नागालैंड, भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में से एक है जिसमें कई गौण जनजातीय समुदायों के अलावा 16 मुख्य जनजातियां निवास करती हैं जिनमें से अधिकतर मांसाहारी हैं। सामान्यत: पशु प्रोटीन की प्रति व्यक्ति खपत और विशेष रूप से सूअर के मांस की खपत नागालैंड राज्य में सबसे अधिक है। आमतौर पर प्रत्येक ग्रामीण नागा परिवार में निजी उपभोग के लिए दो से तीन स्वदेशी सूअर पाले जाते हैं। व्यापक अवसरों के बावजूद, गुणवत्तायुक्त सुअर शावकों (पिगलेट) की अनुपलब्धता, खराब गुणवत्ता या बेहतर नस्ल वाले प्रजनक सूअर की कमी जैसी प्रमुख बाधाएं, बार-बार लंबे समय एक ही सूअर से प्रजनन के कारण अंत:प्रजनन (इनब्रीडिंग), प्राकृतिक प्रजनन की उच्च लागत और आहार की अधिक लागत आदिवासी किसानों के सुअर पालन में बाधा उत्पन्न् करती है। हालांकि, इस राज्य में पशु मांस और उत्पादों में लगभग 40% की कमी पाई गई है।
सुअर के बेहतर जननसामग्री (जर्मप्लाज्म) की कमी और इसके प्रसार को पूरा करने के लिए, आईसीएआर रिसर्च कॉम्प्लेक्स फॉर एनईएच क्षेत्र के नागालैंड केंद्र ने आईसीएआर-एनआरसी-पिग, रानी, गुवाहाटी के सहयोग से वर्ष 2009 -10 में सुअर पर एक मेगा बीज परियोजना के तहत घुंघरू और हैम्पशायर क्रॉस वाले एक गुणवत्तायुक्त सुअर जर्मप्लाज्म का उत्पादन प्रारंभ किया है जिसे आईसीएआर, नई दिल्ली द्वारा बेहतर आनुवंशिक उत्कृष्टता और उत्पादन क्षमता वाले सुअर जर्मप्लाज्म का समावेश करने के उद्देश्य के साथ वित्त पोषित किया, जिसमें प्रति वर्ष 200 किसान परिवारों/सालाना को शामिल करते हुए दो अतिरिक्त फरोइंग की सुविधा प्रदान करके 1000 गुणवत्ता वाले सुअर के बच्चों के उत्पादन के लक्ष्य सहित इस केंद्र में उनकी क्षमता निर्माण का कार्य प्रारंभ किया गया है। इस परियोजना की शुरुआत के बाद, नागालैंड, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर के 1048 लाभार्थियों को कुल 4473 उन्नत सुअर के बच्चे (पिगलेट) उपलब्ध कराए गए।
वर्ष 2013-14 में, कृत्रिम गर्भाधान का मानकीकरण किया गया और इसी परियोजना के तहत नागालैंड में उन्हें पहली बार समावेशित किया गया। आईसीएआरएनईएच, नागालैंड ऐसा एकमात्र केंद्र है जो नागालैंड और असम के इससे लगे इलाकों में कृत्रिम गर्भाधान (एआई) तकनीक प्रदान करता है। किसान के गृहक्षेत्र में, एक प्राकृतिक गर्भाधान में एक किसान को रू0 1,500 से 2000 / - या मादा सुअर को लाने और ले जाने की लागत के अलावा बदले में एक सुअर के बच्चे को देना होता है। आईसीएआर नागालैंड केंद्र रु0 150/- प्रति सूअर की दर से दो कृत्रिम गर्भाधान (एआई) किट प्रदान करता है। कृत्रिम गर्भाधान (एआई) को अपनाने के लिए किसानों को जो मुख्य घटक आकर्षित करता है वह है इसका सस्ता होना, आसानी से उपलब्धता और इसे अपनाना आसान है अर्थात किसान इसे स्वयं संपादित कर सकता है। नागालैंड में सूअर उत्पादन के स्तर में सुधार लाने हेतु कृत्रिम गर्भाधान (एआई) प्रसार के हमारे प्रयासों में, किसानों, पशु चिकित्सा अधिकारियों, एनजीओ, एसएचजी, केवीके, वीएफए आदि के लिए 29 ऑन फार्म प्रशिक्षणों का आयोजन किया गया। परिणामस्वरूप, कई किसान कृत्रिम गर्भाधान (एआई) में निपुण बन गए और वे किसानों के गृहक्षेत्र (फार्मर फील्ड) में इसे नियमित रूप से कर रहे हैं। वर्ष 2013-14 से अब तक, दीमापुर, कोहिमा, पेरेन, वोखा और फेक जिले में 81.85 प्रतिशत की औसत फरोइंग दर के साथ कुल 1273 एआई सम्पन्न किए गए जिससे प्राप्त औसत लिटर साइज 9.65 था; इस प्रकार नागालैंड में कृत्रिम गर्भाधान द्वारा कुल 10054 उन्नत सुअर के बच्चे उत्पादित किए गए। इसके अलावा, आईसीएआरएनईएच- नागालैंड केंद्र, नागालैंड में सूअर स्टेशन और सेटेलाइट एआई केंद्र की स्थापना के लिए नागालैंड पशुपालन और पशु चिकित्सा सेवा विभाग को तकनीकी सहायता भी प्रदान कर रहा है।
जोटसोमा गांव, साइंस कॉलेज कॉलोनी, कोहिमा की एक महिला कृषक और आंशिक तौर पर व्यवसाय करने वाली एक 45 वर्षीय महिला श्रीमती वित्सोगोनौ नख्रो, परंपरागत तरीके से सूअरों का पालन कर रही थीं। उन्होंने सुअर में कृत्रिम गर्भाधान पर आईसीएआर-झरनापनी में तीन दिन के प्रशिक्षण में भाग लिया और इस प्रकार उन्होंने सुअर की बेहतर नस्लों, भोजन, उचित गर्मी का पता लगाने, बंध्याकरण, कृत्रिम गर्भाधान और सुअर-खाद के उपयोग सहित सुअर पालन के वैज्ञानिक प्रबंधन को सीखा। प्रशिक्षण के बाद उन्होंने आईसीएआरएनईएच, नागालैंड सेंटर, मेडजीफेमा से प्राप्त तरल सूअर वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान (एआई) का कार्य पहले अपनी मादा सुअरों पर और उसके बाद अन्य किसानों के लिए प्रारंभ किया । ज्योत्सोमा तथा उसके आस पास के गांवों में प्राकृतिक मिलन (नेचुरल सर्विस) की तुलना में कृत्रिम गर्भाधान (एआई) अब अधिक लोकप्रिय हो चुका है। आईसीएआरएनईएच, नागालैंड केंद्र ने उन्हें पांच गुंघरू और हैम्पशायर के क्रॉस सुअर के बच्चों (पिगलेट) की प्रजनन इकाई प्रदान की है। उन्होंने अपनी मादा सुअरों से कृत्रिम गर्भाधान द्वारा उत्पन्न 120 उन्नत नस्लों के सुअर के बच्चे बेचे हैं और अपने ब्रीडिंग फार्म का विस्तार भी किया है। प्रशिक्षण के बाद तीन वर्षों के भीतर, उन्होंने जॉट्सोमा और आस पास के गांवों में 86.35 प्रतिशत की औसत फैरोइंग दर और 9.83 के औसत लिटर साइज सहित कुल मिलाकर 282 कृत्रिम गर्भाधान किए हैं। एक सफल कृत्रिम गर्भाधान (एआई) से वे रू0 1000 - 1500 / - के बीच कमा रही हैं और किसान अच्छी गुणवत्ता वाले बड़े लिटर साइज में सुअर के बच्चों (पिगलेट) प्राप्त करने की आशा में इस राशि का सहर्ष भुगतान करने को तैयार रहते हैं। 2400 सुअर के बच्चों की कुल फैरोइंग के साथ, वित्सोनगोनो नख्रो ने जोत्सोमा गांव में कृत्रिम गर्भाधान (एआई) के लाभ को सफलतापूर्वक स्थापित किया है साथ ही यह भी साबित किया है कि नागालैंड में सुअर पालन जैसे अनछुए पहलुओं पर जिसमें यह राज्य अन्य राज्यों से काफी पिछड़ा है, एक महिला अग्रणी तौर पर कार्य कर सकती है। यह वैज्ञानिकों के साथ-साथ सामान्यत: किसानों के लिए उत्साहवर्धक है और महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक उदाहरण भी है।
(स्रोत: आईसीएआर रिसर्च कॉम्प्लेक्स फॉर नार्थ ईस्टर्न हिल रीजन, नगालैंड केंद्र )
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