जलवायु जनित कारणों से तटीय क्षेत्रों की अस्वस्थ मिट्टी में फसल उत्पादन दर कम रहती है। भाकृअनुप-केन्द्रीय बागानी फसल अनुसंधान संस्थान (सीपीसीआरआई), कारसरगोड द्वारा इस चुनौती से निपटने हेतु केरल में प्रदर्शन आयोजित किया गया। प्रदर्शन स्थल दक्षिणी तट केरल के अरातुपुजा (जनपद अलाजुपुजा) और अलापाड में स्थित है। मृदा की कम उपजाऊ स्थिति, जल-जमाव और लवणीय पानी की बाढ़ जैसी समस्याएं नारियल के सफल उत्पादन में बाधा बन रही थी। इन्हीं कारणों से किसान वर्षिक अवधि वाली सहफसलों की बुआई नहीं कर पाते थे।
प्रतिकूल मौसम के अनुरुप प्रौद्योगिकी में उचित बदलाव कर केरल के दो किसानों ने खेती में सफल प्रयोग किये हैं। प्रथम प्रयोगकर्ता, किसान दम्पत्ति श्री देवदास एवं श्रीमती सत्यवती केरल, जिला-कोलम अलापाड़ के हैं और दूसरे श्री मुथिरापाराम्बिल अरातुपुजा पंचायत, जिला-अलापुजा केरल के निवासी हैं। इन्होंने केरल में मौसम के अनुकूल तकनीकों को संशोधित कर सफल खेती के मार्ग को प्रशस्त किया है। इस सफल प्रयोग की प्रदर्शनी दोनों स्थानों पर 0.6 हैक्टेयर के खेतों पर वर्ष 2012-2015 में की गयी।
परीक्षण में दोनों स्थलों की मिट्टी लवण रहित पायी गयी। पीएच-मान 4.5 से 6.3 के बीच और जैविक कार्बन, पोटैशियम, कैल्शियम, मैगनीशीयम का स्तर सामान्य से नीचे पाया गया। वहीं, फास्फोरस, मैगनीज, लोहा और जिंक का स्तर ऊंचा मिला। जल-जमाव और लवणीय पानी के बाढ़ जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिये सहफसल जैसे केला, अनन्नास, मौसमी सब्जियां, कंदीय फसलों, चारा, घास, अदरक, हल्दी की अनुकूलनशीलता का परीक्षण किया गया। कई सहफसलों को रोपण गढ्ढ़ों/नारियल जटा के खाद पात्रों के साथ तटीय बलुई मौसम की स्थिति में छिलका सहित/रहित बोया गया। परीक्षण के दौरान बोयी गयी इन फसलों की उपज में वृद्धि पाई गई। अनन्नास को जल-जमाव की स्थिति में सबसे अच्छा फसल पायी गयी जिससे 1.0 – 1.75 कि.ग्रा. भार के फल प्राप्त हुए। केले की किस्मों ने भी अच्छा प्रदर्शन किया, जिनमें अच्छे गुच्छे लगे, नेन्द्रन किस्म औसतन 7 कि.ग्रा, निजालिपूवम 13.5 किग्रा. और रोबस्टा 22.5 कि.ग्रा. भार के थे। सब्जियों में चौलाई, करेला, लोबिया, फूलगोभी, बंदगोभी, टमाटर के भी प्रदर्शन अच्छे रहे। फूलगोभी का भार 2 कि.ग्रा. से ज्यादा, बंदगोभी का भार 2.50 कि.ग्रा. प्राप्त किया गया। किसानों ने करेले की पहली तुड़ाई में 18 किग्रा. और लोबिया की फसल से 4 कि.ग्रा सब्जियां प्राप्त कीं।
नारियल की उत्पादन दर में भी वृद्धि दर्ज की गई जो अरातुपुजा में 59 प्रतिशत और अलापाड़ में 55 प्रतिशत था। नारियल आधारित फसलों पर शुद्ध आय, सहफसलों की सघनता से तय होने के कारण अलग-अलग पायी गयी। श्री देवदास एवं श्रीमती सत्यवती ने वर्ष 2013-2014 के दौरान 1.35 लाख और श्री बाबू ने 1.89 लाख रुपये की शुद्ध आय अर्जित की।
प्रतिकूल और अनियमित मौसम में उत्पादन, समुत्थनशीलता बढ़ाने एवं खेती करने के अनेक तरीके तटीय किसानों द्वारा अपनाये गये हैं। उदाहरणस्वरूप जल-जमाव के समय अनन्नास की फसल में भूसी डालने की पद्धति में संवर्धन के कारण अच्छा उत्पादन पाया गया। इन फसलों का औसत भार सामान्य फसल 1.00 कि.ग्रा. की तुलना में 1.75 किग्रा. ज्यादा रहा।
कंदीय फसलों और केले की बुआई का समय बढ़ाना और केले की जड़ों का आयु-मानकीकरण सफल पाया गया। नवम्बर-दिसम्बर में रोपे गये 4-5 माह के आयु वाले निजालीपुवान किस्म के केले पर फल विकसित होने के दौरान इसे जल-जमाव के समय धार में बचे रहने में समर्थ पाया गया। फल शाखा निकलने के समय, 150 कि.ग्रा. गाद के साथ 100 ग्राम पोटाश का म्यूरेट प्रति पौधा जमीन में दबाने से पौधे में तेज विकास देखा गया। इस तरह से किसान जल-जमाव और इसके परिणामस्वरुप केले के पतले होने से पौधे को शत-प्रतिशत बचा सकते हैं।
कंद फसलों की वृद्धि के समय, अनावश्यक बरसात के कारण आवश्यकता के समय सिंचाई न कर पाने से किसानों को परेशानी होती थी। कम अवधि वाले फसल टैपिओका की किस्में जैसे : वेलायानी हरस्वा (5-6 माह), श्री जया (7 माह) और श्री विजया के रोपाई का समय बढ़ाकर अक्टूबर-नवम्बर करने से किसान उचित उत्पादन (3.2 कि.ग्रा. प्रति पौधा) प्राप्त कर सकते हैं। किसानों ने हाथी पांव रतालू और डायोस्कोरिया के मामले में, पिछले साल की फसलों को खेत में ही छोड़ कर अगले साल औसतन 6.3 कि.ग्रा. डाकोरिया का उत्पादन किया। वहीं, हाथी पांव रतालू का उत्पादन 5.2 कि.ग्रा. गजेन्द्र किस्म से और 13.5 कि.ग्रा. पीरिमेडू से हुआ जो रतालू की एक स्थानीय किस्म है।
(स्रोत: भाकृअनुप-सीपीसीआरआई,कासरगोड)
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