22 फरवरी, 2023, बीकानेर
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी), बीकानेर के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित नवीन मादा उष्ट्र के दूध पाउडर बनाने की तकनीक का एएसडी राजस्थानी डेयरी प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड को लाइसेंस दिए जाने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया।
डॉ. कलाबंधु साहू, निदेशक, भाकृअनुप-एनआरसीसी, और श्री सुनील कुमार शर्मा, निदेशक, एएसडी राजस्थानी डेयरी प्रोडक्ट्स प्रा. लिमिटेड ने संबंधित संगठनों के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
नवीन प्रौद्योगिकी के उपयोग से मादा उष्ट्र के दूध का पाउडर अब पूरे देश में उपलब्ध है। इस प्रौद्योगिकी लाइसेंसिंग के परिणामस्वरूप गुणवत्ता वाले मादा उष्ट्र के दूध के पाउडर के रूप में पूरे देश में दूध की उपलब्धता में सुधार होगा, साथ ही लंबे समय तक संग्रहीत किया जा सकता है।

डॉ साहू ने आह्वान किया कि केन्द्र नवाचार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में मदद कर रहा है, जो निजी क्षेत्र को नवीनतम प्रक्रिया, प्रौद्योगिकी और मादा उष्ट्र के दूध से संबंधित उत्पादों तक पहुंच प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि यह निजी क्षेत्र के लिए अनुसंधान और विकास की लागत को कम करने में भी मदद करता है, क्योंकि वे उन नवाचारों का उपयोग कर सकते हैं जो केन्द्र द्वारा पहले ही विकसित किए जा चुके हैं। डॉ साहू ने कहा कि एनआरसीसी से निजी फर्मों को नवीन प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, नवाचार को प्रोत्साहित करने, नए अवसर पैदा करने और बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने में मदद करता है।
उष्ट्र के दूध की लाभकारी शक्ति इस बात से जाना जा सकता है कि यह सूजन और उम्र बढ़ने के गुणों को उजागर करता है, और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने में भी मदद कर सकता है। हालांकि, यह एक चिंता का विषय है कि मादा उष्ट्र के दूध के अत्यधिक ताप प्रसंस्करण के दौरान ये कार्यात्मक और उपचारात्मक गुण नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकी के प्रमुख आविष्कारक, डॉ. योगेश कुमार और उनकी टीम ने कहा कि नवीन तकनीकों का उपयोग करके गुणवत्तापूर्ण उत्पाद बनाने की एक विधि विकसित की है जिससे काफी हद तक मादा उष्ट्र के दूध में मौजूद कार्यात्मक और चिकित्सीय गुण लंबे समय तक बरकरार रहें।
डॉ. साहू ने ऊंट की बहुआयामी उपयोगिता तलाशने की दिशा में केन्द्र द्वारा की गई इस नई पहल (एमओए) के बारे में बताते हुए कहा कि इससे उष्ट्र पालकों को सीधा लाभ मिल सकेगा. उन्होंने उष्ट्र पालकों से मादा उष्ट्र के दूध के व्यापार के विचार को पूरी तरह से अपनाने और इस दिशा में आगे बढ़ने का आग्रह किया ताकि मादा उष्ट्र के दूध को बाजार के संगठित खाद्य आपूर्ति श्रृंखला से जोड़ा जा सके।
डॉ. योगेश कुमार ने कहा कि मादा उष्ट्र के दूध के प्रसंस्करण के लिए पारंपरिक दूध प्रसंस्करण विधियों का सीधे उपयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसकी अलग-अलग विशेषताएं हैं, इसलिए वे विभिन्न गुणवत्ता वाले उत्पादों को बनाने के लिए मादा उष्ट्र के दूध के प्रसंस्करण के लिए नवीन तकनीकों के विकास पर काम कर रहे हैं।
इस अवसर पर, एएसडी राजस्थानी डेयरी प्रोडक्ट्स प्रा. लिमिटेड ने कहा कि मादा उष्ट्र दूध के गुणवत्तापूर्ण उत्पाद को बाजार में लाने का उद्देश्य है कि इससे जरूरतमंद व आम लोगों को इसका लाभ मिल सके और घटिया उत्पाद न हों इससे निर्यात के अवसर भी छूटने न पाएं।
(स्रोत: भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर)








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