जलोपचार प्रौद्योगिकी-आधारित सीवेज उपचार सुविधा का उद्घाटन तथा नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम के 126वें बैच का उद्घाटन

जलोपचार प्रौद्योगिकी-आधारित सीवेज उपचार सुविधा का उद्घाटन तथा नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम के 126वें बैच का उद्घाटन

13 अक्टूबर, 2023, देहरादून

भाकृअनुप-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, देहरादून में स्थापित जलोपचार प्रौद्योगिकी-आधारित सीवेज उपचार सुविधा का आज उद्घाटन किया गया और संस्थान में 4 महीने के नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम के 126वें बैच का भी उद्घाटन किया गया। भाकृअनुप-आईआईएसडब्ल्यूसी राज्य सरकार के अधिकारियों, मुख्य रूप से मृदा संरक्षण अधिकारियों के लिए मिट्टी और जल संरक्षण और वाटरशेड प्रबंधन पर 4 महीने का प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है।

Inauguration of a Jalopchar Technology-Based Sewage treatment facility and 126th batch of the regular training program  Inauguration of a Jalopchar Technology-Based Sewage treatment facility and 126th batch of the regular training program

उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. एस.के. चौधरी, उप-महानिदेशक (एनआरएम), भाकृअनुप ने एक बहुत ही प्रासंगिक समस्या के प्रकृति-आधारित समाधान को बढ़ावा देने में संस्थान द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि विकेन्द्रीकृत उपचार सुविधाएं समस्या का व्यावहारिक समाधान प्रतीत होती हैं। डॉ. चौधरी ने सर्कुलर इकोनॉमी की अवधारणा को अपनाकर सीवेज की समस्या को एक अवसर में बदलने के लिए विभिन्न स्तरों पर हरित प्रौद्योगिकी को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए सभा को प्रोत्साहित किया। डॉ. चौधरी ने प्रशिक्षुओं को पाठ्यक्रम के माध्यम से और अन्य प्रशिक्षुओं के साथ बातचीत के माध्यम से भी सीखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने उन्हें वाटरशेड प्रबंधन की विज्ञान-आधारित प्रभावी योजना के लिए अपने-अपने राज्यों में इस अनुभव का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया।

Inauguration of a Jalopchar Technology-Based Sewage treatment facility and 126th batch of the regular training program  Inauguration of a Jalopchar Technology-Based Sewage treatment facility and 126th batch of the regular training program

डॉ. एम. मधु, निदेशक, भाकृअनुप-आईआईएसडब्ल्यूसी, देहरादून ने भूरे पानी को उत्पादक नीले पानी में बदलने की आवश्यकता और महत्व पर जोर दिया। उन्होंने प्रदूषक तत्वों के सतह और भूजल तक पहुंचने की संभावना को कम करने के लिए सभी उपाय अपनाने पर जोर दिया। डॉ. मधु ने प्रशिक्षण कार्यक्रम में सुधार के लिए की गयी नयी पहल से अवगत कराया।

डॉ. गोपाल कुमार, प्रमुख, मृदा विज्ञान एवं कृषि विज्ञान प्रभाग, भाकृअनुप-आईआईएसडब्ल्यूसी ने कार्यक्रम का संचालन किया।

मानव संसाधन विकास एवं सामाजिक विज्ञान प्रभाग के प्रमुख, डॉ. चरण सिंह ने प्रशिक्षण के उद्घाटन कार्यक्रम में अतिथि का स्वागत किया और उपस्थित लोगों को प्रशिक्षण की संरचना और रूपरेखा से अवगत कराया।

डॉ. (श्रीमती) रविंदर कौर, प्रधान वैज्ञानिक, जल प्रौद्योगिकी, भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली, द्वारा इस तकनीक को विकसित की गई है। पर्यावरण-अनुकूल अपशिष्ट जल उपचार सुविधाएं मुख्य रूप से एरोबिक अपघटन और फाइटोरीमेडिएशन के सिद्धांतों पर काम करती हैं। उपचारित जल में बीओडी, नाइट्रेट, फॉस्फेट, सल्फेट और बाइकार्बोनेट में 42 से 90% तक की कमी पाई गई है।

प्रौद्योगिकी के आविष्कारक डॉ. (श्रीमती) कौर ने सभा को उपचार सुविधाओं के तकनीकी और कार्यात्मक पहलुओं से अवगत कराया जिसमें अरुंडो डोनैक्स (विशालकाय रीड) का उपयोग फाइटोरेमीडिएटर के रूप में किया जाता है। डॉ. कौर ने समय के साथ प्रासंगिक बने रहने के लिए प्रशिक्षण जारी रखने और पाठ्यक्रम सामग्री में बदलाव करने के संस्थान के प्रयासों की सराहना की।

(स्रोत: भाकृअनुप-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, देहरादून)

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