया।

भा.कृ.अनु.प. की पहल

साइहा जिला आइजोल से 400 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इसे योजना आयोग द्वारा मिजोरम का सुदूर और पिछड़ा क्षेत्र घोषित किया जा चुका है। इस जिले के ज्यादातर किसान झूम खेती करते थे। पूर्वोत्तर पर्वतीय क्षेत्र के लिए भा.कृ.अनु.प. अनुसंधान परिसर, मिजोरम ने 2011-12 में किसानों की आय बढ़ाने और उनकी आजीविका में सुधार लाने के लिए एनएआईपी, कंपोनेन्ट-3 के तहत मिजोरम केन्द्र के 3 गांवों- केएम सॉम (वीसी-3) और नियाट लांग (वीसी-1 और 2) को अपनाया। इस परियोजना के तहत केन्द्र ने उन्नत प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेप से स्ट्राबेरी का उत्पादन आरम्भ करवाया।

प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेप से बदलाव

श्री जोनाथन को इस क्षेत्र के स्ट्राबेरी लाभार्थी के रूप में चुना गया। विभिन्न कारकों जैसे- ढलान, जल संसाधन की उपलब्धता और जल स्रोत से नजदीकी, झूम चक्र की अवधि आदि के आधार पर भूमि का चुनाव किया गया। संसाधनों के आधार पर 10 अन्य प्रगतिशील किसानों का भी चयन किया गया। प्रत्येक किसान के लिए 10,000 वर्ग मीटर क्षेत्र का चुनाव किया गया। इन किसानों पर ध्यान केंद्रित किया गया ताकि वे तकनीकी हस्तक्षेत्र में भागीदार बन सकें। भूमि साफ करके 1-1.5 मी. चैड़ी सीढि़यां बनाई गयीं। कूंड के आधार से 10-15 सें.मी. ऊंचे रिज बनाये गये। अम्लीय मृदा होने के कारण, 4.5 टन/हैक्टर चूने का प्रयोग पॉलीथिन पलवार लगाने से पहले किया गया। एक मीटर चौड़ी काली पॉलीथिन सीढि़यों पर बिछायी गयी जिससे कूंड और रिज ढक गये। इसके बाद रिज पर रोपाई की गयी। सर्दियों में सिंचाई के लिए मानसून जल और प्राकृतिक नहरों से पानी जलकुंडों में एकत्र किया गया। मानसून से पहले चयनित स्थलों पर 30,000 लीटर क्षमता वाले जलकुंड बनाये गये। मृदा उत्पादकता बनाये रखने के लिए कम लागत की वर्मी कम्पोस्ट इकाई से किसानों ने वर्मी कम्पोस्ट और जैविक खाद बनाई। स्ट्राबेरी नर्सरी बनाने के लिए कम लागत के पॉली हाउस बनाये गये।

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किसानों को प्रशिक्षण

किसानों को रोग व कीट प्रबंधन, पैकेज और कृषि पद्धतियों, गुणवत्ता सुधार और कटाई उपरांत प्रौद्योगिकियों का प्रशिक्षण दिया गया। सभी तकनीकी आदानों के साथ अब श्री जोनाथन को भरपूर फसल प्राप्त हुई। 250 ग्राम स्ट्राबेरी के पैकेट बनाकर वे बिचौलियों को 50 रुपये प्रति पैकेट बेचते हैं। बिचौलिये ज्यादातर इसे आइजोल ओर चाम्फई जिलों में बेचते हैं। जोनाथन अपनी स्ट्राबेरी सीधे साइहा की बाजार में 500-600 रुपये प्रति किलोग्राम भी बेचते हैं।

अन्य किसानों ने भी नवोन्मेष को अपनाया

श्री जोनाथन और अन्य लाभार्थियों की सफलता से उत्साहित होकर 30 झूम किसान अब झूम खेती की जगह लघु स्तर पर स्ट्राबेरी उगाने लगे हैं। इस प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेप से किसानों की झूम खेती पर निर्भरता कम हुई है। इससे ग्रामीणों के जीवन स्तर, आजीविका और सामाजिक आर्थिक स्तर में सुधार हुआ है।

(स्रोत: एनएआईपी मास मीडिया प्राजेक्ट, डीकेएमए, आईसीएआर और आईसीएआर-आरसी, एनईएच क्षेत्र, मिजोरम केन्द्र, कोलासिब, मिजोरम)

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