1- 3 दिसंबर, 2023, त्रिची
भाकृअनुप-राष्ट्रीय केला अनुसंधान केन्द्र, त्रिची और इंडियन वायरोलॉजिकल सोसाइटी (आईवीसीएस), नई दिल्ली ने संयुक्त रूप से तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में 1 से 3 दिसंबर, 2023 तक "एक स्वास्थ्य की दिशा में वैश्विक वायरस अनुसंधान में प्रगति" विषय पर वीरोकोन 2023 का आयोजन किया।
सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य पौधे, पशु, और चिकित्सीय एवं जलीय विषाणु वैज्ञानिकों को साकारात्मक वैज्ञानिक परिचर्चा में शामिल होने तथा विषाणु जनित महामारी जो मानव, पशु, पौधे, मत्स्य और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को प्रभावित करता है उसका समाधान ढूंढने के लिए बैठक करना है, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी ‘एक स्वास्थ’ मुहिम के तहत इसकी वकालत की है।
वन स्वास्थ्य अवधारणा के तहत वायरोलॉजिस्ट द्वारा मानव, पशु, पौधे, मछली और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली वायरल महामारी से निपटने के लिए पौधे, पशु, चिकित्सा और जलीय विषाणु विज्ञानियों को उत्पादक वैज्ञानिक चर्चाओं में शामिल होने का अवसर प्रदान करने की विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वकालत की गई।
मुख्य अतिथि डॉ. टी.आर. शर्मा, उप-महानिदेशक (फसल विज्ञान और बागवानी विज्ञान) ने दो पुस्तकें जारी कीं और कहा कि वायरस कृषि, जलीय कृषि और पशुपालन के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करते हैं, वैश्विक खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करते हैं और आवश्यक उद्योगों को बाधित करते हैं। उन्होंने कहा कि यह वायरोलॉजी के अध्ययन पर ध्यान केन्द्रित करके सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा और हमारी खाद्य आपूर्ति की रक्षा के लिए व्यापक और टिकाऊ समाधान विकसित करने का एक महत्वपूर्ण समय है।
डॉ. अनुपम वर्मा, एमेरिटस वैज्ञानिक, आईएआरआई, नई दिल्ली; डॉ. यशपाल मलिक, महासचिव, आईवीएस, नई दिल्ली; डॉ. इंद्रनील दासगुप्ता, उपाध्यक्ष, आईवीएस, नई दिल्ली; डॉ. डी.वी.आर. साई गोपाल, कुलपति, क्लस्टर यूनिवर्सिटी, कुरनूल और डॉ. के. नारायणसामी, कुलपति, तमिलनाडु एमजीआर मेडिकल यूनिवर्सिटी, चेन्नई इस कार्यक्रम के सम्मानित अतिथि थे।
डॉ. नारायणसामी ने कहा कि कला और अर्थशास्त्र के विद्वानों का अध्ययन करने वाले लोग भी वायरस के महत्व और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को समझने लगे हैं क्योंकि वायरस परमाणु बम से भी अधिक शक्तिशाली हैं।
डॉ. गोपाल ने कहा कि कोविड-19 के बाद वायरोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी और बायोटेक्नोलॉजी की मांग बढ़ी है।
डॉ. मलिक ने इंडियन वायरोलॉजी सोसायटी की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी।
प्रोफेसर दासगुप्ता ने निदान और इसके महत्व पर जोर दिया।
सम्मेलन में भाकृअनुप, आईसीएमआर, एआईएमएस, एसएयू, एनआईवी, पीजीआईएमईआर, डीआरडीओ और विश्वविद्यालयों जैसे 70 संस्थानों का प्रतिनिधित्व करने वाले वैज्ञानिकों, छात्रों और अनुसंधान विद्वानों सहित भारत के कुल 444 प्रतिनिधियों के अलावा कुछ विदेशी प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
(स्रोत: भाकृअनुप-राष्ट्रीय केला अनुसंधान केन्द्र, त्रिची)
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