29-31 अगस्त, 2022, अल्मोड़ा
भाकृअनुप-विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा द्वारा गेहूँ की एक नयी प्रजाति वी.एल. 2041 विकसित की गयी है जो कि बिस्कुट बनाने के लिए अत्यधिक उपयुक्त किस्म है। इस प्रजाति की पहचान 61वीं अखिल भारतीय गेहूं एवं जौ शोधकर्ताओं की वार्षिक बैठक में की गई, जिसका आयोजन दिनांक 29-31 अगस्त, 2022 को राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में आयोजित की गई।

इसके दौरान, प्रजाति की पहचान एक समिति द्वारा की गई। उत्तर-पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र के राज्यों (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, जम्मू एवं कश्मीर तथा मणिपुर) में विगत 3 वर्षों में हुए कुल 24 वर्षा आश्रित एवं 05 सिंचित प्रजाति का अखिल भारतीय परीक्षणों में इसकी बिस्किट क्वालिटी (फैलाव गुणांक) 11.07 आया है, जो कि पूरे देश में सर्वाधिक है। साथ ही इस प्रजाति में औसतन 9.07 प्रतिशत प्रोटीन तथा इसका दाना (दाना कठोरता सूचकांक 22.6) मुलायम है।
ये सभी गुण, इस प्रजाति को, बिस्कुट बनाने हेतु अभी तक की सबसे उपयुक्त प्रजाति बनाती हैं। यह किस्म अखिल भारतीय परीक्षणों में उपजाऊ दशा में तीन वर्षों की औसत उपज 29.06 कु./है. तथा सिंचित दशा में 49.08 कु./है. दर्शायी है, जो कि वर्तमान प्रचलित गेहूं की किस्में नामतः एच.एस. 507, वी.एल. 907 एवं एच.पी.डब्ल्यू. 349 से क्रमशः 2.02, 5.08, 2.01 एवं 5.51, 4.84 और 4.4 प्रतिशत अधिक है। साथ ही इस गेहूं प्रजाति की फसल में लगने वाली बीमारी ‘गेहूँ का ब्लास्ट रोग’ के लिए भी मध्यम रूप से प्रतिरोधी है। यह प्रजाति भूरा तथा पीला रतुआ रोग हेतु प्रतिरोधी भी है। इस बात की आशा की जा रही है कि यह प्रजाति बिस्कुट बनाने वाली उद्योगों के लिए लाभप्रद सिद्ध होगी तथा किसानों को भी इसकी उपज का अच्छा मूल्य मिलने की संभावना है।
(स्रोतः भाकृअनुप-विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा)








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