चक्रीय अर्थव्यवस्था के लिए पराली प्रबंधन पर राष्ट्रीय संवाद आयोजित

चक्रीय अर्थव्यवस्था के लिए पराली प्रबंधन पर राष्ट्रीय संवाद आयोजित

25 अक्टूबर, 2023, करनाल

प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रभाग, भाकृअनुप ने आज भाकृअनुप-केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल में डॉ. हिमांशु पाठक, सचिव, डेयर एवं महानिदेशक, भाकृअनुप, नई दिल्ली (ऑनलाइन) की अध्यक्षता में डीए एंड एफडब्ल्यू, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से चक्रीय अर्थव्यवस्था के लिए पराली प्रबंधन पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संवाद का आयोजन किया।

संवाद का उद्देश्य ‘मिशन शून्य पराली दहन’ स्तर के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए क्षेत्र स्तर पर आर्थिक तरीके से पराली के प्रभावी प्रबंधन के लिए साइट विशिष्ट रणनीतियों को विकसित करने के लिए इन-सीटू और एक्स-सीटू प्रबंधन दृष्टिकोण  तथा दोनों के एकीकृत उपयोग पर आम सहमति पर पहुंचना है। बैठक में स्टेट एग्री के विभिन्न संस्थानों, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के विभाग, केवीके, निर्माता, गैर सरकारी संगठन, नागरिक समाज और किसान की भागीदारी थी।

National Dialogue on Stubble Management for Circular Economy  National Dialogue on Stubble Management for Circular Economy

डॉ. एस.के. चौधरी, उप-महानिदेशक (एनआरएम) ने प्रौद्योगिकियों और मशीनों के बेहतर प्रबंधन के लिए प्रभावी रणनीतियों पर मंथन करने के लिए सभी हितधारकों को एक मंच पर इकट्ठा होने की सराहना की। उन्होंने किसानों से फसल अवशेषों के लिए इन-सीटू प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने पर जोर दिया क्योंकि एक्स-सीटू प्रथाओं से किसान के खेत का पोषण अन्य स्थानों पर स्थानांतरित हो जाता है।

डॉ. आर.के. सिंह, सहायक महानिदेशक (विस्तार) ने पराली जलाने की समस्या के समाधान के लिए सहकारी मॉडल की आवश्यकता पर जोर दिया और इस कुप्रथा से बचने में सफल किसानों के अनुभव को साझा किया।

इससे पहले, डॉ. राजबीर सिंह, सहायक महानिदेशक (एएएफ एवं सीसी) ने पराली प्रबंधन पर इस राष्ट्रीय संवाद की आवश्यकता के बारे में जानकारी दी। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि खेत में चावल के अवशेषों को बचाने से 15- 20% पानी की बचत के साथ प्रति हेक्टेयर 5000 रुपये की बचत हो सकती है।

डॉ. पी.के. सिंह, कृषि आयुक्त, भारत सरकार ने आग्रह किया कि अवशेष प्रबंधन के लिए उपलब्ध मशीनों का पूरी क्षमता से उपयोग किया जाना चाहिए और राज्य सरकारों को सक्रिय कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इन-सीटू और एक्स-सीटू प्रबंधन को एकीकृत करने का समय आ गया है ताकि शून्य पराली दहन के मिशन को वास्तविकता में तब्दील किया जा सके।

के डॉ. इंद्रजीत सिंह, कुलपति, जीएडीवीएएसयू, लुधियाना और डॉ. धीर सिंह, निदेशक, एनडीआरआई ने धान की पराली को सुदृढ़ीकरण और साइलेज बनाकर पशु आहार के रूप में उपयोग करने पर जोर दिया।

डॉ. बी.आर. कंबोज, कुलपति, सीसीएस एचएयू, हिसार ने अधिकतम उपयोग दक्षता के साथ इन-सीटू प्रबंधन से किसानों के लिए एकल तथा बहुउद्देशीय मशीनरी के विकास की ओर इशारा किया। उन्होंने सभी हितधारकों से एकजुट होकर सभी गतिविधियों में सहयोग और समन्वय करने का आग्रह किया।

डॉ. गुरबचन सिंह, पूर्व अध्यक्ष, एएसआरबी ने एक्स-सीटू और इन-सीटू प्रबंधन के लिए मशीनरी के कुशल उपयोग का महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया। उन्होंने वैज्ञानिकों, हितधारकों और किसानों से पराली जलाने को रोकने के लिए निस्वार्थ सेवाओं के लिए मिशनरी मोड में काम करने का आग्रह किया।

डॉ. मुकेश जैन, निदेशक, एनआईएमटीसी, हिसार ने किसानों को उनके घर-द्वार पर पराली प्रबंधन के लिए उपलब्ध मशीनरी के बारे में जानकारी दी।

इससे पहले, डॉ. आर.के. यादव, निदेशक, भाकृअनुप-सीएसएसआरआई, करनाल ने पराली प्रबंधन पर इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय संवाद में सभी गणमान्य व्यक्तियों और प्रतिनिधियों का स्वागत किया।

संवाद में 500 से अधिक किसानों, निर्माताओं, सीएचसी के मालिकों, गैर सरकारी संगठनों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों आदि सहित अन्य हितधारकों ने शिरकत की।

(स्रोत: प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, भाकृअनुप)

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