12 अक्टूबर, 2025, हरियाणा
भाकृअनुप-केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय केन्द्र, सिरसा, हरियाणा ने आज बदलते जलवायु परिदृश्य में कपास की उत्पादकता बढ़ाने पर पांचवीं हितधारक इंटरफ़ेस बैठक का आयोजन किया।
डॉ. एस.एस. गोसल, माननीय कुलपति, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना, ने अपने संबोधन में सभी प्रतिभागियों से कपास उत्पादन बढ़ाने के लिए अधिक उपज देने वाली, कीट एवं रोग प्रतिरोधी संकर या किस्में विकसित करने का आग्रह किया। डॉ. गोसल ने नहरों के जल प्रवाह के अनिश्चित रूप से बंद होने पर भी ध्यान केन्द्रित किया, जिससे कपास की सुचारू बुवाई में बाधा आ रही थी, जिससे पूरे उत्तरी क्षेत्र (पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान) में कपास के रकबे में गिरावट आई है।

डॉ. डी.के. के यादव, उप-महानिदेशक (फसल विज्ञान), भाकृअनुप ने उत्तरी क्षेत्र के सभी हितधारकों के संयुक्त प्रयासों की सराहना की तथा सभी प्रतिभागियों को अधिकतम कपास उपज प्राप्त करने के लिए विभिन्न तकनीकों को विकसित करने एवं कीटों, रोगों के प्रति प्रतिरोधी तथा बदलते मौसम के अनुकूल उच्च उपज देने वाली किस्में विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने सघन कपास खेती तकनीकों, सूक्ष्म सिंचाई, बीजों की अच्छी किस्मों और विशेष रूप से भारत सरकार द्वारा कपास उत्पादकता मिशन के अंतर्गत किसानों के खेतों पर विभिन्न तकनीकों के प्रदर्शन पर भी ज़ोर दिया। डॉ. यादव ने भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा नकली उर्वरकों तथा बीजों की रोकथाम के लिए किए जा रहे प्रयासों पर भी चर्चा की और जानकारी दी।
डॉ. वी.एन. वाघमारे, निदेशक, भाकृअनुप-केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर, ने कपास उत्पादन से जुड़ी प्रमुख समस्याओं पर प्रस्तुति दी। डॉ. वाघमारे ने उन्नत प्रबंधन रणनीतियों को विकसित करने और संबंधित राज्यों के राज्य कृषि विभागों के माध्यम से किसानों के खेतों पर उनके कार्यान्वयन पर ज़ोर दिया।
आरंभ में, डॉ. ऋषि कुमार, विभागाध्यक्ष (प्रभारी), भाकृअनुप-सीआईसीआर क्षेत्रीय केन्द्र, सिरसा, ने उत्तरी कपास उत्पादक क्षेत्र में कपास की फसल की स्थिति, कीट-पतंगों, रोगों के प्रकोप, प्रबंधन रणनीतियों, कपास उत्पादन की प्रमुख समस्याओं, समाधानों और आगे की राह पर एक संक्षिप्त प्रस्तुति दी।
डॉ. ए.एस. धत्त, निदेशक अनुसंधान, पीएयू, लुधियाना, डॉ. राजबीर गर्ग, निदेशक अनुसंधान, सीसीएसएचएयू, हिसार, डॉ. विजय प्रकाश, निदेशक अनुसंधान, एसकेआरएयू, बीकानेर, डॉ. एम.एम. सुंदरिया, निदेशक अनुसंधान, एयू, जोधपुर ने अपने-अपने राज्यों में कपास की स्थिति और प्रमुख मुद्दों पर प्रस्तुति दी।
राज्य कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक, केवीके वैज्ञानिक, सीसीआई, निजी बीज कंपनी और कृषि-इनपुट उद्योग के प्रतिनिधि, जिनर, तीनों राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के कपास वैज्ञानिक और प्रगतिशील किसानों ने बैठक में भाग लिया।

तीनों राज्यों में बीज, मृदा स्वास्थ्य, जल तथा पोषण प्रबंधन, कीट एवं रोग की स्थिति से संबंधित कपास के मौजूदा मुद्दों पर एक पैनल चर्चा सत्र आयोजित किया गया।
पैनल ने व्यापक बुवाई अवधि, मौजूदा वर्षा की स्थिति में जैसिड और बॉल रॉट की समस्याएं तथा पिंक बॉलवर्म (पीबीडब्ल्यू) के प्रकोप पर ध्यान केन्द्रित किया। इस बात पर ज़ोर दिया गया कि पिंक बॉलवर्म की उचित निगरानी, फेरोमोन ट्रैप का उपयोग करके और साथ ही हरे बॉल्स के विनाशकारी नमूने के माध्यम से, प्रकोप का पता लगाने, आर्थिक सीमा स्तर और इस महत्वपूर्ण फसल अवस्था में आर्थिक क्षति को कम करने हेतु कीटनाशक छिड़काव की आवश्यकता है। चर्चा में, सभी पैनलिस्टों ने सुझाव दिया कि एचडीपीएस कपास तथा कैनोपी प्रबंधन की अवधारणा को लागू करने से पहले और अधिक परीक्षण और सत्यापन की आवश्यकता है। पैनल ने पिंक बॉलवर्म एवं अन्य कीटों और रोगों के प्रबंधन के लिए कई ऑफ-सीजन और प्री-सीजन रणनीतिक कदम भी सुझाए।
(स्रोत: भाकृअनुप-केन्द्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय स्टेशन, सिरसा)
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