दिनांकः 20-12-2016
उत्तर प्रदेश में मधुमक्खी पालन की अपार सम्भावनाओं को देखते हुए किसानों के सर्वांगीण विकास हेतु माननीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री राधामोहन सिंह जी की पहल से भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड द्वारा पूर्वांचल में स्थित भाकृअनुप - भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी में समेकित मधुमक्खी पालन विकास केन्द्र स्थापित किया जा रहा है। यह उत्तर प्रदेश का प्रथम व इकलौता मधुमक्खी पालन विकास का उत्कृष्ट केन्द्र होगा। इससे उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पश्चिम बिहार के युवकों के भी कौशल विकास में बढ़ोतरी होगी।
समेकित एवं उत्कृष्ट मधुमक्खी पालन विकास केन्द्र की स्थापना का शुभारम्भ करते हुए मुख्य अतिथि श्री छोटे लाल खरवार, माननीय सांसद, रार्वट्सगंज ने किसानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि वनों में मधुमक्खी पालन एक परम्परागत उद्यम के रूप में प्रचलित है जहां पर आदिवासी शहद प्राप्त करने की कला से परिचित है। यद्यपि उनको वैज्ञानिक पद्धति द्वारा छत्तों के प्रबंधन पर प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। यहां पर प्रशिक्षण कौशल विकास के माध्यम से ग्रामीण नवयुवक संग्रहण, प्रसंस्करण एवं मधुमक्खी उत्पाद के विपणन पर आधारित प्रशिक्षण लेकर रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। इससे न केवल रोजगार का सृजन होगा बल्कि मधुमक्खी उत्पादों को निर्यात करके विदेशी मुद्रा भी अर्जित की जा सकती है।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि श्री रविन्द्र जयसवाल, माननीय विधायक, वाराणसी उत्तरी ने कहा कि वर्तमान परिवेश में लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो रहे हैं। शहद का उपयोग शरीर को स्वस्थ एवं निरोगी रखने के लिए कारगर होगा एवं मधुमक्खी द्वारा उत्पादित अन्य उत्पादों का खाद्य, औषधि एवं सौन्दर्य प्रसाधन के उद्योग में प्रयोग किया जा सकता है। ग्रामीण परिवेश में मधुमक्खी पालन आय सृजन करने का एक सार्थक माध्यम है। मधुमक्खियां न केवल शहद का उत्पादन करती हैं बल्कि विभिन्न फसलों में परागण द्वारा उनके उत्पादन को बढ़ाने में अपनी महत्पूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस केन्द्र में किसान व मधुमक्खी पालक एक स्थान पर मधुमक्खी पालन से सम्बन्धित विभिन्न आयामों पर जानकारी प्राप्त करके लाभान्वित होगें। इसमें शारीरिक दक्षता की कम आवश्यकता होती है जिसके लिए महिलायें भी सर्वथा उपयुक्त हैं।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के निदेशक, डॉ. बी. एल. सारस्वत ने कहा कि मधुमक्खी परागण द्वारा फल एवं सब्जियों, तिलहन, दलहन एवं विभिन्न फसलों की उपज में 2 प्रतिशत तक की वृद्धि प्राप्त की गयी है। यह भी आंकलन है कि कई बार मधुमक्खी द्वारा परागित फसल के उत्पादन का मूल्य मधुमक्खियों द्वारा उत्पादित शहद एवं मोम के मूल्य से कई गुना अधिक होता है। प्रायः यह देखा गया है कि मधुमक्खिया टिकाऊ एवं पर्यावरण के अनुकूल कृषि तथा फसलों की उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए कम खर्चीली निवेश है। देश में एपिस सेराना एवं एपिस मेलीफेरा मधुमक्खी किस्मों के प्रजनक द्रव्य के विकास एवं गुणन हेतु बेहतर प्रबंधन की पद्धतियों को अपनाने की आवश्यकता है जिससे विभिन्न फसलों एवं शहद उत्पादन तथा उत्पादकता में वृद्धि की जा सके।
संस्थान के निदेशक डॉ. बिजेन्द्र सिंह ने बताया कि भाकृअनुप - भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी में स्थापित केन्द्र में रानी मक्खी के गुणन की इकाई, मधुमक्खी रोग निदान प्रयोगशाला, अपशिष्ट रसायन विश्लेषण प्रयोगशाला एवं अन्य मधुमक्खी उत्पाद के निष्कासन एवं प्रसंस्करण इकाई वैज्ञानिक ढंग से मधुमक्खी पालन का सूचना केन्द्र होगा जिसमें तकनीक एवं सम्बन्धित सेवाओं सहित अन्य जानकारी प्राप्त होगी। वर्ष 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार इस समय देश में प्रति व्यक्ति प्रति दिन 50 ग्राम के सापेक्ष मात्र 10 ग्राम शहद उपलब्धता है। प्रति व्यक्ति उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए मधुमक्खी कालोनियों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ प्रचलित प्रजातियों एपिस सेराना (10 कि.ग्रा. शहद /छत्ता) एवं एपिस मेलीफेरा (30 किग्रा. शहद /छत्ता) के उत्पादन को दोगुना करने की आवश्यकता हैं जिससे शहद की उपलब्धता के साथ-साथ परपरागण द्वारा 12 मुख्य फसलों की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। इस सन्दर्भ में यह केन्द्र अग्रणी भूमिका निभाएगा और किसानों को अपनी आमदनी दोगुनी करने में सहायता मिलेगी। इस अवसर पर क्षेत्र के किसान श्री देवव्रत शर्मा, मधुमक्खी पालक एवं सदस्य, राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड ने भी अपने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर धन्यवाद ज्ञापन डा. ए.बी. राय, विभागाध्यक्ष एवं प्रधान वैज्ञानिक, फसल सुरक्षा ने दिया।
(स्रोतः भाकृअनुप - भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी)
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