दक्षिण एशिया भोजन का एक प्रमुख उत्पादक और उपभोक्ता है तथा भोजन की हानि और बर्बादी को कम करना हमारी नैतिक जिम्मेदारी के साथ-साथ आर्थिक आवश्यकता भी है - सुश्री करंदलाजे
30 अक्टूबर, 2023, नई दिल्ली
केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री, सुश्री शोभा करंदलाजे ने आज यहां दक्षिण एशियाई क्षेत्र में खाद्य हानि और इसकी बर्बादा के रोकथाम के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्घाटन किया। अपने संबोधन में, सुश्री करंदलाजे ने किसानों और उपभोक्ताओं दोनों से संबंधित एक महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक मुद्दे के समाधान के लिए भाकृअनुप और थुनेन इंस्टीट्यूट, जर्मनी द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में लगभग 3 अरब टन खाना बर्बाद हो जाता है। मंत्री ने कहा कि विकसित और विकासशील देशों की सिद्ध प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं को आगे लाया जाना चाहिए ताकि समाज में स्वीकार्य तरीकों का उपयोग करके दुनिया भर में भोजन क्षति और इसकी बर्बादी को कम किया जा सके। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सामाजिक संगठनों को जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की जरूरत है और बताया कि भोजन की हानि न केवल उपभोक्ता का प्रत्यक्ष नुकसान है बल्कि इसका पर्यावरण और सहायक अर्थव्यवस्थाओं पर भी असर पड़ता है।
सुश्री करंदलाजे ने भोजन की क्षति और बर्बादी के प्राथमिक कारणों की पहचान; सभी हितधारकों के बीच शिक्षा और जागरूकता; कुशल कटाई और भंडारण; स्मार्ट वितरण; उद्योग की भागीदारी; दान और खाद्य बैंक; खाद्य पैकेजिंग में नवाचार; उपभोक्ता जिम्मेदारी, आदि को आगे बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भोजन बर्बाद करना एक अपराध है और सभी से आग्रह किया कि वे अपने बच्चों को भोजन बर्बाद न करने का महत्व सिखाएं।
दक्षिण एशियाई क्षेत्र में खाद्य क्षति और इसके बर्बादी के रोकथाम पर तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और थुनेन संस्थान, जर्मनी द्वारा संयुक्त रूप से 30 अक्टूबर से 1 नवंबर, 2023 तक नई दिल्ली में आयोजित की जा रही है।
डॉ. एस.के. चौधरी, उप-महानिदेशक (एनआरएम), और डॉ. एसएन झा, उप-महानिदेशक (कृषि इंजीनियरिंग) ने भी इस अवसर पर बात की। उन्होंने कहा कि दुनिया में अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान और भोजन की बर्बादी अलग-अलग होती है। यह काफी हद तक फसलों और वस्तुओं, भंडारण की अवधि, जलवायु, तकनीकी हस्तक्षेप, मानव व्यवहार, परंपराओं आदि पर निर्भर करता है।
थुनेन इंस्टीट्यूट, जर्मनी के अनुसंधान निदेशक, डॉ. स्टीफन लैंग ने उल्लेख किया कि भोजन की क्षति और इसकी बर्बादी को कम करना और रोकना यह सुनिश्चित करने के लिए सबसे बड़ा और सबसे प्रभावी उपाय है कि भोजन जरूरतमंदों तक पहुंचे। उन्होंने आगे कहा कि "खाद्य क्षति और खाद्य बर्बादी पर सहयोग पहल" खाद्य क्षति और बर्बादी से लड़ने के साथ-साथ अनुसंधान परिणामों और व्यावहारिक अनुभव के वैश्विक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार भोजन की क्षति और बर्बादी को रोकने के लिए व्यक्तिगत और सहयोगात्मक प्रयास शुरू करने के लिए सभी पड़ोसी देशों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
सुश्री क्लेमेंटाइन ओ'कॉनर, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, फ्रांस ने खाद्य क्षति और अपशिष्ट मेट्रिक्स तथा कृषि और पर्यावरण की स्थिरता पर उनके प्रभाव का मूल्यांकन किया। उन्होंने बताया कि महामारी, जलवायु परिवर्तन और युद्धों से प्रभावित लोगों को भोजन की क्षति और बर्बादी से गंभीर प्रभाव पड़ता है। उन्होंने दुनिया भर में सर्वोत्तम विधियों को सीखने और साझा करने तथा इसे सुनिश्चित करने एवं उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए नीति के विकास पर जोर दिया।
डॉ. के. नरसैया, सहायक महानिदेशक (पीई), भाकृअनुप ने भोजन के नुकसान के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर एक परिचयात्मक प्रस्तुति दी और दुनिया भर में विभिन्न समाजों द्वारा भोजन के नुकसान और बर्बादी को रोकने के लिए अपनाए जाने वाले स्वदेशी तरीकों के उदाहरण दिए। इस सत्र के दौरान सभी प्रतिनिधियों ने परिवारों, कार्यालयों, उद्योगों, समाज और समुदायों में भोजन की हानि और बर्बादी को रोकने की शपथ ली।
अप्रैल 2023 में वाराणसी में आयोजित जी20 एमएसीएस के दौरान, भारत तथा जर्मनी के बीच एक द्विपक्षीय बैठक हुई जिसमें दोनों देशों ने खाद्य क्षति और इसकी बर्बादी की चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक क्षेत्रीय कार्यशाला आयोजित करने का निर्णय लिया, जिसमें पाया गया कि प्रचुर मात्रा में कृषि उत्पादन के बावजूद, उत्पादन से उपभोग तक, खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में भोजन की मात्रा खो जाती है या बर्बाद हो जाती है, और यह खाद्य सुरक्षा और इसकी उपलब्धता, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और समाज पर प्रभाव डालती है; यह दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए अधिक महत्व रखता है, जो एक प्रमुख खाद्य उत्पादक होने के साथ-साथ भोजन का एक बड़ा उपभोक्ता भी है।
इस अवसर पर भारत, बांग्लादेश, भूटान, फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, नेपाल और श्रीलंका के लगभग 120 प्रतिनिधि उपस्थित रहे।
(स्रोत: कृषि विस्तार प्रभाग, भाकृअनुप)
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