18 फरवरी, 2021, पुणे
भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, पुणे, महाराष्ट्र और कृषि विज्ञान केंद्र, नवसारी कृषि विश्वविद्यालय, नवसारी, महाराष्ट्र ने आज 'गुजरात के 30 केवीके की राज्य स्तरीय आभासी वार्षिक कार्य योजना कार्यशाला' का आयोजन किया।

डॉ. अशोक कुमार सिंह, उप महानिदेशक (कृषि विस्तार), भाकृअनुप ने अपने उद्घाटन संबोधन में किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) को सहकारी समितियों के छोटे संस्करण के रूप में माना। उन्होंने केवीके से किसानों के संगठन के लिए समूह आधारित व्यवसाय संगठन (सीबीबीओ) के रूप में काम करने का आग्रह किया। डॉ. सिंह ने मृदा परीक्षण और प्रयोग प्रणाली की जाँच के लिए हस्त-उपकरणों का उपयोग करने पर जोर दिया। उन्होंने तिलहन, दलहन, जैव-फोर्टिफाइड किस्में, पोषक तत्त्वों वाले उद्यानों, गुणवत्तापूर्ण नर्सरी, मृदा स्वास्थ्य और जैविक खेती पर भी अधिक जोर दिया।
डॉ. वी. पी. चहल, अतिरिक्त महानिदेशक (कृषि विस्तार), भाकृअनुप ने इस बात पर जोर दिया कि कार्य योजना को विकसित करने में केवीके को दूरदर्शी होना चाहिए। उन्होंने तकनीकी और वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए विभिन्न एजेंसियों के साथ अभिसरण का निर्माण करने पर जोर दिया।
डॉ. ज़ेड. पी. पटेल, कुलपति, नवसारी कृषि विश्वविद्यालय, नवसारी, महाराष्ट्र ने केवीके से अधिक मुनाफे के लिए किसानों के जैविक उत्पादों के विपणन की व्यवस्था का आग्रह किया। उन्होंने केवीके को जनजातीय गाँवों में खेती की पद्धतियों के साथ संस्कृति, वर्जनाओं और त्योहारों को जोड़ने का सुझाव दिया।
डॉ. वी. पी. चोवतिया, कुलपति, जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय, जूनागढ़, गुजरात ने बेहतर निर्यात बाजार के लिए कटाई उपरांत प्रसंस्करण, मूल्य-संवर्धन, खाद्य सुरक्षा मानकों और बाजार की जानकारी पर जोर दिया।
डॉ. आर. एम. चौहान, कुलपति, सरदारकृष्णनगर दांतीवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय, गुजरात ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए उच्च तकनीक वाले मॉडल को बढ़ावा देने पर जोर दिया।
डॉ. लाखन सिंह, निदेशक, भाकृअनुप-अटारी, पुणे, महाराष्ट्र ने केवीके विशेषज्ञों से जलवायु परिवर्तन के कारण फलों और सब्जियों में विभिन्न नई बीमारियों/कीटों के आने के बीच वैकल्पिक रणनीतियों की भविष्यवाणी करने और उनका पालन करने के लिए सतर्क रहने का आग्रह किया।
कार्यशाला में कुल 75 प्रतिभागियों ने आभासीय तौर पर भाग लिया।
(स्रोत: भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, पुणे, महाराष्ट्र)
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