बुनियादी रूप से कृत्रिम मेधा (AI) आधारित सलाह हेतु वर्कशॉप: भारत के लिए बड़े पैमाने पर फसल प्रणालियों के डेटा को आगे बढ़ाने का प्रयास

बुनियादी रूप से कृत्रिम मेधा (AI) आधारित सलाह हेतु वर्कशॉप: भारत के लिए बड़े पैमाने पर फसल प्रणालियों के डेटा को आगे बढ़ाने का प्रयास

12–13 दिसंबर, 2025, नई दिल्ली

“बुनियाद रूप से कृत्रिम मेधा (AI) - आधारित सलाह हेतु वर्कशॉप: भारत के लिए बड़े पैमाने पर फसल प्रणालियों के डेटा को आगे बढ़ाने” जैसे विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय वर्कशॉप का आयोजन 12–13 दिसंबर, 2025 को राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केन्द्र (एनएएससी), नई दिल्ली, में किया गया। इस वर्कशॉप का आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, अंतर्राष्ट्रीय मक्का एवं गेहूं सुधार केन्द्र (सीआईएमएमवाईटी), अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आएफपीआरआई), तथा कॉर्नेल विश्वविद्यालय (यूएसए) की एक संयुक्त पहल के रूप में किया गया था।

इस वर्कशॉप का उद्देश्य लैंडस्केप फसल मूल्यांकन सर्वेक्षण (एलसीएएस) सहयोग के तहत हासिल की गई प्रगति की समीक्षा करना और भारत में विभिन्न कृषि प्रणालियों में कृत्रिम मेधा (AI) एवं मशीन लर्निंग के बेहतर उपयोग के माध्यम से इसके कार्यान्वयन के लिए भविष्य की दिशाएं तय करना था।

प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए, डॉ. राजबीर सिंह, उप-महानिदेशक (कृषि विस्तार), ने कहा कि यह वर्कशॉप डिजिटल कृषि सेवाओं के माध्यम से कृषि में बदलाव लाने के लिए सीएसआईएसए पहल की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए आयोजित की गई थी। उन्होंने केवीके पोर्टल जैसी नई पहलों में कृत्रिम मेधा के दायरे और किसान सारथी (आईएएसआरआई) जैसे प्लेटफार्मों को और मजबूत करने पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि चर्चाओं से एक ऐसा रोडमैप बनना चाहिए जिससे कृत्रिम मेधा तथा डिजिटल कृषि सेवाओं का लाभ उठाकर जमीनी स्तर पर फीडबैक लूप को कैप्चर किया जा सके और कृषि विकास को प्रभावित करने वाली नीतिगत कमियों को दूर करने के लिए संस्थागत जानकारी उत्पन्न की जा सके।

डॉ. जे.के. जेना, उप-महानिदेशक (कृषि शिक्षा), ने छात्रों को वास्तविक दुनिया के किसानों की चुनौतियों और व्यावहारिक समस्या-समाधान दृष्टिकोणों से परिचित कराने के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने बिग डेटा एनालिटिक्स में डिप्लोमा कोर्स विकसित करने के साथ-साथ इस क्षेत्र में व्यावहारिक पाठ्यक्रम शुरू करने पर चर्चा करने के लिए आगामी कुलपति सम्मेलन के दौरान एक मंच प्रदान करने का सुझाव दिया।

एलसीएएस के कार्यान्वयन का अवलोकन प्रदान करते हुए, डॉ. आर. बर्मन, सहायक महानिदेशक (कृषि विस्तार), ने चावल-गेहूं फसल प्रणाली के तहत 100 जिलों और दलहन में 22 जिलों में इसके अनुप्रयोग पर प्रकाश डाला। उन्होंने फीडबैक तंत्र को मजबूत करने, विपणन और संपूर्ण कृषि प्रणाली दृष्टिकोण सहित अन्य कृषि क्षेत्रों में इसके दायरे का विस्तार करने, और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू) में अंतिम वर्ष के स्नातक छात्रों के आरएडब्ल्यूई कार्यक्रम को एकीकृत करने में एलसीएएस की भूमिका पर ज़ोर दिया। डॉ. सीमा जग्गी, असिस्टेंट डायरेक्टर जनरल (एजुकेशन) ने कहा कि वर्कशॉप के दौरान कृत्रिम मेधा एवं मशीन लर्निंग पर चर्चा से 79 एसएयू के लगभग 20,000 एग्रीकल्चर ग्रेजुएट्स को एक मज़बूत आधार मिलेगा। उन्होंने कहा कि ऐसी पहल भारत सरकार के 100 एस्पिरेशनल जिलों पर फोकस के साथ अच्छी तरह से मेल खाती हैं, जिससे पॉलिसी से जुड़े मुद्दों तथा रिसर्च एवं एक्सटेंशन सिस्टम में कमियों की पहचान करने में मदद मिलेगी।

वक्ताओं ने भरोसा दिलाया कि भाकृअनुप एलसीएएस से जुड़ी गतिविधियों का विस्तार करने के लिए तैयार है, और विश्वास जताया कि यह वर्कशॉप किसानों की समस्याओं और इनोवेशन-आधारित समाधानों के बारे में छात्रों की जानकारी बढ़ाकर कृषि शिक्षा के भविष्य को आकार देने के लिए रणनीतिक इनपुट देगी।

इस कार्यक्रम में कोटा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर और भाकृअनुप–अटारी, बिहार एवं झारखंड, और भाकृअनुप–अटारी, पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा के निदेशकों की उपस्थिति से और भी रौनक आई, जिन्होंने ब्रेनस्टॉर्मिंग सेशन में सक्रिय रूप से योगदान दिया।

(स्रोत: कृषि विस्तार प्रभाग, भाकृअनुप)

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