स्थिति विश्लेषण
राजस्थान के जयपुर जिले की कुल जनसंख्या 38,87, 9 00 है। कृषि मजदूरों में महिलाओं की प्रतिशतता 43.9% है। हालांकि, जिले के अधिकांश लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है, बारिश पर आश्रित खेती और सीमित सिंचाई सुविधाओं के कारण, अकेले कृषि उनकी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकती है, जिससे उन्हें दूध उत्पादन जैसे सहायक व्यवसाय को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। पूरे जिले में दूध शीतलन (मिल्क चिलिंग) और भंडारण सुविधा उपलब्ध होने के कारण जयपुर, राजस्थान में डेयरी एक लाभदायक उद्यम के रूप में पनप रहा है।
प्रौद्योगिकी, कार्यान्वयन और समर्थन
वैज्ञानिक रूप से डेयरी फार्मिंग के लिए प्रारंभ में दो मंडलों अर्थात संडरसर और गिनोई की पहचान की गई। इन दोनों मंडलों के तहत गांवों की कुल संख्या 120 थी। इन गांवों में, कार्यक्रम के कार्यान्वयन की योजना के विवरण सहित पशुपालक किसानों को बताने के लिए समूह चर्चाएं आयोजित की गईं। इन गांवों में किए गए सर्वेक्षण से पता चला कि डेयरी उद्योग यहां के लिए एक लाभदायक उद्यम है और यह महसूस किया गया कि सामूहिक क्रियाकलापों और डेयरी जैसी आय सृजन करने वाली गतिविधियां बेहद उपयोगी और व्यावहारिक हैं। प्राइवेट डेयरी के साथ संपर्क, दूध संग्रह केंद्रों की स्थापना तथा स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) का गठन, संकर नस्ल के पशुओं का पबंधन और डेयरी उद्यम की ओर प्रेरित करने हेतु प्रबंधन तकनीकों पर प्रशिक्षण प्रदान किया गया । कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) ने स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री जैसे उचित अनुपात में गेहूं का चोकर, खली आदि के उपयोग से जानवरों की जरूरत के अनुसार घर पर ही ठोस आहार तैयार करने पर महिलाओं को प्रशिक्षित किया। केवीके ने अन्य संगठनों के सहयोग से प्रत्येक वर्ष टीकाकरण शिविरों की व्यवस्था की जहां रिपीट प्रजनन के मामलों का निदान और विभिन्न बीमारियों के उपचार किया गया।
अपटेक (उदग्रहण), प्रसार और लाभ
डेयरी कार्यक्रमों को अपनाने से पहले, कृषि श्रमिक के रूप में महिलाएं 30% समय इस कार्य पर लगा रहीं थीं। इस कार्यक्रम को क्रियान्वित करने के बाद, डेयरी कार्य के लिए उन्होंने अपना 50% समय लगाया। डेयरी के माध्यम से प्राप्त आय कृषि जनित अन्य क्रियाकलापों की तुलना में अधिक थी। नीचे आय और व्यय के आंकड़ों को दर्शाया गया है :-
डेयरी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन से पहले, साझेदार महिलाओं की वार्षिक आय कम थी (लगभग रू0 12000)। परिणामस्वरूप, विभिन्न क्रियाकलापों जैसे भोजन, सामाजिक उत्सवों, कपड़े, स्वास्थ्य और शिक्षा में होने वाला व्यय भी कम था (10-15%)। परियोजना के कार्यान्वयन के बाद वार्षिक आय का स्तर बढ़ा है (रू0 14,000 - 15,000)। और इसलिए, भोजन, स्वास्थ्य, शिक्षा, संपत्ति सृजन, बचत जैसी विभिन्न गतिविधियों में धन के उपयोग में भी काफी सुधार हुआ (15-25%)।
डेयरी क्रियाकलापों के हस्तक्षेप से पूर्व साझेदार महिलाएं कृषि और घरेलू कार्यों के लिए धन का अधिकांश उपयोग करती थीं। इस कार्यक्रम को अपनाने के बाद 35% डेयरी गतिविधियों पर, 35% कृषि गतिविधियों पर, 10% श्रम गतिविधियों और शेष घरेलू गतिविधियों पर धन का व्यय किया गया।
केवीके जयपुर-1 के ठोस प्रयासों और कृषि-महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के साथ डेयरी सेक्टर के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण को सामूहिक एप्रोच के आधार पर पूरा किया गया। जानवरों को दिए गए एज़ोला (2.0 किलोग्राम/दिन) और चेलेटेड खनिज मिश्रण (60 ग्राम/दिन) की मदद से दूध उपज (1.15 लीटर/पशु/दिन) में वृद्धि के रूप में इन क्रियाकलापों का मुख्य प्रभाव देखा गया। प्रति पशु 300 दुग्ध-दिवसों में उन्हें 200 लीटर अतिरिक्त दूध की प्राप्ति हुई। इस प्रकार रू0 6000 / दुग्धकाल/पशु द्वारा उनकी आय में वृद्धि हुई और उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थितियों में बदलाव आया।
(कृषि विज्ञान केंद्र, जयपुर -1, राजस्थान, केवीके. जयपुर kvk.Jaipur1@icar.gov.in )
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