17 मई 2016, नई दिल्ली
'भारत में जीएम फसलें एवं भविष्य' विषय पर नई दिल्ली में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया।
डॉ. त्रिलोचन महापात्र, सचिव, डेयर एवं महानिदेशक, भाकृअनुप ने अपने संबोधन में कहा है कि जीएम फसलों के लिए कीट प्रतिरोधी होना उत्पाद विकसित करने के लिए प्राथमिक लक्ष्य होना चाहिए। इस उद्देश्य के लिए कुछ फसलों एवं उनकी विशेषताओं की पहचान की जानी चाहिए।
डॉ. एस. कुमार सोपोरी, पूर्व कुलपति, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली और बैठक के अध्यक्ष ने अपने संबोधन में आग्रह किया कि किसानों और मीडिया सहित विभिन्न हितधारकों के बीच संवाद की आवश्यकता है।
डॉ. बी. मीना कुमारी, अध्यक्ष, राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण, चेन्नई, डॉ. एस.के. दत्ता, प्रो-वाइस चांसलर, विश्व भारती विश्वविद्यालय, डॉ. दीपक पेंटल, पूर्व कुलपति, दिल्ली विश्वविद्यालय, डॉ. एस.आर. राव, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, डॉ. जे.एस. संधू, उप महानिदेशक (सीएस), भाकृअनुप, डॉ. कृष्ण कुमार, उप महानिदेशक (एचएस), भाकृअनुप के सहायक महानिदेशक, भाकृअनुप के संस्थानों एवं निदेशक, आईपी विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं और देश के विभिन्न भागों से पादप जैव प्रौद्योगिकी पर कार्यरत अनुसंधान प्रबंधकों ने कार्यक्रम में भाग लिया।
इस कार्यक्रम में जीएम फसलों (फसल और बागवानी सहित) की स्थिति पर चर्चा की गई।
कार्यशाला के दौरान नियामक पहलुओं, जैव सुरक्षा के मुद्दों, उत्पाद उन्मुख अनुसंधान बनाम शैक्षिक उद्देश्य के लिए पराजीनी अनुसंधान, खेत परीक्षण के लिए राज्यों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी), भाकृअनुप और डीबीटी के एक साथ काम करने की आवश्यकता, एक संयुक्त कार्यदल की आवश्यकता, जीएम अनुसंधान के लिए फसलों व उनके लक्षण पर ध्यान केंद्रित करना, पराजीनी विकास तथा जर्मप्लाज्म में विशेषताओं की उपलब्धता और पराजीनी का पिरामिडीकरण इत्यादि जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया।
डॉ. पी.के. अग्रवाल, सहायक महानिदेशक, राष्ट्रीय कृषि विज्ञान कोष, भाकृअनुप ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया।
(स्रोत: राष्ट्रीय कृषि विज्ञान कोष, नई दिल्ली)
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