15 नवंबर, 2025, गोवा
जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़ा 2025 के आयोजन के हिस्से के तौर पर, भाकृअनुप-केन्द्रीय तटीय कृषि अनुसंधान संस्थान, गोवा ने आज अपने ओल्ड गोवा कैंपस में ‘देशी फसल किस्मों के संरक्षण के लिए समुदाय द्वारा प्रबंधन के माध्यम से समुदाय बीज बैंक’ पर एक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया। इस पहल का मकसद पारंपरिक फसल विविधता को बचाने तथा समुदाय द्वारा प्रबंधन के माध्यम से बीज व्यवस्था के जरिए लंबे समय तक बीज संप्रभुता को बढ़ावा देने में आदिवासी किसानों की क्षमता को मज़बूत करना था।
प्रोग्राम की शुरुआत कम्युनिटी सीड बैंक बनाने और बनाए रखने पर एक तकनीकी शुरुआत के साथ हुई, जिसमें बीज इकट्ठा करने, सुखाने, ग्रेडिंग और स्टोरेज के वैज्ञानिक तरीकों पर ज़ोर दिया गया। व्यवसायिक हाइब्रिड बीज के बढ़ते इस्तेमाल से खतरे में पड़ी लोकल किस्मों को बचाने में विकेन्द्रीकृत बीज बैंकों के महत्व पर ज़ोर दिया गया।
एक टेक्निकल सेशन में गोवा के कृषि-पारिस्थितिकीय हालात के हिसाब से बने जलवायु-अनुकूल देसी बीजों की पारिस्थितिकीय तथा कृषि मूल्य पर ज़ोर दिया गया। किसानों को बीज के आदान-प्रदान श्रृंखला को फिर से शुरू करने एवं जैव विविधता, जलवायु-अनुकूल एवं आत्मनिर्भर खेती को बढ़ाने के लिए समुदाय-आधारित संरक्षण व्यवस्था अपनाने हेतु इसे बढ़ावा दिया गया।
प्रतिभागियों को भाकृअनुप-सीसीएआरआई कृषि क्षेत्र का शैक्षणिक दौरा कराया गया, जहां संस्थान द्वारा डेवलप की गई पाँच चावल की किस्में (गोवा धान 1–5) और 166 कंजर्व्ड देसी चावल की किस्मों का कलेक्शन दिखाया गया। फिशरीज़ फार्म यूनिट में, किसानों ने इंस्टीट्यूट के लाइव फिश जीन बैंक के बारे में जाना, जो 40 देसी मीठे पानी की प्रजातियों को मेंटेन करता है और खतरे में पड़ी पानी की जैव विविधता को बचाने में अहम भूमिका निभाता है। केवीके सीड यूनिट के विज़िट में देसी सब्जियों के बीज संरक्षण की व्यवहारिक प्रशिक्षण दी गई, जिसके बाद भिंडी और क्लस्टरबीन (चिटकी) के बीज बांटे गए।
आखिरी सेशन में, 15 दिन की पखवाड़ा कार्यक्रम का एक छोटा सा अवलोकन प्रस्तुत किया गया। डॉ. परवीन कुमार, निदेशक, भाकृअनुप-सीसीएआरआई, ने आदिवासी किसानों की एक्टिंग हिस्सेदारी की तारीफ की और पारिस्थितिकीय स्थायित्व, पोषक तत्व के विभिन्न आयाम तथा भविष्य की काद्य सुरक्षा हेतु देसी जेनेटिक साधन को बचाने की अहमियत पर ज़ोर दिया। उन्होंने आदिवासी समुदायों के योगदान का सम्मान करने में जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़ा की अहमियत को दोहराया और भगवान बिरसा मुंडा की विरासत पर बात की, जिनकी लीडरशिप समुदाय को मज़बूती और आत्मनिर्भरता के लिए प्रेरित करती रहती है।
डॉ. कुमार ने कैपेसिटी बिल्डिंग, टेक्नोलॉजी फैलाने और सस्टेनेबल आजीविका और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर फोकस करने वाले मिलकर काम करने वाले कामों के ज़रिए आदिवासी किसानों को सपोर्ट करने के इंस्टीट्यूट के कमिटमेंट को फिर से पक्का किया।
इस प्रोग्राम में कोरलिम, अज़ोसिम और कुम्भरजुआ के कुल 30 किसानों ने हिस्सा लिया।
(स्रोत: भाकृअनुप-केन्द्रीय तटीय कृषि अनुसंधान संस्थान, गोवा)







फेसबुक पर लाइक करें
यूट्यूब पर सदस्यता लें
X पर फॉलो करना X
इंस्टाग्राम पर लाइक करें