विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु भारतीय पशुधन क्षेत्र हेतु ट्रेसेबिलिटी प्रोटोकॉल के मानकीकरण पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु भारतीय पशुधन क्षेत्र हेतु ट्रेसेबिलिटी प्रोटोकॉल के मानकीकरण पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

8 अक्टूबर, 2025, नई दिल्ली

विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु भारतीय पशुधन क्षेत्र हेतु ट्रेसेबिलिटी प्रोटोकॉल के मानकीकरण पर आज नई दिल्ली में एक राष्ट्रीय कार्यशाला सफलतापूर्वक आयोजित की गई। इस कार्यक्रम का आयोजन भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) और भाकृअनुप-राष्ट्रीय मिथुन अनुसंधान केन्द्र, मेडजीफेमा, नागालैंड द्वारा भारतीय मांस विज्ञान संघ के सहयोग से संयुक्त रूप से किया गया।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, डॉ. राघवेंद्र भट्टा, उप-महानिदेशक (पशु विज्ञान), भाकृअनुप ने इस बात पर ज़ोर दिया कि दुनिया के सबसे बड़े पशुधन उत्पादक देश के रूप में, भारत को खाद्य सुरक्षा, गुणवत्ता आश्वासन, उपभोक्ता विश्वास तथा प्रीमियम बाज़ारों तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए ट्रेसेबिलिटी को प्राथमिकता देनी चाहिए। उन्होंने डिजिटल पशु ट्रैकिंग, जियो-टैगिंग तथा रोग ट्रेसेबिलिटी के महत्व पर जोर दिया, साथ ही छोटे किसानों की प्रणालियों, डिजिटल साक्षरता और किसान प्रोत्साहन से जुड़ी चुनौतियों को भी स्वीकार किया। डॉ. भट्टा ने कहा कि एफएओ ने ट्रेसेबिलिटी को वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता के एक प्रमुख निर्धारक के रूप में मान्यता दी है और भारत में एक मज़बूत, किसान-केन्द्रित ट्रेसेबिलिटी ढाँचे के विकास का आह्वान किया है। उन्होंने पशुधन ट्रेसेबिलिटी में अग्रणी पहल के लिए भाकृअनुप-एनआरसीएम की सराहना की।

National Workshop on Standardization of Traceability Protocols for Indian Livestock Sector for Achieving Viksit Bharat Organized

सुश्री वर्षा जोशी, भारतीय प्रशासनिक सेवा, अतिरिक्त सचिव, पशुपालन एवं डेयरी विभाग, ने ट्रेसेबिलिटी पर राष्ट्रीय परियोजना का नेतृत्व करने के लिए भाकृअनुप-एनआरसी मिथुन में डॉ. गिरीश पाटिल और उनकी टीम के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने राष्ट्रीय डिजिटल पशुधन मिशन (एनडीएलएम) और भारत पशुधन ऐप के बारे में विस्तार से बताया और इस बात पर ज़ोर दिया कि ट्रेसेबिलिटी, डीएएचडी के डिजिटल पशुधन पारिस्थितिकी तंत्र का अपनी शुरुआत से ही अभिन्न अंग रही है। सुश्री जोशी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे डिजिटल ट्रैकिंग, जन्म से लेकर वध तक पशुओं की उनके पूरे जीवनचक्र की निगरानी को सक्षम बनाती है, जिससे खाद्य सुरक्षा और अवशेष अनुपालन सुनिश्चित होता है। उन्होंने बीआईएस से भारत की पशुधन निर्यात क्षमता को बढ़ावा देने के लिए ट्रेसेबिलिटी-संबंधी मानकों के विकास में तेजी लाने, किसानों के प्रशिक्षण को बढ़ाने और आपूर्ति श्रृंखला एकीकरण को बढ़ावा देने का आग्रह किया।

अपने स्वागत संबोधन में, डॉ. संजय पंत, उप-महानिदेशक (मानकीकरण-II), बीआईएस, ने विविध क्षेत्रों में मानक तैयार करने में बीआईएस की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि बीआईएस ने अब तक 24,000 से अधिक मानक विकसित किए हैं और 200 अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं को वित्त पोषित किया है, जिनमें से कई ने नए मानकों के विकास में प्रत्यक्ष योगदान दिया है।

डॉ. सुनीति टोटेजा, वरिष्ठ निदेशक (एफएडी), बीआईएस, ने "अनुसंधान-संचालित मानकीकरण - बीआईएस परिप्रेक्ष्य" पर प्रस्तुति दी, जिसमें सहयोगात्मक अनुसंधान और अनुसंधान एवं विकास परिणामों को मानकों में रूपांतरित करने के तंत्रों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई।

डॉ. गिरीश पाटिल एस., निदेशक, भाकृअनुप-राष्ट्रीय मिथुन अनुसंधान केन्द्र, ने मांस क्षेत्र में फार्म-टू-फोर्क ट्रेसिबिलिटी सिस्टम के मानकीकरण तथा सत्यापन पर बीआईएस-वित्त पोषित परियोजना के परिणाम प्रस्तुत किए। उन्होंने भारतीय पशुधन परिदृश्य, वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं और राष्ट्रीय ट्रेसिबिलिटी मानकों के मसौदे को विकसित करने की दिशा में हुई प्रगति का अवलोकन प्रस्तुत किया। डॉ. पाटिल ने ट्रैलेक्सो ऐप का प्रदर्शन किया, जो ट्रेसेबिलिटी प्रबंधन के लिए एक डिजिटल टूल है, और इसके लचीलेपन और बैकएंड कार्यक्षमताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने व्यापक ट्रेसेबिलिटी प्रणालियों में फ़ीड ट्रेसेबिलिटी, एंटीबायोटिक अवशेषों की निगरानी तथा शरीर की स्थिति स्कोरिंग को शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया।

National Workshop on Standardization of Traceability Protocols for Indian Livestock Sector for Achieving Viksit Bharat Organized

इसके बाद एक गतिशील चर्चा हुई, जिसमें विभिन्न एजेंसियों के प्रतिभागियों ने मसौदा मानकों पर विचार-विमर्श किया। इस बात पर सहमति हुई कि ट्रेसेबिलिटी का कार्यान्वयन पायलट और स्वैच्छिक रूप से शुरू होगा, जिसके बाद चरणबद्ध विस्तार किया जाएगा। मसौदा मानकों को परिष्कृत तथा अंतिम रूप देने के लिए 10-15 विशेषज्ञों का एक कार्य समूह गठित किया जाएगा।

प्रतिभागियों ने ट्रेसेबिलिटी को सफलतापूर्वक अपनाने के लिए अंतर-एजेंसी समन्वय, क्षमता निर्माण एवं किसान जागरूकता के महत्व पर ज़ोर दिया। चर्चाओं में यह माना गया कि पोल्ट्री ट्रेसेबिलिटी को लागू करना अपेक्षाकृत आसान है, लेकिन भारत में बहु-प्रजाति ट्रेसेबिलिटी के लिए एकीकृत डिजिटल समाधान, नियामक समर्थन और निरंतर हितधारक सहयोग की आवश्यकता होगी।

यह कार्यशाला पशुधन ट्रेसेबिलिटी के लिए व्यापक राष्ट्रीय मानकों को विकसित करने, वैश्विक पशुधन व्यापार में भारत की स्थिति को मजबूत करने तथा "विकसित भारत 2047" के विजन में योगदान देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

(स्रोत: भाकृअनुप-राष्ट्रीय मिथुन अनुसंधान केन्द्र, मेडजीफेमा, नागालैंड)

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