4 अक्टूबर, 2022, जोधपुर, राजस्थान
गांठदार त्वचा रोग (एलएसडी) राजस्थान में मवेशियों की आबादी के लिए एक बहुत ही गंभीर स्वास्थ्य खतरे के रूप में उभरा है, जो क्षेत्र के गोवंशों में स्वास्थ्य और दूध उत्पादन दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। कुछ जिलों में दूध का उत्पादन 50% तक कम हो गया, जिससे डेयरी किसानों को भारी नुकसान हुआ। भाकृअनुप-काजरी, कृषि विज्ञान केन्द्र, जोधपुर - I के अधिकार क्षेत्र में आने वाले गांवों में क्षेत्र सर्वेक्षण यह प्रकट करने के लिए किया गया था कि प्रभावित डेयरी मवेशियों में भूख न लगने, तेज बुखार और उत्पादन में कमी के साथ त्वचा के घाव थे और लगभग 10% पशुओं की इस रोग के कारण मृत्यु द्वितीयक संक्रमण और उचित देखभाल की कमी के कारण हो गई थी।
किसानों में जागरूकता पैदा करने और क्षेत्रीय स्तर पर एलएसडी के प्रबंधन की सुविधा के लिए, केवीके जोधपुर- I ने 200 से अधिक पशुपालकों की भागीदारी के साथ लावरी (भोपालगढ़), मणई (केरू) और आसपास के क्षेत्रों में 2 जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए। इन कार्यक्रमों में, डॉ. एन.वी. पाटिल, डॉ. ए.के. पटेल और डॉ. सुभाष कच्छवाहा ने एलएसडी की रोकथाम और नैदानिक प्रबंधन के बारे में विस्तार से चर्चा की। इस प्रकोप से प्रभावित क्षेत्रों, खास कर, गांवों में इलाज के लिए और बीमार पशुओं की प्राथमिक चिकित्सा देखभाल का प्रदर्शन करने के लिए दो पशु स्वास्थ्य शिविर भी आयोजित किए। पशुपालकों को कहा गया कि बीमारी से घबराने की जरूरत नहीं है। बीमारी के उपचार और नियंत्रण के लिए केवल वैज्ञानिक, मान्य तकनीकों को अपनाने तथा आवास संरचनाओं के आसपास स्वच्छता/कीटाणुशोधन का ध्यान रखते हुए स्वस्थ पशुओं में बीमारी के संचरण को रोकने के लिए आवश्यक सावधानी बरतने की सलाह दी गई। रोगग्रस्त पशुओं को तुरंत अलग करने और मृत पशुओं को उचित तरीके से दफनाने की भी सलाह दी गई। आगे, बीमार पशुओं की आवाजाही को प्रतिबंधित करने और उन्हें बंद बाड़ों में रखने पर भी जोर दिया गया। रोग के वैक्टर जैसे - मच्छरों, मक्खियों और टिक्स को नियंत्रित करने के लिए तथा स्वस्थ जानवरों में फैलने से रोकने के लिए आवश्यक उपाय सुझाए गए। इस प्रकार एलएसडी की सलाह के रूप में, केवीके ने पशुपालकों को 3000 पर्चे वितरित किए गए। राज्य पशुपालन विभाग के अधिकारियों की मदद से 200 से अधिक मवेशियों को एलएसडी, 3211 पशुओं के उपचार की सलाह और 3814 मवेशियों को, बकरी में चेचक को नियंत्रित करने लिए उपयोग किये जाने वाले टीके लगाए गए। डॉ. एन.वी. पाटिल, प्रमुख, पशुधन उत्पादन और प्रबंधन विभाग, काजरी, जोधपुर के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक टीम ने अन्य पशुपालन वैज्ञानिकों के साथ बीमार पशुओं की देखभाल के लिए क्षेत्र का दौरा किया और मौके पर ही आवश्यक सलाह दी। डॉ. सुभाष कछवाहा, एसएमएस (पशु चिकित्सा विज्ञान) ने उत्पादन हानि को कम करने के लिए पशुओं के सही हो जाने के बाद की देखभाल की निगरानी की।
(स्रोत: प्रभारी एकेएमयू प्रकोष्ठ, भाकृअनुप-काजरी, कृषि विज्ञान केन्द्र-जोधपुर - I)
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