New Delhi, 17 July, 2012
डॉ. एस. अय्यप्पन, सचिव (डेयर) एवं महानिदेशक, आईसीएआर, डॉ. आर. प्रभाकरन, उप कुलपति, तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, डॉ. के.एम.एल. पाठक, उप महानिदेशक (कृषि विज्ञान), डॉ. गया प्रसाद, सहायक महानिदेशक (पशु स्वास्थ्य), सन्विता बायोटैक्नोलॉजी के डॉ. कृष्णामचारी तथा आईसीएआर व तमिलनाडु पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (टीएएनयूवीएएस) के अन्य गणमान्यों की उपस्थिति में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने मैसर्स सन्विता बायोटैक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड, हैदराबाद के साथ निष्क्रिय टीके ब्लूटंग मल्टीवेलेंट के व्यवसायिक उत्पादन का समझौता किया।
यह तकनीक पहले ही निजी सार्वजनिक भागीदारी कार्यक्रम के अन्तर्गत भारतीय प्रतिरक्षाविज्ञान लिमिटेड, हैदराबाद तथा बायोवेट प्राइवेट लिमिटेड, बंगलूरू द्वारा 15 फरवरी,2011 को टीएएनयूवीएएस तथा आईसीएआर के साथ समझौते के अनुसार व्यवसायिक उत्पादन के लिए ले ली गई है। आईसीएआर ने ब्लूटंग पर अखिल भारतीय नेटवर्क कार्यक्रम कुल सात करोड़ रुपये के बजट के साथ दसवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान शुरू किया था जो ब्लूटंग पर प्रभावी नियंत्रण कार्यक्रम के विकास के लिए ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में भी जारी है। यह नेटवर्क कार्यक्रम भारत के विभिन्न राज्यों में स्थित 11 केंद्रों पर कार्यरत है। निष्क्रिय टीके ब्लूटंग मल्टीवेलेंट का सफलता पूर्वक विकास भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, श्री वेंकटेश्वर पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय (आंध्र प्रदेश), पशु चिकित्सा और पशु स्वास्थ्य संस्थान (कर्नाटक) तथा लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (हरियाणा) के सहयोग से टीएएनयूवीएएस केंद्र ने किया है।
इस टीके में भारत में प्रचलित 1,2,10,16 और 23 बीटीवी सीरम प्रकारों को सम्मिलित किया गया है। भेड़ों का टीकाकरण मानसून के प्रारंभ होने से एक महीने पहले किया जाना चाहिए। ब्लूटंग टीके की उपयोगिता के प्रयोग बड़े पैमाने पर तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में किए गए हैं। इस टीके के प्रभावी होने की कई किसान समुदायों ने प्रशंसा की है।
ब्लूटंग नामक रोग सूलिकोइड नामक छोटे कीड़े के काटने से फैलता है और पहली बार साल 1964 में भारत में पहली बार पाया गया था। वर्तमान में यह रोग पूरे भारत में भेड़ों को प्रभावित कर रहा है। यह रोग भारत के दक्षिणी राज्यों तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में गंभीर रूप से पाया जा रहा है। बकरियों, दुधारू पशुओं तथा जंगली पशुओं में भी ब्लूटंग पाए जाने की सूचनाएं मिल रही हैं। वर्तमान में यूरोपीय देशों में पर्यावरण परिवर्तन के कारण ब्लूटंग के कारण भारी क्षति हो रही है।
(स्त्रोतृ: पशु स्वास्थ्य प्रभाग, आईसीएआर)
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