भाकृअनुप–वीपीकेएएस में "कृषि संरचनाओं और पर्यावरण प्रबंधन में प्लास्टिक इंजीनियरिंग पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना" की 21वीं वार्षिक कार्यशाला का उद्घाटन

भाकृअनुप–वीपीकेएएस में "कृषि संरचनाओं और पर्यावरण प्रबंधन में प्लास्टिक इंजीनियरिंग पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना" की 21वीं वार्षिक कार्यशाला का उद्घाटन

30 अक्टूबर, 2025, अल्मोड़ा

भाकृअनुप–विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (वीपीकेएएस), अल्मोड़ा में 30 अक्टूबर से 1 नवम्बर, 2025 तक चलने वाली "कृषि संरचनाओं और पर्यावरण प्रबंधन में प्लास्टिक इंजीनियरिंग पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की 21वीं वार्षिक कार्यशाला” का आज उद्घाटन हुआ। इस कार्यशाला के आयोजक भाकृअनुप–वीपीकेएएस, अल्मोड़ा तथा भाकृअनुप-केन्द्रीय कटाई उपरान्त अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, लुधियाना हैं। कार्यक्रम का शुभारम्भ स्वामी विवेकानंद जी की मूर्ति पर माल्यार्पण के साथ दीप प्रज्ज्वलन एवं परिषद गीत से शुरू किया गया।

 

कार्यशाला के मुख्य अतिथि, डॉ. एस.एन. झा, उप-महानिदेशक (अभियान्त्रिकी), भाकृअनुप, तथा विशिष्ट अतिथि, डॉ. के. नरसैय्या, सहायक महानिदेशक (प्रोसेस इंजीनियरिंग), भाकृअनुप; डॉ. नचिकेत कोतवालीवाले, निदेशक, भाकृअनुप-केन्द्रीय कटाई उपरान्त अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, लुधियाना तथा डॉ. लक्ष्‍मी कान्त, निदेशक, भाकृअनुप– वीपीकेएएस, अल्मोड़ा रहे।

डॉ. झा ने अपने सम्‍बोधन में कहा कि इस परियोजना के अन्‍तर्गत 14 केन्‍द्र आपस में मिलकर काम करते है और इस तीन दिवसीय कार्यशाला में पिछले वर्ष के अनुसंधान की प्रगति तथा आने वाले वर्ष के लिए अनुसंधान योजनाएं बनायी जायेंगी। इसके आधार पर, दो-तीन साल केन्‍द्रों में परीक्षण होने के बाद ये तकनीकियां कृषकों को हस्‍तान्‍तरित की जायेंगी। उप-महानिदेशक ने कहा कि देश में कृषि की स्थिति स्‍वतंत्रता के बाद काफी सुधरी है साथ ही देश कृषि में उन्‍नती एवं समृद्धी भी हासिल की है। डॉ. झा ने कहा कि विकसित भारत के निर्माण में कृषि अभियांत्रिकी का महत्वपूर्ण योगदान है, हमारे कृषि एवं कृषक कल्‍याण मंत्री श्री शिवराज सिंह जी चौहान ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को अपने-अपने राज्‍य में कृषि निदेशालय के समान ही कृषि अभियांत्रिकी निदेशालय बनाने हेतु पत्र लिखा है तथा पंचायत, ब्लॉक, कमिश्नरी स्तर पर एक-एक कृषि अभियन्ता नियुक्त करने का भी निर्देश दिया है।

   

डॉ. नरसैय्या ने अपने उद्बोधन में प्लास्टिक, ई-वेस्‍ट के जिम्मेदारी पूर्ण निस्‍तारण तथा हाईटेक फार्मिंग के शोध पर बल दिया। उन्होंने संरक्षित खेती के डाटा आधारित प्रबंधन को बनाने की आवश्यकता भी सभी के सामने प्रस्तुत किया।

डॉ. तवालीवाले, ने अपने वक्‍तव्‍य में कहा कि अखिल भारतीय परियोजना द्वारा कृषि में प्‍लास्टिक के उपयोग एवं अभियांत्रिकी की सुदृढ़ता की सराहना की। उन्होंने इस परियोजना में भंडारण, पैकेजिंग संरचनाओं पर शोध, उपयुक्त सामग्री के चयन के लिए तंत्र विकसित करने, पॉलिमर एवं फाइबर के उपयोग पर कार्य करने पर बल दिया।

प्रारंभ में, डॉ. कान्‍त ने संस्थान के अधिदेश एवं विशिष्ट उपलब्धियों से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि इस संस्‍थान की एक ऐतिहासिक पहचान है तथा सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में स्थित इस संस्‍थान द्वारा अभी तक पर्वतीय फसलों की 201 उन्नत उपज सील एवं रोगरोधी प्रजातियों के विकास के साथ-साथ कृषक उपयोगी तकनीकों का भी विकास किया गया है।

 

डॉ. राकेश शारदा, डॉ. टी.बी. एस. राजपूत, डॉ. एस. पटेल, ई. आनन्द जामब्रे, परियोजना समन्वयक विशेषज्ञ के रूप में इस अवसर पर उपस्थित रहे।

प्रगतिशील कृषकों, श्री महिपाल टम्‍टा, श्री मदन मोहन टम्‍टा एवं श्री दीपक कुमार ने संस्थान द्वारा दिए जा रहे सहयोग की सराहना करते हुए अपने-अपने क्षेत्रों में हो रही संरक्षित कृषि की जानकारी दी।

मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथियों द्वारा अखिल भारतीय परियोजना के अन्तर्गत प्रकाशित 12 प्रकाशनों का इस अवसर पर विमोचन किया गया।

कार्यशाला में देश के विभिन्न राज्यों में स्थित 14 सहयोगी केन्द्रों के साथ-साथ लगभग 50 से अधिक वैज्ञानिक, कृषि अभियंता, नीति निर्माता एवं प्रसार कार्यकर्ताओं के अलावा संस्थान के विभागाध्यक्ष, अनुभागाध्‍यक्ष, वैज्ञानिकों तथा अन्य कर्मियों ने शिरकत की।

(स्रोतः भाकृअनुप–विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा)

×