28 सितम्बर, 2022, हैदराबाद
भाकृअनुप-केन्द्रीय शुष्क भूमि कृषि अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद में आज "सतत जलवायु अनुकूल वर्षा सिंचित कृषि के लिए पंचभूतों (तत्वों) की क्षमता का दोहन" पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया गया। संगोष्ठी का आयोजन हाइब्रिड मोड में भारतीय कृषि आर्थिक अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली और इंडियन सोसाइटी ऑफ ड्राईलैंड एग्रीकल्चर, हैदराबाद के सहयोग से किया गया।

मुख्य अतिथि, स्वामी शितिकांतानंद, रामकृष्ण मठ, हैदराबाद ने उल्लेख किया कि पंचभूत कभी भी निर्जीव नहीं होते हैं ये देवताओं द्वारा नियंत्रित बल होते हैं। मिट्टी एक संसाधन नहीं है बल्कि एक विरासत है जो हमें अपने पूर्वजों से विरासत में मिली है और आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित रूप से सौंपी जानी है। उन्होंने किसानों से कीटनाशकों के उपयोग को कम करने का आग्रह किया क्योंकि इसमें मधुमक्खियों और तितलियों जैसे लाभकारी कीड़ों के खिलाफ हिंसा शामिल है और उन्हें गैर-रासायनिक कृषि उत्पादन प्रणाली को बढ़ावा देने की सलाह दी।

डॉ. एम.सी. वार्ष्णेय, पूर्व कुलपति, कामधेनु विश्वविद्यालय और आनंद कृषि विश्वविद्यालय ने कहा कि जब पंचभूत सामंजस्यपूर्ण संतुलन में होते हैं, तो फसल उत्पादन भरपूर होता है। उन्होंने कहा कि इस संतुलन के बिगड़ने से फसल पर जोर पड़ता है तथा कम उत्पादन और मिट्टी, पानी एवं हवा की गुणवत्ता में गिरावट आती है। डॉ. वार्ष्णेय ने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन एक ऐसा व्यवधान है जो पौधों का वातावरण में 'ऊर्जा' को बदल देता है, दूसरी तरफ पंचभूतों का संतुलन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बेअसर कर देता है और जलवायु के अनुकूल कृषि की ओर ले जाता है।
भारतीय कृषि आर्थिक अनुसंधान केंद्र के अध्यक्ष, डॉ. प्रमोद चौधरी ने कहा कि हमारे पूर्वजों को पंचभूतों, पांच तत्वों की गहरी समझ थी और यह कृषि सहित मानव जीवन के हर पहलू को कैसे प्रभावित करते हैं।
भारतीय किसान संघ के महासचिव, डॉ. दिनेश कुलकर्णी ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के सामंजस्यपूर्ण उपयोग और उनके अत्यधिक दोहन से बचकर ही पारिस्थितिक संतुलन बना रहेगा। अपने अंतर्संम्बधों की समझ के आधार पर पंचभूतों के तालमेल का उपयोग करने से कृषि, पारिस्थितिकी तंत्र, व्यक्तियों और समुदायों की भलाई होनी है।
डॉ. ए.के. सिंह, पूर्व डीडीजी (एनआरएम) और कुलपति, आरवीएसकेवीवी ने कहा कि मिट्टी का स्वास्थ्य सबसे महत्वपूर्ण कारक है तथा स्वस्थ मिट्टी ही स्वस्थ राष्ट्र की ओर ले जाएगी और आगे उन्होंने जोर देकर कहा कि पानी की गुणवत्ता फसल की पोषण गुणवत्ता तय करेगी।
इससे पहले, डॉ. वी.के. सिंह, निदेशक, भाकृअनुप-क्रीडा ने वर्षा आधारित टिकाऊ कृषि में पंचभूतों जैसे क्षिति, पावक, समीर, जल और गगन के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने आगे उल्लेख किया कि फसल उत्पादन अनिवार्य रूप से सूर्य की 'ऊर्जा' प्राप्त कर रहा है, 'मिट्टी' में उगने वाले पौधे 'हवा' और 'पानी' से कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग कर रहा है।
डॉ. के. सम्मी रेड्डी, प्रमुख तथा आयोजन सचिव, राष्ट्रीय संगोष्ठी ने संगोष्ठी का उद्देश्य समझाया। वर्तमान संगोष्ठी, सुफलाम श्रृंखला के अंतर्गत चौदह संगोष्ठियों की श्रृंखला में, आठवां संगोष्ठी है।
राष्ट्रीय संगोष्ठी में वैज्ञानिकों, अनुसंधान कर्मियों, किसानों तथा छात्रों सहित लगभग 300 हितधारकों ने भाग लिया।
(स्रोत: भाकृअनुप-केन्द्रीय शुष्क भूमि कृषि अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद)








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