प्रमुख खरीफ फसलों के पौध संरक्षण में उभरती चुनौतियों पर परामर्श बैठक आयोजित

प्रमुख खरीफ फसलों के पौध संरक्षण में उभरती चुनौतियों पर परामर्श बैठक आयोजित

12 अगस्त, 2022, चंडीगढ़

प्रमुख खरीफ फसलों के पौध संरक्षण में उभरती चुनौतियों पर एक दिवसीय परामर्श बैठक का आयोजन आज भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, लुधियाना द्वारा चंडीगढ़ में किया गया। बैठक का उद्देश्य उत्तरी राज्यों में वर्तमान खरीफ मौसम की फसलों का जायजा लेना और खरीफ फसलों में कीटों एवं बीमारियों की वास्तविक स्थिति जानना और उनके प्रभावी प्रबंधन के लिए रणनीति विकसित करना था।

अपने संबोधन में, डॉ. ए.के. सिंह, उप महानिदेशक (एजी एक्सटेंशन), भाकृअनुप और कृषि आयुक्त, भारत सरकार ने कहा कि मक्का को धान की वैकल्पिक फसल के रूप में देखा जाता है और सरसों भी कुछ हद तक गेहूं क्षेत्र के उपर दावा कर सकता है। उन्होंने जोर दिया कि किसानों की आय बढ़ाने और खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए मक्का, सरसों और मूंग (3M) की खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। डॉ. सिंह ने आधुनिक तकनीक को अपनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया और कृषि अनुसंधान संस्थानों से कृषि ड्रोन के लिए विभिन्न फसलों के लिए प्रोटोकॉल विकसित करने का आह्वान किया। उन्होंने बताया कि भारत सरकार ने कृषि-ड्रोन परियोजना के तहत 2022-23 के दौरान कृषि-ड्रोन परियोजना के तहत केवीके, भाकृअनुप संस्थानों और कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा 75000 प्रदर्शन आयोजित करने के लिए भाकृअनुप को 300 किसान ड्रोन स्वीकृत किए हैं। उन्होंने केवीके से किसानों को नियमित रूप से गुणवत्तापूर्ण फसल सलाह भेजने का आग्रह किया, जिसमें बहुत सारे आर्थिक मूल्य निहित हों। उन्होंने कहा कि 36 लाख से अधिक किसानों ने किसान सारथी पोर्टल पर पंजीकरण कराया है और सभी भाकृअनुप संस्थान नियमित रूप से किसानों के प्रश्नों का समाधान कर रहे हैं। उन्होंने किसानों को कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के प्रति आगाह किया। उन्होंने कहा कि इस तरह की इंटरफेस मीटिंग से जमीनी स्तर से किसानों की आवाज जानने में मदद मिलेगी और इस तरह की बैठक के दौरान चर्चा किए गए समाधान से गांव/ब्लॉक स्तर पर सिफारिशों को लागू करने में मदद मिल सकती है।

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श्री आर.जी. अग्रवाल, अध्यक्ष, धानुका समूह ने 'एकीकृत फसल प्रबंधन' प्रथाओं को अपनाने, आधुनिक तकनीक के उपयोग और गुणवत्ता वाले कृषि आदानों की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा यह देश भर में खेती की जाने वाली विभिन्न फसलों से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों को हल करने में मदद करेगा। डॉ अग्रवाल ने कहा कृषि उपज और किसानों की आय बढ़ाने के लिए सटीक कृषि महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र बड़े पैमाने पर ड्रोन और अन्य तकनीकों को अपना रहा है, क्योंकि प्रौद्योगिकी को किसानों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है।

श्री हरदीप सिंह, महानिदेशक, कृषि और किसान कल्याण विभाग, हरियाणा ने बताया कि कपास क्षेत्र में सफेद मक्खी और पीबीडब्ल्यू का हमला है, हरियाणा के अंबाला और यमुनानगर जिलों में भी धान की वृद्धि रुक गई है। उन्होंने रबी सीजन के लिए कृषि विभाग की तैयारियों को भी साझा किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि विविधीकरण राज्य सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और हम मूल्य श्रृंखला के साथ-साथ विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए योजना विकसित करने की योजना बना रहे हैं ताकि आधिक्य की समस्या को सुलझाया जा सके।

पंजाब के कृषि निदेशक, डॉ. गुरविंदर सिंह ने बताया कि कपास की वानस्पतिक वृद्धि कई कारणों से धीमी है और कई इलाकों में फसल को बढ़ावा देने के लिए किसानों को सलाह दी जा रही है। हालांकि कपास की फसल में सफेद मक्खी और पीबीडब्ल्यू की समस्या रहती है और अधिक ऊंचाई तक जाने के लिए प्रभावी उपाय की जरूरत होती हैं। इस तरह, प्रभावी प्रचार-प्रसार के लिए, हमारी टीमें छुट्टियों में भी मैदान में अथक रूप से काम कर रही हैं और किसानों को समाधान प्रदान कर रही हैं। उन्होंने कल्पना की कि लचर विकास के कारण कपास की उत्पादकता कम हो सकती है लेकिन इसकी भरपाई बाजार में कपास की कीमतों में वृद्धि से की जा सकती है। धान की फसल में बौनेपन के बारे में भी कुछ समस्या बताई गई है और पीएयू के शोधकर्ता इस उभरती हुई समस्या के समाधान की तलाश कर रहे हैं।

डॉ. राजबीर सिंह, निदेशक, भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (अटारी) ने वर्तमान खरीफ फसलों की उभरती चुनौतियों और समाधानों के बारे में केवीके वैज्ञानिकों के साथ बातचीत पर एक महत्वपूर्ण सत्र का संचालन किया।

यह पहली बार है जब, नीति निर्माताओं द्वारा परिकल्पित सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए एक निजी क्षेत्र के सहयोग से राष्ट्रीय स्तर की परामर्श बैठक आयोजित की जा रही है।

डॉ. सुभाष चंदर, निदेशक, भाकृअनुप-राष्ट्रीय एकीकृत कीट प्रबंधन केंद्र (एनसीआईपीएम), नई दिल्ली ने सुझाव दिया कि एकीकृत कीट प्रबंधन तकनीकों को अपनाने से किसानों को अत्यधिक लाभ होगा और इसे धान, कपास, गन्ना और मक्का में समग्र रूप से अपनाने की आवश्यकता है।

डॉ. सुजय रक्षित, निदेशक, भाकृअनुप-भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (आईआईएमपी), लुधियाना ने जोर देकर कहा कि फसलों का विविधीकरण समय की आवश्यकता है और धान उगाए जाने वाले क्षेत्र में विविधीकरण के लिए मक्का अच्छा विकल्प है। उन्होंने सलाह दी कि कम अवधि की फसलों की खेती से कृषक समुदाय को भी काफी मदद मिलेगी।

इस बैठक के दौरान, विविध पृष्ठभूमि के विशेषज्ञ अर्थात राज्य के कृषि विभाग के अधिकारियों सहित भाकृअनुप संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों, केवीके और उद्योगों ने उत्तर भारत में मौजूदा खरीफ सीजन की फसलों में उभरती चुनौतियों पर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने वर्तमान खरीफ मौसम की फसलों के पौध संरक्षण उपायों पर चर्चा की जिसमें धान, कपास, मक्का और गन्ना का पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली के खरीफ सीजन की फसलों में प्रमुख चुनौतियां के बारे में चर्चा की। विशेषज्ञों ने सफेद मक्खी और कपास में पिंक बॉल वर्म (पीबीडब्ल्यू), चावल के फसल में विकास और पत्तियों का पीलापन, गन्ने में टॉप-बोरर और पोक्का बोएंग और मक्का में फॉल आर्मीवर्म (एफएडब्ल्यू) पर विस्तार से विचार-विमर्श किया गया।

पंजाब, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली के 33 कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) के 65 से अधिक वैज्ञानिकों ने भौतिक रूप से भाग लिया और देश के अन्य हिस्सों के 200 से अधिक वैज्ञानिक वर्चुअल रूप से शामिल हुए।

(स्रोत: भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, लुधियाना)

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