अरुणाचल प्रदेश के निचली दीबांग घाटी जिले की जनसंख्या मुख्यत: आदिवासी प्रकृति की है। उनके मांसाहारी प्रवृति के होने के कारण इस क्षेत्र में मांस और अंडों की अच्छी मांग है। तथापि, पशुधन पालन की परपंरागत विधियों के कारण इस क्षेत्र में इनका उत्पादन कम होता है। इस क्षेत्र की आवश्यकताओं के आधार पर एक सक्षम कुक्कुट पक्षी (वनराज नस्ल) के उत्पादन का कार्य आरंभ किया गया है तथा ग्रामीण संसाधनहीन खेतीहर महिलाओं के लिए इसे टिकाऊ आजीविका के स्रोत में लोकप्रिय बनाया गया है।
क्षमता निर्माण संबंधी कार्यक्रम
जिले के चुने हुए गांवों में किए गए भागीदारीपूर्ण ग्रामीण मूल्यांकन के अनुसार यहां कुक्कुट मांस और अण्डे के उत्पादन व मांग के बीच में बहुत अंतर है। इस जिले के 10 गांवों के 20 किसानों को घर के पिछवाड़े मुर्गी पालन के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षित करने के लिए चुना गया ताकि उनकी कुशलता को बढ़ाया जा सके।
महत्वपूर्ण निवेशों की आपूर्ति
ठोस ज्ञान से सम्पन्न प्रतिभागियों को कृषि विज्ञान केन्द्र, निचली दीबांग घाटी के ऑन-फार्म परीक्षण अधिदेश के अंतर्गत प्रति व्यक्ति वनराज नस्ल के 10 उर्वर अंडे दिए गए। कृषक समुदाय के बीच वितरण के लिए ये उर्वर अंडे कुक्कुट प्रभाग (एआईसीआरपी), पशुचिकित्सा महाविद्यालय, खानपाड़ा, असम कृषि विश्वविद्यालय, गुवाहाटी से खरीदे गए थे।
विस्तार संबंधी गतिविधियां
पशुचिकित्सा विभाग के अधिकारियों के साथ लाभार्थियों की इकाई के आवधिक दौरे किए गए ताकि कुक्कुटों के स्वास्थ्य की जांच की जा सके तथा वनराज नस्ल के वृद्धि निष्पादन और उनकी अंडा उत्पादन क्षमता पर सूचना एकत्रित की जा सके। किसानों को प्रौद्योगिकी के प्रति आश्वस्त करने के लिए दस भ्रमण कार्यक्रम आयोजित किए गए।
पचास से अधिक किसानों ने यह उद्यम अपनाया
रूकमो, एंजेंगो और जिया गांवों के तीन प्रगतिशील किसानों श्री ओकिली लिंगी, श्रीमती पूर्णिमा और श्री दुमी प्रेमे ने आरंभ में वाणिज्यिक स्तर पर यह उद्यम आरंभ किया। उन्होंने छह हजार उर्वर अंडे उत्पन्न किए और 25 साथी किसानों बांटे। अब 50 किसान कम निवेश वाली, गहन और टिकाऊ आर्थिक लाभ देने वाली आजीविका उन्मुख उद्यम संबंधी इस प्रथा को उपरोक्त जिले में अपनाए हुए हैं। सफल किसानों ने आज तक स्थानीय पक्षियों के ऊष्मायन के द्वारा लगभग 6000 उर्वर अंडे उत्पन्न किए हैं।
परिणाम
घर के दरवाजे पर अंडों की आसानी से उपलब्धता के कारण अन्य किसान भी यह उद्यम आसानी से शुरू कर सकते हैं। इससे ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सृजित हुए हैं और किसान इस नस्ल को वाणिज्यिक स्तर पर पालने के ठोस ज्ञान से समृद्ध हुए हैं। इससे अंडों से 60,000 रु. तथा मांस से 52,500 रु. की औसत आमदनी लेने में सफलता मिली है। उन्नत नस्ल के संकर प्रजनन के कारण स्थानीय गैर-वर्णित पक्षियों का भी उन्नयन हुआ है। किसानों से प्राप्त फीडबैक से पता चलता है कि अधिक संख्या में पक्षियों की वृद्धि तीव्र होती है, कम निवेश प्रणाली के अंतर्गत बड़े अंडे उत्पन्न होते हैं, यह नस्ल अधिकांश रोगों की प्रतिरोधी है, इसे कम स्थान की आवश्यकता होती है और इसके साथ ही इस उद्यम में न्यूनतम श्रम व निवेश लगते हैं।
(सोत: कृषि विज्ञान केन्द्रनिचली दीबांग घाटी अरुणाचल प्रदेश)
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