6 फरवरी, 2023, चेन्नई
भाकृअनुप-केन्द्रीय खारा जलजीव पालन संस्थान, चेन्नई ने मैसर्स पिनेकल बायोसाइंस, कन्याकुमारी, तमिलनाडु के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर कर आज सीबा के लिए बाजार लिंकेज बनाने के साथ-साथ समुद्री शैवाल उत्पादक किसानों द्वारा उत्पादित स्वदेशी खारे पानी की समुद्री शैवाल की प्रजातियों को बाजार के साथ जोड़ने में सहायता प्रदान कर रहा है।

डॉ. कुलदीप के. लाल, निदेशक, भाकृअनुप-सीबा ने व्यवहार्य आजीविका विकल्प, पौष्टिक भोजन के समृद्ध स्रोत और जल निकायों के जैव उपचार के लिए एक प्रमुख समाधान के रूप में समुद्री शैवाल की खेती के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने पीएमएमएसवाई योजना के तहत समुद्री शैवाल में उपलब्ध खनिजों और पोषक तत्वों और समुद्री शैवाल की खेती को बढ़ावा दिए जाने के महत्व के बारे में भी जानकारी दी।
श्री बुरोसोथमन, रिसर्च फेलो, मैसर्स पिनेकल बायोसाइंस ने कहा कि समुद्री शैवाल पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण ऊर्जा उत्पादों, जैव उर्वरकों और खाद्य उत्पादों में परिवर्तित होकर ये आपना उच्च मूल्य गुणवत्ता को बनाए रखते हैं। उन्होंने कहा कि औद्योगिक क्षेत्र में समुद्री शैवाल की मांग बहुत अधिक है क्योंकि समुद्री शैवाल अगर, एल्गिनेट, खाद्य योजक, उर्वरक से भरपूर और दवा के निर्माण में काफी योगदान करते हैं तथा इस मांग को पूरा करने के लिए समुद्री शैवाल की उपलब्धता काफी कम है।
डॉ. पी. नीला रेखा, प्रधान वैज्ञानिक और टीम लीडर ने खारे पानी की समुद्री शैवाल संस्कृति की उत्पत्ति को संक्षेप में रेखांकित किया, जो झींगा फार्म डिस्चार्ज वॉटर में बायोरेमेडिएशन से शुरू होता है, और उसके साथ ‘आरएएस’ के लिए बायोफिल्टर और स्वदेशी समुद्री शैवाल एग्रोफाइटन टेनुइस्टीपिटाटा के लिए संस्कृति प्रथाओं का मानकीकरण के द्वारा संभव होता है।
(स्रोत: भाकृअनुप-केन्द्रीय खारा जलजीव पालन संस्थान, चेन्नई)
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