केरल और दक्षिण भारत के अन्य भागों में समस्या उत्पन्न करने वाली जलीय खरपतवार, साल्विनिया, बैतूल जिले के सारणी कस्बे के सतपुड़ा जलाशय तथा मध्य प्रदेश के जबलपुर एवं कटनी जिलों के 3-4 गाँवों में पाया गया। इससे सिंचाई, जलविद्युत उत्पादन, जल उपलब्धता और नौवहन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा साथ ही मछली एवं जलीय फसलों (सिंघाड़ा) के उत्पादन में भारी कमी देखी गई।

भाकृअनुप-खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर ने सारणी स्थित सतपुड़ा ताप विद्युत केन्द्र (एसटीपीएस) के सतपुड़ा जलाशय के लगभग 1100 हेक्टेयर तथा मध्य प्रदेश के कटनी जिले के 20 हेक्टेयर तालाब से साल्विनिया ग्रसित क्षेत्र को 18 महीनों के भीतर पूरी तरह से साफ कर दिया। इसके लिए उन्होंने कीट जैव-कारक साइरटोबैगस साल्विनिया का रणनीतिक रूप से परित्याग तथा इसका समय-समय पर निगरानी की गई। इसके अलावा, इस तकनीक ने पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करने में मदद की साथ ही स्थानीय मछुआरों की आजीविका में सकारात्मक बदलाव लाया, जो घने खरपतवार आवरण के कारण मछली पकड़ने के अवसरों में कमी से जूझ रहे थे। यह सफलता की कहानी जलीय पारिस्थितिक तंत्रों के सतत प्रबंधन हेतु जैविक नियंत्रण विधियों को सामाजिक-आर्थिक पहलुओं के साथ एकीकृत करने की प्रभावशीलता पर प्रकाश डालती है।
(स्रोत: भाकृअनुप-खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर)
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