9 अक्टूबर, 2022, गरसा, कुल्लू
भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, जोन-I, लुधियाना ने भाकृअनुप-केन्द्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर के सहयोग से "छोटे जुगाली करने वाले पशुपालकों की वर्तमान स्थिति, चुनौतियां और संभावनाएं" पर आज यहां एक कार्यशाला-सह-वैज्ञानिक-किसान संवाद का आयोजन भाकृअनुप-सीएसडब्ल्यूआरआई का उत्तरी शीतोष्ण अनुसंधान केन्द्र में किया गया।

मुख्य अतिथि, डॉ. इंद्रजीत सिंह, कुलपति, गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, लुधियाना ने अपने संबोधन में केवीके वैज्ञानिकों से किसान समुदाय के कल्याण के लिए पूरे दिल से काम करने का आग्रह किया। उन्होंने किसानों से अनुसंधान संस्थानों द्वारा विकसित नवीनतम तकनीकों से खुद को अपडेट रखने का आह्वान किया।
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विशिष्ट अतिथि, श्री सुरेश चंदेल, पूर्व सांसद और सदस्य भाकृअनुप शासी निकाय ने कृषि और संबद्ध विज्ञान में कौशल-उन्मुख पाठ्यक्रम का सुझाव दिया जो कृषि-स्नातकों के स्वरोजगार के लिए उपयुक्त पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान कर सकता है। इस पहल के लिए दोनों भाकृअनुप संस्थानों को बधाई देते हुए, उन्होंने कृषक समुदाय के लाभ के लिए इस तरह के आयोजनों के लिए उत्सुकता व्यक्त की।
डॉ. परवीन कुमार मलिक, पूर्व पशुपालन आयुक्त, भारत सरकार ने अनुसंधान संस्थानों और किसानों से विभिन्न उद्यमशीलता पहलों के माध्यम से पशुधन खेती के दायरे का विस्तार करने का आग्रह किया। उन्होंने किसानों से सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए समूहों में काम करने का आग्रह किया।
डॉ. राजबीर सिंह, निदेशक, भाकृअनुप-अटारी, लुधियाना ने भेड़ विकास के लिए सफल मॉडल तैयार करने के लिए सहयोगात्मक रूप से कार्य करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा चांगथांग घाटी में पश्मीना ऊन के वृहत दायरे एवं अवसर है, जिस पर उत्पाद के विपणन के संबंध में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के संबंध में चिंता व्यक्त की, विशेष रूप से पहाड़ियों में, जो लाभदायक पशुधन उत्पादन के लिए उपयुक्त तकनीकी उपयोग एवं सहयोग की जरूरत को रेखांकित करता है।
डॉ. अरुण कुमार तोमर, निदेशक, भाकृअनुप-केन्द्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर ने संस्थान द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके) से बेहतर भेड़ पालन तकनीकों को अपनाने के लिए किसानों में जागरूकता पैदा करने का आग्रह किया।
डॉ. दिल मोहम्मद मखदूमी, निदेशक, विस्तार शिक्षा, एसकेयूएएसटी (SKUAST)-कश्मीर ने खानाबदोश चरवाहों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर प्रकाश डाला। उन्होंने संस्थान से फुट रोट और संक्रामक कैप्रीन प्लुरा न्यूमोनिया (सीसीपीपी) जैसी स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने के लिए तकनीकी बैकस्टेपिंग प्रदान करने का आग्रह किया, जो प्रवासी भेड़ आबादी में अधिक आम है।
डॉ. मंदीप शर्मा, डीन, डॉ. जी.सी. नेगी कॉलेज ऑफ वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज, पालमपुर ने भारतीय संस्कृति में पशुधन के महत्व और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए पारंपरिक पशुधन प्रथाओं के संरक्षण के बारे में जानकारी दी।
इससे पहले, डॉ. ओमहारी चतुर्वेदी, प्रभारी एनटीआरएस, गरसा ने उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में भेड़ विकास केन्द्र के इतिहास और जनादेश के बारे में जानकारी दी।
प्रतिभागियों ने तकनीकी सत्रों के दौरान पशुपालन के प्रमुख मुद्दों पर विस्तार से विचार-विमर्श किया। राजस्थान तथा हिमाचल प्रदेश के प्रगतिशील किसानों ने अपने विचार साझा किए तथा नवीनतम तकनीकों की लाइव प्रदर्शनी, कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण था।
कार्यशाला में केवीके और भाकृअनुप वैज्ञानिकों के साथ 350 से अधिक किसानों ने सक्रिय रूप से भाग लिया।
(स्रोत: भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, लुधियाना)









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