उपलब्धियां
- मत्स्य बीज की वर्ष भर उपलब्धता के लिए कार्प में बहु प्रजनन करवाया गया और 17 प्रतिशत से अधिक वार्षिक वृद्धि वाली जयंती रोहू का विकास किया गया।
- श्रिम्प पालन के लिए कम लागत, शून्य जल विनिमय प्रौद्योगिकी का विकास किया गया।
- श्रिम्प पालन के लिए अच्छा स्वास्थ्य और उच्च विकास प्रौद्योगिकी का कार्य प्रगति पर है।
- अन्तः स्थलीय लवणीय क्षेत्रों में श्रिम्प पालन से अच्छे उत्पादन के सफल परीक्षण चल रहे हैं।
- खारा जल में एशियन सीबास हेतु बीज उत्पादन और संवर्द्धन प्रौद्योगिकी।
- भारत के पश्चिमी और पूर्वी तटों पर सीबास और लोबस्टर के उत्पादन के लिए खुला समुद्री बाड़ा तकनीक का विकास किया गया।
- मंडपम में पहली बार कोबिया का प्रजनन और लार्वा पालन किया गया।
- समुद्री सजावटी मछलियों का ब्रूडस्टॉक विकास, प्रजनन और लार्वा पालन किया गया।
- ट्राल जाल में शिशु और कछुओं के बचाव हेतु निष्कर्षक पुरस्कार विजेता डिवाइस।
- गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए बड़ी मैश साइज पर्स जाली का विकास।
- कटलफिश, स्क्विड, थ्रेडफिन ब्रीम, तिलापिया और मेजर कार्प से मूल्य वर्धित उत्पादों की उत्पादन प्रक्रिया का मानकीकरण किया गया।
- पके मत्स्य उत्पादों को ताजा रखकर उनकी गुणवत्ता बनाये रखने के लिए सुविधाजनक पाऊच में पैकेजिंग प्रणाली का विकास किया गया।
- समुद्री स्तनपायी प्राणियों की माइटोक्रोन्ड्रियल डीएनए क्रम आधारित प्रजाति पहचान और पीसीआर आधारित लिंग पहचान का मानकीकरण किया गया।
- श्रिम्प में श्वेत धब्बा रोग जांच की विधि और पीत शीर्ष वायरस की जांच की तकनीक विकसित की गयी।
- कुरूमा श्रिम्प मारसुपेनियस जेपोनिकस, जलजीव पालन के क्षेत्र में क्षमतावान प्रजाति का ब्रूड स्टॉक विकास और पालन किया गया।
- एम. जेपोनिका का सफल पालन किया गया। इसकी जीवितता दर 83 प्रतिशत और उत्पादन 1018 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर प्रति 4 माह किया गया।
- येलो केटफिश, होराबारगस ब्रेकीसोमा और ताजाजल ईल मासटेसेमेबेलस एक्यूलेट्स का सफल प्रजनन किया गया।
- विशालकाय ताजाजल प्रॉन मैक्रोबेकियम रोसेनबर्गी का अंतस्थलीय लवणीय जल में पालन किया गया।
- हनी कॉम्ब ग्रुपर के एपीनेफेलस मेर्रा के लिए लार्वा पालन प्रोटोकॉल विकसित किया गया।
- इंडियन पर्ल ऑयस्टर पिनक्टाडा फ्यूकाटा और एबेलोन, हेलियोटिस वेरिया में प्रयोगशाला में ऊतक संवर्द्धन तकनीक से सफल मोती उत्पादन किया गया।
- पिनक्टाडा फ्यूकाटा मोतियों में लौह और मैगनीज़ जैसी भारी धातुओं के प्रयोग से चमकीले नीले और चमकीले गुलाबी रंग के मोतियों का उत्पादन किया गया।
- सैंड लोबस्टर की दो प्रजातियों (थेनस ओरियन्टेलिस, स्कीलेरस रूगोसस) का बंदी अवस्था में सफलतापूर्वक प्रजनन किया गया।
- समुद्री सजावटी मछलियों के लिए देसी आहार 'वरुणा' का विकास किया गया।.
- हैचरी में चमकीले बैक्टीरिया के नियंत्रण के लिए प्रोबायोटिक तैयार किया गया है।
- 15 मत्स्य प्रजातियों और मैक्रोब्रेकियम रोजनबर्गी के लिए पॉलीमार्फिक माइक्रोसेटलाइट और एलोजाइम मार्कर विकसित किये गये।
- 34 कुलों और 9 क्रमों की 126 फिनफिश प्रजातियों की कार्यो-मार्फोलोजिकल सूचना वाले डेटाबेस 'फिश क्रोमोसोम वर्ल्ड' का विकास किया गया।.
- गंगा के मैदानों में विभिन्न नदियों से लेबियो रोहिता, कतला कतला, सिररहिनस मृगला, लेबियो डेरो और एल. डाइकेलिस में एलोजाइम और माइक्रोसैटेलाइट का प्रयोग करके स्टॉक स्ट्रक्चर विश्लेषण किया गया।
- भीमताल झील में गोल्डन महसीर का बाड़ा पालन, प्रजनन और बीज उत्पादन किया गया।
- राष्ट्रीय नीतिगत योजना के समर्थन में जलीय देशी और विदेशी प्रवेशन की मार्गदर्शिका का विकास करके, प्रकाशन किया गया।
- पर्वतीय क्षेत्रों के लिए स्थानिक और ऊंचाई विशेष कम्पोजिट कार्प पालन प्रौद्योगिकी का विकास किया गया। उत्तरी-पूर्वी राज्यों में चायनीज़ कार्प पद्धति का प्रदर्शन किया गया।
- बाड़ा और संवर्द्धन प्रौद्योगिकी में छोटे जलाशयों से 220 कि.ग्रा./हैक्टर/वर्ष उच्च मत्स्य उत्पादन प्राप्त किया गया जबकि राष्ट्रीय औसत उत्पादन 20 कि.ग्रा./हैक्टर/वर्ष है।
- पेनकल्चर प्रौद्योगिकी द्वारा पोखरों, जलोढ़ स्थानों से भी 100-200 कि.ग्रा./हैक्टर/प्रति वर्ष से लेकर 1000 कि.ग्रा./हैक्टर/वर्ष तक उच्च उत्पादन लिया गया।
- एलपीजी/बायोगैस वाले (सीआईएफटी-सीआरवाईईआर-एसडीएल 250) 250 कि.ग्रा. क्षमता वाला हाइब्रिड सोलर फिश ड्रायर का विकास किया गया। इससे नियंत्रित पारिस्थितियों में आकर्षक रंग के साथ उत्पादन की गुणवत्ता सुनिश्चित होती है।
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और सामाजिक-आर्थिक प्रभाव :
उपयुक्त क्राफ्ट और गिअर विकास, अन्तः स्थलीय, खारा जल, समुद्री और शीत जल मत्स्य संसाधनों का प्रबंधन; अन्तः स्थलीय, खारा जल, समुद्री मछली और शैलफिश पालन प्रौद्योगिकियां; आहार का विकास; प्रग्रहण और प्रग्रहण उपरांत प्रौद्योगिकी; मूल्य संवर्द्धन जैसी मत्स्य संभाग द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों को एजेंसियों के जरिये, प्रशिक्षण, लघु अवधि प्रशिक्षण कार्यक्रमों, परामर्शदात्री सेवाओं और अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों द्वारा लोकप्रिय बनाया जा रहा है। देशभर में कार्प पालन प्रौद्योगिकी के वृहत प्रदर्शन से ताजा जलजीव उत्पादन पर बेहद असर हुआ है और औसत राष्ट्रीय उत्पादन 3 टन/हैक्टर/वर्ष और मत्स्य उत्पादन 35 लाख मिलियन टन हो गया है। सघन कार्प बीज जलाशय उत्पादन की प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप 2400 करोड़ फ्राई का मत्स्य बीज उत्पादन हो सका। इसी तरह ट्रालर, पर्स साइन्स और उन्नत गिअर प्रौद्योगिकी के प्रयोग और संसाधनों के वैज्ञानिक प्रबंधन से समुद्री मछलियों का प्रग्रहण 30 लाख टन तक पहुंच गया है।
मात्स्यिकी संभाग ने चुनौतीपूर्ण मुद्दों पर काम किया है जैसे मछली पालन और जलजीव पालन पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, प्रभावित होने की क्षमता, उसके अनुरूप बदलाव और इसके प्रभाव को कम करना आदि। अन्तः स्थलीय जलजीव पालन में पानी के नियोजन की भी शुरूआत की गयी है। भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटो पर स्थित कई केन्द्रों पर मछली और लॉबस्टर का खुला समुद्री बाड़ा पालन, हैचरी उत्पादन तथा श्रिम्प और एशियन सीबास का जलाशय उत्पादन का प्रदर्शन किया जा रहा है। कार्प, श्रिम्प, और सीबास की विभिन्न अवस्थाओं के लिए आहार विकसित किया गया है और इनके व्यावसायिक उत्पादन के लिए निजी उद्यमियों को प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण।
भविष्य की रूपरेखा :
- मछली पालन और जलजीव पालन पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव।
- नयी पीढ़ी के, कम ईंधन खपत वाली, बहुउद्देश्य मत्स्य नौकओं के डिजाइनों का विकास।
- गहरे जल की मछलियों को पकड़ने के लिए बड़ी मैश साइज की पर्स जाली जैसे उन्नत गिअरों का विकास।
- अन्तः स्थलीय और तटीय जलजीव पारिस्थितिकी के स्वास्थ्य की निगरानी।
- निम्न श्रेणी जल संसाधनों की जैव उपचार प्रक्रिया की प्रौद्योगिकी का विकास।
- अन्तः स्थलीय जल जीव पालन में जल का नियोजित प्रयोग।
- सजावटी मछलियों का बीज उत्पादन और पालन प्रौद्योगिकी।
- अन्तः स्थलीय और खारा जल जीव पालन में प्रजाति विविधता।
- जैविक पालन नियमों पर आधारित कम लागत-कम आदान वाली श्रिम्प पालन प्रौद्योगिकी।
- फिश और शैलफिश के लिए खुला समुद्री पालन।
- कम कीमत के ‘रेडी टू ईट’ मछली उत्पाद।
- अंतर्राष्ट्रीय मानकों के मछली उत्पाद और उपोत्पाद बनाने के लिए सुधरी प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियां।
- जलीय संसाधनों से बायोएक्टिव और औषधीय महत्व के उत्पादों का विकास।
- मत्स्य प्रग्रहण और प्रगहण उपरांत हानि को कम करना।
- मत्स्य अपशिष्ट उपयोग।
- सीफूड (समुद्री आहार) सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए तकनीकों का विकास।
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