भाकृअनुप-एनबीएफजीआर ने चयनात्मक संकरण के माध्यम से डिज़ाइनर क्लाउनफिश की विकसित

भाकृअनुप-एनबीएफजीआर ने चयनात्मक संकरण के माध्यम से डिज़ाइनर क्लाउनफिश की विकसित

9 सितंबर, 2025, कोच्चि

भाकृअनुप-राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो ने चयनात्मक संकरण के माध्यम से डिजाइनर क्लाउनफ़िश का सफलतापूर्वक विकास करके समुद्री सजावटी जलीय कृषि में एक बड़ी सफलता हासिल की है। यह शोध, संस्थान के तटीय तथा समुद्री जैव विविधता केन्द्र, ऐरोली, मुंबई स्थित हैचरी सुविधा में किया गया, और इसे मैंग्रोव फाउंडेशन, महाराष्ट्र सरकार से प्राप्त वित्तीय सहायता प्राप्त हुई।

इस संकरण में एम्फिप्रियन पर्कुला (नर) और एम्फिप्रियन ओसेलारिस (मादा) शामिल थे, साथ ही यह भारत में अपनी तरह की पहली सफलता है। छह वर्षों के इस कार्यक्रम ने संकर संतानों की एफ4 पीढ़ी का उत्पादन किया है, जो आकर्षक एवं विशिष्ट रंग भिन्नताएं भी प्रदर्शित करती है। आणविक विश्लेषणों ने पुष्टि की है कि डिजाइनर क्लाउन, ए. पर्कुला के साथ अधिक अनुवांशिक समानता रखते हैं, साथ ही इनमें बेहतर दृश्य आकर्षण एवं अनुकूलन क्षमता भी प्रदर्शित होती है।

डिजाइनर क्लाउनफ़िश—जिन्हें वैश्विक व्यापार में पिकासो, प्लैटिनम, स्नोफ्लेक, स्नोब्राइट तथा ग्लेडिएटर के नाम से जाना जाता है—अपने अनूठे और जीवंत पैटर्न के लिए बेशकीमती है इसके साथ ही सजावटी मछली बाजार में इसकी कीमत बहुत ज्यादा है। इस शोध के निष्कर्ष, हाल ही में, डॉ. पी.आर. दिव्या और डॉ. टी.टी. अजित कुमार द्वारा करंट साइंस में प्रकाशित किए गया था।

इस उपलब्धि के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, डॉ. काजल चक्रवर्ती, निदेशक, आईसीएआर-एनबीएफजीआर, ने कहा कि डिज़ाइनर क्लाउनफ़िश का विकास स्थायी समुद्री सजावटी मछली उत्पादन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे संरक्षण जलीय कृषि, आजीविका सृजन तथा जंगली पकड़ी गई मछलियों पर निर्भरता कम करने हेतु व्यापक अनुप्रयोग है।

इन लाभों का विस्तार करने के लिए, भाकृअनुप-एनबीएफजीआर ने तमिलनाडु के जनजातीय विकास विभाग के साथ सहयोगात्मक कार्यक्रम भी शुरू किए हैं, जिससे पिचवरम और पुलिकट के जनजातीय समुदायों को डिजाइनर क्लाउनफिश पालन में शामिल होने में मदद मिल रहा है। सामुदायिक जलकृषि मॉडल के माध्यम से, इस पहल का उद्देश्य एक्वेरियम बाजारों को कैप्टिव ब्रीड डिजाइनर क्लोन की आपूर्ति करना है, साथ ही एक निश्चित आजीविका के अवसर पैदा करना तथा उत्तरदायी जल कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना है।

(स्रोत: भाकृअनुप-राष्ट्रीय मत्स्य आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, लखनऊ)

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