नवोन्मेषी फॉर्मूलेशन कृषि चूना तथा ट्राइकोडर्मा को एक ही उत्पाद में जोड़ता है
भाकृअनुप-भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान (भाकृअनुप-आईआईएसआर), कोझिकोड ने, सफलतापूर्वक, एक नया दानेदार चूना-आधारित ट्राइकोडर्मा फॉर्मूलेशन विकसित किया है। 'ट्राइकोलाइम' नाम का फॉर्मूलेशन, ट्राइकोडर्मा और चूना को एक ही उत्पाद में एकीकृत करता है, जिससे किसानों के लिए इसका उपयोग आसान हो जाता है। प्रौद्योगिकी के आविष्कारक, डॉ. वी. श्रीनिवासन, डॉ. आर. प्रवीण, डॉ. आर. दिनेश और डॉ. एस.जे. ईपेन हैं।
फसलों से इष्टतम पैदावार प्राप्त करने के लिए मिट्टी की अम्लता को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि अतिरिक्त अम्लता आवश्यक पौधों के पोषक तत्वों की उपलब्धता को प्रभावित कर सकती है, जिससे फसल उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। मिट्टी की अम्लता को कम करने के लिए पारंपरिक रूप से चूने का उपयोग किया जाता रहा है, लेकिन आमतौर पर चूने और ट्राइकोडर्मा जैसे लाभकारी सूक्ष्मजीवों के एक साथ उपयोग की सिफारिश नहीं की जाती है। किसानों को मिट्टी में अन्य लाभकारी सूक्ष्मजीवों को शामिल करने से पहले दो से तीन सप्ताह की अवधि तक इंतजार करना पड़ता है।
ट्राइकोडर्मा, एक फंगल बायोकंट्रोल एजेंट होने के नाते, कई मिट्टी-जनित पौधों के रोगजनकों को दबाने में प्रभावी साबित हुआ है और फसल उत्पादन में एक सफल जैव कीटनाशक तथा जैव उर्वरक के रूप में कार्य करता है। ट्राइकोडर्मा की क्षमता और पारंपरिक चूने के अनुप्रयोगों से उत्पन्न चुनौतियों को पहचानते हुए, भाकृअनुप-आईआईएसआर के वैज्ञानिकों ने चूने तथा ट्राइकोडर्मा को एकीकृत करने के लिए 'ट्राइचोलाइम' विकसित किया है।
ट्राइकोलाइम समय लेने वाली दो-चरणीय प्रक्रिया की आवश्यकता को सफलतापूर्वक समाप्त कर सकता है। यह चूना-आधारित फॉर्मूलेशन पौधों के विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ मिट्टी की अम्लता को बेअसर करता है और एक ही अनुप्रयोग में फसलों को मिट्टी-जनित रोगजनकों से बचाता है। यह मिश्रण मिट्टी की भौतिक स्थिति में सुधार करके, द्वितीयक पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाकर एवं मिट्टी में सूक्ष्मजीव की गतिविधि को बढ़ाकर फसल को लाभ पहुंचाता है।
इस फॉर्मूलेशन का महत्व मिट्टी की अम्लता को कम करने और समवर्ती रूप से जैव एजेंटों की आपूर्ति करने की क्षमता में निहित है, जिससे पौधों की इष्टतम वृद्धि और पोषक तत्वों की प्राप्ति सुनिश्चित होती है। इससे मिट्टी में उपयोगी रोगाणुओं के विकास को भी बढ़ावा मिल सकता है। पारंपरिक तरीकों के विपरीत, ट्राइकोलाइम उनकी कृषि आवश्यकताओं के लिए ट्राइकोडर्मा और चूने के अनुप्रयोग को व्यवस्थित करता है। संस्थान को उम्मीद है कि इस उत्पाद के पीछे की तकनीक को अन्य लाभकारी बायो एजेंटों को शामिल करने के लिए भी बढ़ाया जा सकता है, जिससे टिकाऊ जैविक खेती का समर्थन करने के लिए उत्पाद विकास में नई संभावनाएं खुलेंगी।
(स्रोत: भाकृअनुप-भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान, कोझिकोड)
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