15 सितंबर, 2025, नई दिल्ली
राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (एनएएएस) ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप) के सहयोग से आज "सतत फसल अवशेष प्रबंधन के लिए नवोन्मेषी दृष्टिकोण" पर एक उच्च-स्तरीय विचार-मंथन सत्र का आयोजन किया गया।

यह कार्यक्रम हाइब्रिड मोड में आयोजित किया गया और इसमें नीति निर्माताओं, कृषि वैज्ञानिकों, उद्योग हितधारकों और किसान प्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी देखी गई। इस सत्र की सह-अध्यक्षता, डॉ. हिमांशु पाठक, अध्यक्ष, एनएएएस तथा डॉ. एम.एल. जाट, सचिव (डेयर) एवं महानिदेशक (भाकृअनुप) ने की।
डॉ. राजबीर सिंह, उप-महानिदेशक (कृषि विस्तार), भाकृअनुप ने संयोजक के रूप में कार्य किया, जबकि डॉ. एच.एस. सिद्धू, पूर्व प्रमुख, एफएमपीई, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना, सह-संयोजक थे।
सत्र की शुरुआत स्वागत संबोधन के साथ हुई, जिसके बाद फसल अवशेष प्रबंधन की वर्तमान स्थिति तथा उपलब्धियों पर चर्चा की गई। भाकृअनुप तथा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (डीएएंडएफडब्ल्यू) के वरिष्ठ अधिकारियों सहित प्रतिष्ठित वक्ताओं ने फसल अवशेष जलाने से संबंधित प्रमुख सरकारी पहलों, राज्य के दृष्टिकोण एवं चुनौतियों पर विचार-विमर्श किया।

खुले संवाद को प्रोत्साहित करने के लिए औपचारिक प्रस्तुतियों के बिना पैनल चर्चाएं आयोजित की गईं और संस्थागत तंत्रों को मज़बूत करने, अवशेषों की निगरानी के लिए रिमोट सेंसिंग तकनीकों को आगे बढ़ाने तथा धान की पराली प्रबंधन के लिए जैव-अपघटकों को बढ़ावा देने जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान केन्द्रित किया गया। उद्योग जगत के नेताओं ने जैव ऊर्जा उत्पादन के लिए फसल अपशिष्ट का लाभ उठाने, कृषि में चक्रीय अर्थव्यवस्था समाधानों को बढ़ाने के साथ-साथ गठरी बनाने तथा संग्रहण प्रणालियों में नवाचारों पर अपने विचार साझा किया।
किसान प्रतिनिधियों और निजी क्षेत्र के प्रतिभागियों ने भी अपने व्यावहारिक अनुभव साझा किया तथा उपकरणों तक पहुंच बढ़ाने, गुणवत्ता आश्वासन तथा जमीनी स्तर पर क्षमता निर्माण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
सत्र का समापन भारत में फसल अवशेष प्रबंधन की प्रभावशीलता को बढ़ाने के उद्देश्य से कार्यान्वयन योग्य सुझावों के एक समूह के साथ हुआ। प्रमुख सुझावों में मज़बूत स्थानीय कार्य योजनाओं के साथ पराली जलाने वाले हॉटस्पॉट की पहचान, उपलब्ध मशीनरी का अधिकतम उपयोग और तर्कसंगत उपयोग, तथा अवशेष प्रबंधन में उत्कृष्टता प्रदर्शित करने वाली ग्राम पंचायतों को प्रोत्साहित करना शामिल था। पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के मुद्रीकरण तथा उन्हें कार्बन बाजारों से जोड़ने हेतु तंत्र विकसित करने की सिफ़ारिश की गई, साथ ही उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में सूचना, शिक्षा एवं संचार (आईईसी) अभियानों को तेज करने की सिफ़ारिश की गई ताकि अवशेष जलाने को हतोत्साहित किया जा सके।
कस्टम हायरिंग सेंटरों (सीएचसी) को छोटे और सीमांत किसानों को किफायती उपकरण किराए पर देकर सहायता प्रदान करने हेतु प्रोत्साहित करने और क्षेत्र-विशिष्ट समाधानों की पहचान के लिए बहु-मानदंड विश्लेषण दृष्टिकोण अपनाने पर ज़ोर दिया गया। सीएचसी संचालन का आकलन करने तथा उनकी स्थिरता के लिए व्यवहार्य व्यावसायिक मॉडल बनाने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया।
इसके अलावा, सत्र में बायोमास उत्पादन के सटीक राष्ट्रव्यापी अनुमान तैयार करने, अवशेष-संबंधी मुद्दों और समाधानों का एक व्यापक डेटाबेस स्थापित करने, तथा फसल विविधीकरण के साथ-साथ इन-सीटू एवं एक्स-सीटू प्रबंधन तकनीकों के संतुलित मिश्रण को बढ़ावा देने के महत्व पर ज़ोर दिया गया। प्रतिभागियों ने फसल अवशेष प्रबंधन योजना पर एक स्थिति पत्र तैयार करने का आह्वान किया ताकि मध्यावधि सुधार संभव हो सके, सब्सिडी वाली मशीनरी के लिए गुणवत्ता मानक सुनिश्चित किया जा सके, साथ ही फसल अवशेषों के मूल्यवर्धन को सुगम बनाने हेतु सक्षम नीतिगत पारिस्थितिकी तंत्र बनाए जा सके।
यह कार्यक्रम फसल अवशेष प्रबंधन की बहुआयामी चुनौतियों से निपटने तथा देश भर में टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए सहयोगात्मक, नवाचार-संचालित तथा क्षेत्रीय रूप से अनुकूलनीय रणनीतियों के महत्व पर आम सहमति के साथ संपन्न हुआ।
(स्रोत: कृषि विस्तार प्रभाग, भाकृअनुप)
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